राजेश विक्रांत
प्रणाम सर,
आपके कार्यक्रम में आने की इच्छा तो हर बार रहती है और आपका स्नेहसिक्त आमंत्रण कदापि ठुकराने का मन भी नहीं होता है। परंतु हर बार की तरह इस बार भी सबसे बड़ी परेशानी यही है कि आप मुझे कभी कवि के रूप में नहीं, अपितु हमेशा सिर्फ श्रोता के रूप में ही बुलाते हैं।
आपको शायद मेरे बारे में पता नहीं होगा कि मैं काफी भयंकर किस्म का वीर रस का कवि हूं। मैं वीभत्स रस व करुण रस के संयोजन से वीर रस पैदा करता हूं। मेरी आवाज रेल इंजन की भांति मीलों आवाज फेंक सकती है। मेरी एक ही कविता श्रोताओं की नींद हराम करने के लिए काफी होती है। मेरी कविता सुनकर चुटकुलेबाज व शृंगार कवि बूढ़े जेबकतरे की भांति मंच से खिसक जाते हैं।
मैं अनेक राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर देश के नामचीन कवियों के साथ काव्यपाठ कर चुका हूं। राष्ट्र तथा राज्य स्तर पर अनेक साहित्यिक और सामाजिक पुरस्कार मुझे मिल चुके हैं। इतनी उपलब्धियों के बाद श्रोता के रूप में नीचे बैठकर मैं उन लोगों को सुनूं, जो अभी रानी नगर के बाहर कहीं किसी बड़े मंच पर न तो आमंत्रित किए गए हैं और न ही उन्हें बतौर कवि कभी कोई बड़ा लिफाफा मिला है। यहां तक कि न ही उनकी कविता पर कोई पुरस्कार ही मिला है। ऐसे लोग काव्य जगत में इंक्रोचमेंट किए हैं। ये ऐसे चूहे के समान हैं, जो हल्दी की एक गांठ मिल जाने पर पंसारी बन बैठा है।
मैं देश का इकलौता कवि हूं, जो अधिक अन्न उपजाओ की तर्ज पर अधिक कविता पैदा करने का अभियान चला रहा हूं। मैं आत्मनिर्भरता के परम सिद्धांत पर चलता हूं। हरेक आयोजन में एक दर्जन निजी श्रोता भी लेकर जाता हूं, जो मेरी वाह-वाह और बाकी कवियों की हूटिंग करते हैं।
आयोजक महोदय, मैं तो स्वांत सुखाय कविता लिखता हूं, तो अब इसमें मेरी कोई गलती नहीं है कि वो कविता श्रोताओं के दुख का कारण बन जाती है।
आयोजक जी, एक खास बात और। वैदिक धर्म के अनुसार, चार आश्रमों में एक संन्यास आश्रम होता है, जिसमें व्यक्ति को भिक्षावृत्ति पर जीना पड़ता है इसलिए मैं आपसे आपके आयोजन में काव्यपाठ की भिक्षा मांगता हूं। इसमें कोई गलत नहीं है, क्योंकि अब भिक्षा का नाम पुरस्कार, सम्मान, अलंकरण, वोट, चुनाव का टिकट, महापौर, मंत्री का पद, चंदा आदि भी हो गया है।
मैं हाथ जोड़कर, पैर पड़कर, नाक रगड़कर आपसे विनम्र निवेदन करता हूं कि आप कृपया, प्लीज मुझे कवि के रूप में आमंत्रित करें। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि अगले महीने राजागंज में एक कवि सम्मेलन मेरे संयोजन में हो रहा है, उसमें मैं आपको मुख्य कवि के रूप में (शर्तें लागू) बुलाने का इरादा रखता हूं।
ध्यान रहे कि एक मशहूर कवि का श्रोता के रूप में किसी काव्यमंच पर जाना मर्यादा के अनुरूप नहीं है। यह अपने ही हाथों अपने द्वारा कमाई गई प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाने के समान है। इस वजह से इस बार भी विनम्रतापूर्वक मैं आपका निमंत्रण अस्वीकार कर रहा हूं।
मेरा रिकॉर्ड है कि मैं आज तक कभी किसी कवि सम्मेलन में किसी अन्य कवि को सुनने नहीं गया। सदैव काव्यपाठ के लिए ही गया हूं, वो भी ससम्मान आमंत्रित किए जाने पर..तो यहां भी मैं नहीं आ सकूंगा…
आपका
कवि वीर बहादुर `रसराज’