मुख्यपृष्ठराजनीतिउत्तर की बात : बीजेपी और अपना दल में सब ठीक नहीं

उत्तर की बात : बीजेपी और अपना दल में सब ठीक नहीं

रोहित माहेश्वरी लखनऊ

लोकसभाा चुनाव के नतीजों में बीजेपी को यूपी में बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा। दावों के विपरीत नतीजे आने के बाद से बीजेपी के अंदर तो खलबली और हलचल है ही, वहीं उससे जुड़े दल भी खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। असहज हो रहे सहयोगी दलों में सबसे ऊपर नाम अपना दल सोनेलाल की नेता केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल का है, जिनके एक के बाद एक बयान योगी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं।
असल में असहजता और नाराजगी इस कदर है कि बीते दिनों अपना दल एस प्रमुख अनुप्रिया पटेल ने आरक्षण के मुद्दे पर चिट्ठी लिखकर अपने ही सहयोगी दल की सरकार को घेरने का काम किया। अनुप्रिया पटेल ने सीएम योगी को चिट्ठी लिखकर मांग की थी कि आरक्षित पदों को अनारक्षित किए जाने की व्यवस्था पर रोक लगे। साक्षात्कार के आधार पर होने वाली भर्तियों में पिछड़ों और एससी-एसटी वर्ग की भर्ती नहीं करने का भी आरोप लगाया था। अनुप्रिया की चिट्ठी का जवाब सरकार ने दिया। लेकिन चिट्ठी लिखने और जवाब देने के बीच में जो राजनीति होनी थी वो तो हो ही गई। विरोधियों को भी यह कहने का मौका मिल गया कि एनडीए यूपी में कमजोर हो गया है और इनमें मतभेद व मनभेद बढ़ गए हैं।
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की आरक्षण के मुद्दे पर लिखी गई चिट्ठी को लेकर सियासी घमासान अभी थमा ही नहीं था कि यूपी सरकार पर सवाल उठाते हुए उनका एक और बयान सामने आया है। अनुप्रिया पटेल ने पार्टी संस्थापक सोनेलाल की जयंती के मौके पर लखनऊ में जन स्वाभिमान दिवस मनाया। इस दौरान उन्होंने योगी सरकार पर तंज कसते हुए कहा, `६९ हजार शिक्षक भर्ती का मुद्दा हमने उठाया, पर यह हल नहीं हुआ। अन्य मुद्दे हल हुए। पीएम मोदी ने पिछड़ों के लिए इतना कुछ किया, लेकिन फिर भी कुछ बाकी रह गया। हमारे सभी सवाल हल हुए लेकिन एक सवाल का हल नहीं निकल पाया। ६९,००० शिक्षकों का मसला हल नहीं हो पाया और नुकसान हुआ।’
बीते दिनों लखनऊ से ऐसी खबरें सामने आर्इं, जिसे लेकर राजनीति के गलियारों में कयासों का दौर शुरू हो गया है। खबर के मुताबिक, बीजेपी की हार को लेकर हाल ही में समीक्षा बैठक बुलाई गई, जिसमें अपना दल (सोनेलाल गुट) के दो बड़े चेहरे नदारद रहे। अनुप्रिया पटेल के इंजीनियर पति आशीष पटेल यूपी सरकार में मंत्री होकर भी सीएम की बैठक से गायब रहे। वे इस अहम बैठक में क्यों नहीं पहुंचे? फिलहाल, इसका कारण तो स्पष्ट नहीं है। हालांकि, इतना जरूर कहा जा रहा है कि हो सकता है कि बीजेपी और अपना दल के बीच सब कुछ ठीक न हो। इस तनाव और तनातनी की असल वजह राजनीति के जानकार बताते हैं कि इस बार के चुनाव में प्रदेश में बीजेपी और उसके सहयोगियों को बड़ा झटका लगा है। पूर्वांचल में राजनीति करने वाला अपना दल (एस) केवल मिर्जापुर सीट ही जीत पाई। वहां से पार्टी प्रमुख अनुप्रिया पटेल खुद चुनाव मैदान में थीं। उन्हें जीत के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी, रॉबर्ट्सगंज में उनकी पार्टी को हार मिली। यही नहीं अनुप्रिया पटेल अपनी कुर्मी जाति की बहुलता वाली सीटों पर भी बीजेपी को जीत नहीं दिलवा सकीं। अनुप्रिया की पार्टी अपना दल (सोनीलाल) जो कुर्मी जाति की सियासत करती है जो मूलत: ओबीसी में आते हैं। बीते लोकसभा चुनाव में अनुप्रिय पटेल की जीत का मार्जिन जो २०१९ के चुनाव में २.३ लाख से ज्यादा से अब ३७ हजार पर आ गया। उन पर हार का भी खतरा मंडराने लगा। माना ये जा रहा है कि जो ओबीसी और दलित वर्ग का वोट एनडीए गठबंधन से छिटका है, उसका सबसे ज्यादा नुकसान छोटी पार्टियों को हुआ है। इन चुनाव परिणामों ने अनुप्रिया पटेल को मुखर होने के लिए मजबूर कर दिया। यूपी में उन्हें अब अपना जनाधार खिसकता हुआ दिखाई दे रहा है। अनुप्रिया तीसरी बार केंद्र में मंत्री बनी हैं। उनके पति आशीष पटेल प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। वहीं पिछले दस सालों में अनुप्रिया पटेल या उनकी पार्टी ने इस तरह से आरक्षण और ओबीसी के मुद्दों पर कभी आवाज नहीं उठाई थी।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद अनुप्रिया पटेल को भाजपा के ऊपर हमलावर होते हुए देखा गया है। अनुप्रिया भाजपा से ज्यादा योगी सरकार पर हमलावर रुख अपनाई हुई हैं। कई मुद्दों को लेकर अनुप्रिया लगातार आवाज उठा रही हैं। अभी यूपी में १० सीटों पर विधानसभा उपचुनाव भी होने हैं। अब ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुप्रिया पटेल इसको लेकर क्या कदम उठाती हैं।

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