महेश राजपूत
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने नेटवर्क ऑफ वुमन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्ल्यूएमआई), फ्री स्पीच कलेक्टिव (एफएससी) और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) के साथ मिलकर भारत की नई सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा और अपना काम करने की आजादी सुनिश्चित करने के लिए तुरंत उपाय करने का अनुरोध किया है।
इन संस्थाओं के अनुसार, भारत सरकार को प्रेस आजादी निर्णायक रूप से बहाल करने की आवश्यकता है, जो आरएसएफ की वर्ल्ड प्रेस प्रâीडम इंडेक्स २०२५ में १८० देशों में १५९ वें स्थान पर है। आरएसएफ ने एनडब्ल्यूएमआई, एफएससी और आईएफएफ के साथ मिलकर पत्रकारों की सुरक्षा, मीडिया आजादी की गारंटी सुनिश्चित करने के लिए १० उपाय सुझाए हैं। आरएसएफ की दक्षिण एशियाई डेस्क की सीला मेरकीर ने एक बयान में कहा है, ‘भारत में प्रेस आजादी का ह्रास, जो पिछले दस वर्षों में हुआ है, बेहद चिंतनीय है क्योंकि यह देश उन ५२ देशों में शामिल है, जिन्होंने पार्टनरशिप फॉर इनफॉर्मेशन एंड डेमोक्रेसी के लिए हस्ताक्षर किए हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जाने वाले देश की नकारात्मक अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाता है। भारत के पत्रकार प्रेस आजादी के गिरते माहौल में संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे में भारतीय सिविल सोसाइटी संगठनों ने आरएसएफ के साथ मिलकर नई सरकार से तुरंत १० कदम उठाने को कहा है, ताकि पत्रकारों की सुरक्षा और नागरिकों के सूचना अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके।’
२०१९ में भारत ने पार्टनरशिप फॉर इनफॉर्मेशन एंड डेमोक्रेसी पर ५१ देशों के साथ हस्ताक्षर किए थे। यह पहल आरएसएफ ने की थी, जिसका उद्देश्य किसी देश की तरफ से स्वतंत्र, विविध और भरोसेमंद जानकारी तक लोगों की पहुंच को बढ़ावा देने के प्रति प्रतिबद्धता को औपचारिक रूप से अंकित किया गया था। अन्य सिद्धांतों में पत्रकारों को सभी प्रकार की हिंसा, धमकियों, भेदभाव, मनमानी कैद और गैरवाजिब कानूनी कार्यवाहियों से बचाने की बातें शामिल थीं। उच्च गुणवत्ता वाली स्वतंत्र पत्रकारिता सुनिश्चित करने वाले टिकाऊ व्यावसायिक मॉडल विकसित करने पर भी जोर दिया गया था।
सरकार को यह १० उपाय तुरंत करने चाहिए:
आतंकवाद विरोधी कानूनों को इस तरह सुधारें, ताकि उनका इस्तेमाल पत्रकारों के खिलाफ न किया जाए।
गैरकानूनी गतिविधि प्रतिरोधक संशोधन अधिनियम, २०१९ (यूएपीए) और जन सुरक्षा अधिनियम, १९७८ का मीडियाकर्मियों को दबाने के औजार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा, राज्य पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग बंद करे।
ऐसे कानूनों को सुधारें, जिनका दुरुपयोग मीडिया को नियंत्रित और सेंसर करने के लिए किया जाता है।
२०२३ के कई कानूनों में सुधार किया जाए। टेलीकॉम अधिनियम, डिजिटल निजी डाटा संरक्षण अधिनियम, प्रेस एवं पत्रिकाओं का पंजीकरण अधिनियम, सूचना प्रसारण संशोधित नियम जो सरकार की मर्जी से तथ्य जांच इकाई बनाना चाहती है।
पत्रकारों को स्पाइवेयर से निशाना बनाने वाले मामलों की जांच के लिए स्वतंत्र आयोग का गठन करें।
कम से कम १५ भारतीय पत्रकारों को वर्ष २०२१ और २०२३ के बीच पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाया गया था।
पत्रकारों के स्रोतों की गोपनीयता बचाएं
पत्रकारों के उपकरणों (मोबाइल, लैपटॉप आदि) की जब्ती परिभाषित, अपरिहार्य स्थितियों में होनी चाहिए जिनका नियंत्रण स्वतंत्र न्यायिक अधिकारी द्वारा होना चाहिए। यह पत्रकारों के स्रोतों की गोपनीयता बचाए रखने के लिए आवश्यक है, जो इस समय सुरक्षित नहीं है।
मीडिया संकेंद्रित होने से बचाएं
एक छोटी संख्या में कंपनियां और समूह देश के अधिकांश मीडिया संस्थानों के मालिक हैं। कानून बनाकर इन मोनोपॉली को समाप्त करना चाहिए और क्रॉस-ओनरशिप को सीमित करना चाहिए, ताकि मीडिया बहुलतावाद को बचाया जा सके।
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए उपाय करें
पत्रकारों की शारीरिक और डिजिटल सुरक्षा के लिए त्वरित प्रतिसाद वाले उपाय करें खासकर जिन्हें धमकियां मिली हैं या खतरा है। महिला, वंचित समुदायों के पत्रकारों समेत पत्रकारों को साइबर-प्रताड़ना से बचाने के लिए उपाय करें, इन हमलों को मिलने वाली शह समाप्त करें और पत्रकारों को अपना काम करने दें।
मनमानी इंटरनेट बंदी पर रोक लगाएं
२०२३ में मनमानी इंटरनेट बंदियों के मामले में भारत लगातार छठे वर्ष शीर्ष पर रहा। मनमाने तरीके से की गई इन बंदियों से अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होता है, पत्रकारों का कार्य प्रभावित होता है और इससे भ्रामक और गलत जानकारियां फैलाने को प्रोत्साहन मिलता है।
विदेशी मीडिया को भारत को कवर करने दें
भारत में बसे विदेशी पत्रकारों को वीजा और वर्क परमिट दिए जाने से २०१९ से इनकार किया जा रहा है। कार्य के अधिकार से वंचित कइयों को देश छोड़ने पर मजबूर किया गया है।
प्रेस वार्ताएं करें
प्रधानमंत्री और सरकार के अन्य निर्णय निर्माताओं को नियमित रूप से प्रेस वार्ताएं करनी चाहिए जिनमें सभी मीडिया को भाग लेने दिया जाए।
सभी पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा की जाए
पत्रकार-चाहे किसी संस्थान के कर्मी हों या फिर स्वतंत्र पत्रकार, लगातार नौकरी की असुरक्षा और कार्य के अधिकारों के हनन का सामना कर रहे हैं। मान्यता संबंधी कानूनों से महत्वपूर्ण सार्वजनिक कार्यक्रमों तक उनकी पहुंच सीमित की जा रही है और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के पत्रकारों को मान्यता नहीं दी जा रही। नई बनी सरकार को पत्रकार के कार्य के अधिकारों के लिए मिलने वाली कानूनी सुरक्षाओं को मजबूत करना चाहिए।