मन की उड़ान

मन की उड़ान ने
सपनों की डोर को खींचा है
किस बंदिश में बंधा हूँ
अपनी तम्मना पूरी करूँ
कुछ आस लगा के बैठा हूँ
ज़मीर पुकारती है मुझे
ख्यालों के दीप जलाते हो
तुम भी अपने पंख फैलाओं
थोड़ी कोशिश कर लो
अपने को भी आज़मा लो
इस जग में आए हो
अपना किरदार निभाओगे
बुलंदी को छूने की तुम में शक्ति है
अपना जज़्बा दिखाओगे
यूँ ही दुबक के रहोगे
कुछ नहीं कर पाओगे
अपनी उम्मीदों पे कैसे खरे उतरोगे
रात को तुम सो जाते
दिन भर तुम ख़्वाब देखते
उम्र बीत जाएगी तुम्हारी
इस उड़ान की ख्वाईश में
तुम्हारे पास समय है
तुम्हारे पास  स्वयं है
तुम्हारे पास संयम है
बस अपनी उड़ान को अंजाम दो
अपनी आरज़ू को मसल  दोगे
जीने का मतलब खो दोगे
खुले आकाश को तुम देखो
खुली साँस में जीता है
तुम अपनी ज़ंजीरें तोड़ो
उड़ते पंक्षी से नाता जोड़ो

अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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