सैयद सलमान
मुंबई
त लाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आया एक फैसला उन मुसलमानों के लिए बड़ा झटका है जो चुनिंदा मुद्दों पर शरीया की पैरवी करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में साफ किया है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं भी अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं। इस मामले में कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा १२५ का हवाला दिया है। कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता कोई दान नहीं है, बल्कि विवाहित महिलाओं का अधिकार है। इससे पहले कुछ मुस्लिम संगठनों का मानना था कि शरीयत कानून के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं गुजारा भत्ता नहीं मांग सकतीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का पैâसला इस विवाद को खत्म करता है और स्पष्ट करता है कि सीआरपीसी की धारा १२५ मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होती है, चाहे वे तलाकशुदा हों या नहीं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि धारा १२५ सभी धर्मों की महिलाओं पर लागू होती है और मुस्लिम महिला अधिनियम, १९८६ इस पर हावी नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस नए पैâसले ने मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्ता के अधिकार को फिर से स्थापित तो किया है, लेकिन कुछ मामलों में गुजारा भत्ता नहीं देने का प्रावधान भी किया है। जैसे कि, पत्नी किसी दूसरे पार्टनर के साथ रहती हो। बिना कारण कोई पत्नी, पति के साथ रहने से मना कर दे। पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग हुए हों। इन सूरतों में महिलाएं गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होंगी।
मुस्लिम महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता का विवाद १९८५ में तब चर्चा में आया था जब शाहबानो के मुद्दे पर देश की सियासत गरमाई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि मुस्लिम महिलाएं भी सीआरपीसी की धारा १२५ के तहत पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं। इंदौर की रहने वाली शाहबानो ६२ साल की थीं, जब उनके तीन तलाक का मामला सुर्खियों में आया था। शाहबानो के ५ बच्चे भी थे। उनके पति ने १९७८ में उन्हें तलाक दिया था। पति का कहना था कि वह शरई तौर पर शाहबानो को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं है। पति से गुजारा भत्ता पाने का मामला १९८१ में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। कई मुस्लिम संगठनों ने इस फैसले का विरोध किया और कहा कि शरीयत कानून के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं गुजारा भत्ता नहीं मांग सकतीं। इसके बाद सरकार ने मुस्लिम महिला अधिनियम, १९८६ लाकर शाह बानो पैâसले को पलट दिया। कहते हैं देश की राजनीति में यह ऐसा पैâसला था, जिसे लेकर ध्रुवीकरण की राजनीति ने जोर पकड़ा।
सुप्रीम कोर्ट के ताजा पैâसले से मुस्लिम समाज में कई सकारात्मक बदलाव आने की बात कही जा रही है। मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद आर्थिक सुरक्षा मिलेगी, क्योंकि वे अब अपने पति से गुजारा भत्ता की मांग कर सकती हैं। अब तक उनके पास यह अधिकार नहीं था। वह केवल इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता पाने की हकदार थीं। अगर शरीया को बीच से हटा दिया जाए तो यह पैâसला मुस्लिम महिलाओं को अधिकार दिलाता है, जो उनके सशक्तीकरण में मदद करेगा। खासकर इस फैसले से मुस्लिम पुरुषों में जिम्मेदारी की भावना आएगी और वे अपनी पत्नियों के प्रति अधिक जिम्मेदार होंगे। समाज में मुस्लिम महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होगा और उन्हें अधिक सम्मान मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह पैâसला मुस्लिम समाज में महिलाओं के अधिकारों और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देगा। इससे मुस्लिम महिलाएं अपने पति पर निर्भर नहीं रहेंगी और अपने लिए फैसले लेने में सक्षम होंगी।
इस्लाम में महिलाओं का व्यवहार अलग-अलग समाजों की महिलाओं से काफी भिन्न होता है, क्योंकि एक प्रमुख कारक इस्लाम के प्रति उनकी आज्ञाकारिता है। इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरआन और मौलवियों द्वारा रचित हदीस आदि महिलाओं की सामाजिक, आध्यात्मिक, आर्थिक और शारीरिक यानी पर्दा, हिजाब वगैरह जैसी स्थिति निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस्लाम के प्रति आस्था के कारण मुस्लिम मर्द हों या औरत वह एक दायरे में रहने पर विश्वास करते हैं। लेकिन समय के बदलने के साथ-साथ उनमें भी बदलाव आ रहा है। मुस्लिम काल में महिलाओं में पर्दा प्रथा के कारण पुरुष प्रधान समाज उन पर हावी रहा है। उनमें शिक्षा की कमी पाई जाती रही है। उच्च शिक्षा केवल धनी परिवारों तक ही सीमित थी। हालांकि, शरीयत के नजरिए से महिलाओं की स्थिति के बारे में अलग-अलग फिरकों की अलग-अलग राय है और शरीयत ने कई मुद्दे पर कोई स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं किया है। मुसलमान इस देश में चोरी पर हाथ काटने, बलात्कार पर संगसार करने जैसे मुद्दों पर शरीयत की बात नहीं करता, बल्कि सीआरपीसी को मान्य करता है। लेकिन न जाने क्यों तलाक या गुजारा भत्ता जैसे मुद्दों पर शरीयत की आड़ लेता है। मुसलमानों को इस विषय पर सोचना होगा।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)