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हीमोफीलिया पर विंक्रीस्टिन थेरेपी कारगर …जटिल रक्त विकार के इलाज में सफल प्रयोग

मरीज के खून में नहीं जमता है खून का थक्का
सामना संवाददाता / मुंबई
हीमोफीलिया एक दुर्लभ रक्त विकार है, जिसमें रोगी के शरीर में खून का थक्का जमने की क्षमता ही नहीं होती। ऐसे में रोगी के शरीर के अंदर या बाहर शुरू हुआ रक्त प्रवाह न रुकने से मृत्यु का खतरा रहता है। इस जटिल रक्त विकार से पीड़ित एक वरिष्ठ नागरिक पर विंक्रीस्टिन थेरेपी का प्रयोग किया गया, जो प्रभावी ढंग से कारगर साबित हुआ है। इससे मरीज के घाव से रक्त का प्रवाह रोकने में सफलता मिली है।
उल्लेखनीय है कि मरीज की उम्र ६० साल है और उसे हीमोफीलिया-ए था। उसके खून में फैक्टर ८ की कमी थी। मरीज की जीभ जख्मी हो गई थी और हीमोफीलिया विकार के कारण घाव से रक्त का प्रवाह बंद नहीं हो रहा था इसलिए उसे पुणे के रूबी हॉल क्लीनिक में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने इलाज शुरू तो कर दिया, लेकिन वे रक्तस्राव को रोक नहीं पा रहे थे। चिकित्सकों ने पाया कि इस मरीज का एनीमिया का कोई इतिहास नहीं था। इसके बाद डॉक्टरों ने रक्तस्राव को रोकने के लिए विंक्रीस्टिन थेरेपी का सहारा लेने का पैâसला किया। इस मरीज में इस थेरेपी से इलाज शुरू करने के बाद असर देखा गया और मरीज के घाव से खून बहना आखिरकार बंद हो गया।
इसलिए इस्तेमाल की
विंक्रीस्टिन थेरेपी
मरीज का इलाज करनेवाले डॉक्टरों का कहना है कि इस जटिल बीमारी पर हमने वैकल्पिक उपचार विधियों के बारे में सोचना शुरू किया। विंक्रीस्टिन के हीमोफिलिया में प्रभावी होने के पहले के उदाहरण मौजूद हैं इसलिए हमने उसी तरीके से मरीज का इलाज करने का पैâसला किया। इस उपचार से हम मरीज के घाव में रक्त के प्रवाह को रोकने में सफल रहे।
देश में सवा लाख से
ज्यादा हैं मरीज
हीमोफीलिया का कोई पूर्ण इलाज नहीं है। हालांकि, इसे नियंत्रण में रखने के लिए उपयोगी दवाएं मौजूद हैं। चूंकि वे महंगी हैं इसलिए कई मरीज उनका वहन नहीं कर सकते। हिंदुस्थान में हीमोफीलिया के मरीजों की संख्या १.३६ लाख होने का अनुमान है। हालांकि, इससे पीड़ित सिर्फ २१ हजार मरीजों का ही रजिस्ट्रेशन हुआ है।

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