मुख्यपृष्ठस्तंभसंडे स्तंभ : अंग्रेज गवर्नर की खोज है माथेरान

संडे स्तंभ : अंग्रेज गवर्नर की खोज है माथेरान

विमल मिश्र

माथेरान पर्यटन माफिया के अराजक विस्तार का शिकार था। पेड़ों की कटाई और नए निर्माण इसके पर्यावरण और सौंदर्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे थे। जांबुल, आम, अशोक, अंजनी और कोकम के पेड़ गायब होने लगे थे। कई प्राकृतिक झरने भूस्खलन से लुप्त हो गए थे। बीते वर्षों में विलुप्त वैभव लौटाने की कोशिशों से सुधार नजर आ रहा है।

माथेरान की खोज संयोगवश ही हो गई थी। ठाणे के कलेक्टर एच. पी. मैलेट मई, १९५० में नेरल के चौक गांव में वैंâपिंग करने आए हुए थे। अचानक पहाड़ चढ़ने लगे। ऊपर के सुंदर नजारों को देखकर अक्सर मित्रों और परिवार के साथ घूमने और आखेट करने आने लगे। यही हाल मुंबई के तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड माउंट स्टुअर्ट एलफिंस्टन का हुआ। उन्होंने यहां बंगला ही बना डाला, आज जिसे ‘एलफिंस्टन लॉज’ के नाम से जाना जाता है। लॉर्ड एलफिंस्टन का मन यहां ऐसा रमा कि १८५३ में बोरीबंदर और ठाणे के बीच देश की पहली ट्रेन के उद्घाटन के निमंत्रण को भी उन्होंने यहां एक ‘जरूरी काम’ होने की वजह से ठुकरा दिया। कलेक्टर मैलेट की पत्नी को लाने-ले जाने वाली पालकी अभी भी उपयोग में आ रही है।
१ नवंबर, १८५६ को शुरू हुआ नेरल रेलवे स्टेशन माथेरान की यात्रा का प्रस्थान स्थल है- भारतीय रेलवे के पहले स्टेशनों में से है। इस साल के टाइमटेबल में बोरीबंदर से शाम ७.३० बजे की कंपोली (खोपोली) लोकल का जिक्र है, जो केवल प्रथम श्रेणी के यात्रियों के लिए होती थी और दो घंटे २५ मिनट की यात्रा के बाद केवल इसी स्टेशन पर रुकती थी। नेरल में १८६६ में लगा पीतल का विशालकाय घंटा अब मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्थित मध्य रेल के ‘हेरिटेज रूम’ में चला आया है।
अर्थव्यवस्था का मुख्य स्रोत
माथेरान अपनी ही नहीं, नेरल की अर्थव्यवस्था का भी अवलंब है। यहां की सारी भूमि राज्य सरकार के ताबे में हैं और २०वीं सदी की शुरुआत में निजी पार्टीज को लीज पर दी गई थी। तय हुआ‌ था कि लीज खत्म होते ही यह भूमि वन विभाग को सौंप दी जाएगी। इसके नवीनीकरण के लिए केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी जरूरी होगी। इस नीति का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किए जाने के आरोप लगते रहते हैं। अंग्रेजों द्वारा बनाई शार्लोट लेक पेय जल का एकमात्र स्रोत होने से शहर को टैंकरों पर निर्भर होना पड़ता है इसलिए जल संकट यहां की सबसे बड़ी दिक्कत है। अन्य बड़ी समस्या है चोरी की घटनाएं।
आया ई- रिक्शा का जमाना
माथेरान और तीन किलोमीटर दूर बाजार कार पार्क के बीच चलने वाली ई – रिक्शा हिट हो जाने से यहां के घोड़ों, कुलियों और हाथरिक्शा वालों की रोजी-रोटी पर आ बनी है। लाल मिट्टी पर बिछे पेवर ब्लाक्स पर फिसलकर घोड़ों और घुड़सवारों के साथ अक्सर दुर्घटनाएं होती रहती हैं। आपको यहां के ज्यादातर घोड़े और खच्चर घायल ही नजर आएंगे। बंगलुरु की एक सेवाभावी कंपनी ‘रंग दे’ ने हाथरिक्शा वालों को आसान शर्तों पर ऋण देकर उन्हें अपने रिक्शा ई-रिक्शा में बदलने में मदद की है।
अराजक विस्तार
सरकारी उपेक्षा से एक समय माथेरान पर्यटन माफिया के अराजक विस्तार का शिकार था। होटल उद्योग से जुड़े लोग बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई और नए निर्माण इसके पर्यावरण और सौंदर्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे थे। जांबुल, आम, अशोक, अंजनी और कोकम के पेड़ गायब होने लगे थे। कई प्राकृतिक झरने भूस्खलन से लुप्त हो गए थे। १२ जून, २००१ से सुप्रीम कोर्ट ने माथेरान को इको सेंसीटिव जोन (ईएसजेड) घोषित कर इसपर लगाम लगा दी। हेरिटेज नियमों के मुताबिक, मुख्य माथेरान में वाहनों का प्रवेश पहले ही पूरी तरह प्रतिबंधित था, अब एंबुलेंस एवं दमकल गाड़ियों के अलावा सभी वाहनों के आवागमन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। सपाट पहाड़ी क्षेत्रों में उत्खनन एवं निर्माण कार्य पूर्णतया प्रतिबंधित कर दि‌ए गए और पुनर्वनीकरण और जल संयोजन पर बल दिया गया है, ताकि यहां तीन वादियों-गाधे, लेंदी और वावड़े का जलस्तर बढ़ाया जा सके और बाढ़ से प्रभावित रहने वाले इलाकों को बाढ़ से मुक्त रखने में मदद मिल सके। आदिवासियों की जमीनों के गैर-आदिवासी कार्यों के लिए उपयोग पर भी अंकुश लगा दिया गया। २०१९ में बनी माथेरान विकास योजना में यहां के ६० प्रतिशत वनक्षेत्र को संरक्षित रखने का निर्णय किया गया। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने भी २०२० में ईएसजेड में नए निर्माणों से बचने को कहा।
नेरल की ग्राम पंचायत के सरपंच अयूब तंबोली ने बताया, ‘माथेरान में पर्यटकों का आना हमारे हित में है, पर हमारी शांति और बुनियादी सुविधाओं में खलल डालकर नहीं।’ माथेरान में आए फर्क को देखकर वे संतुष्ट हुए होंगे। पहाड़ पर भूक्षरण रोकने के लिए स्थानीय पौधे लगाए गए हैं। वन में लगने वाली आग की घटनाओं को रोकने के लिए उपाय किए गए हैं। नई योजनाओं से सूरते हाल और बेहतर होंगे। २०२१ में ४० करोड़ रुपए की लागत से कच्ची ऊबड़-खाबड़ सड़क के स्थान पर ४.६ किलोमीटर लंबे इको फ्रेंडली वॉकवे के निर्माण और पार्किंग स्थल को सुविधाजनक बनाने के साथ सौंदर्यीकरण कार्य किए गए हैं। नेरल सहित रास्ते के सभी स्टेशन जुम्मापट्टी, वॉटरपाइप व अमन लॉज की विरासत संरक्षण में मदद पहुंचाई है जे. जे. स्कूल आफ आर्ट की एक टीम ने। ये सभी स्टेशन अब सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग करने लगे हैं। पॉड होटल बनाए गए हैं। केंद्र सरकार की पर्वतमाला योजना के तहत पांच किलोमीटर की दूरी पर रोपवे कायम किए जाने हैं। माथेरान देश की ऐसी पहली नगरपालिका है, जिसकी अपनी अंतरिक्ष वेधशाला है। इससे रात्रि पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। (समाप्त)
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

अन्य समाचार