खिसकते गए हम उधर धीरे-धीरे।
आई मुसीबत इधर धीरे-धीरे।।
किस्मत को रोया विचारों को खोया।
होते रहे दर-बदर धीरे-धीरे।।
गांवों में आई मुसीबत की आंधी।
बनाते गए हम शहर धीरे-धीरे ।।
न्योता हमारा असर कर गया है ।
मेहमान आए हैं घर धीरे-धीरे।।
शोषण की मंडी में हम बिक गए हैं।
बोता है कोई जहर धीरे-धीरे ।।
अब तो मसालें भी जलती नहीं हैं।
ढाता है कोई कहर धीरे-धीरे ।।
चाहे जहां हो खड़े होकर कह दो ।
होना है हमको निडर धीरे-धीरे ।।
सोचो विचारों जमाना बदल दो ।
जीतो यहां पर समर धीरे-धीरे।।
हिफाजत करो आज अपने वतन की ।
फैलाओ बस यह खबर धीरे-धीरे ।।
सियासत की बातें न करना यहां परा
कतरती हमेशा है पर धीरे-धीरे ।।
-अन्वेषी