सैयद सलमान मुंबई
लोकसभा चुनाव के बाद देशभर में हुए कई उपचुनाव वर्तमान राजनीति की पूरी तरह तो नहीं, लेकिन काफी हद तक क्षेत्रीय ताकत का संकेत देते हैं। उपचुनाव में इंडिया गठबंधन की जीत से पता चलता है कि एनडीए के खिलाफ नाराजगी अभी भी बनी हुई है। इस जीत ने एनडीए गठबंधन को झटका दिया है और इंडिया गठबंधन को मजबूत करने में मदद की है। इंडिया गठबंधन ने उपचुनाव में १३ में से १० सीटों पर जीत हासिल की है। यानी २०२४ के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की जो मजबूत स्थिति थी, वह अभी भी बरकरार है। इससे यह भी साबित होता है कि देश में इस वक्त विपक्षी गठबंधन जनता को स्वीकार्य है और जनता उनके साथ है। इस जीत ने इंडिया गठबंधन की एकता और संगठन को भी साबित किया। इस जीत से इंडिया गठबंधन का मनोबल बढ़ा है। राहुल गांधी ने भी इस जीत को `तानाशाही को हराने’ के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। विपक्ष इन नतीजों को अपने राजनीतिक संचार का साधन बना सकता है और अपने प्रभाव को बढ़ा सकता है। इन नतीजों से विपक्ष को राजनीतिक स्थिरता प्राप्त होगी और वह आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सकेगा।
`अफसर बल’ का कमाल
चुनावी नतीजों में धांधली का एक नमूना तो मुंबई उत्तर-पश्चिम सीट पर देखा जा चुका है। पूरा सरकारी अमला कैसे अपने पसंदीदा उम्मीदवार को मात्र ४८ वोटों से जिताने में सफल रहा। मामला कोर्ट पहुंच चुका है। ऐसा ही एक और मामला मध्य प्रदेश उपचुनाव में देखने को मिला है। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने अमवारा उपचुनाव में प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाया है। वोटों की गिनती में छिंदवाड़ा कलेक्टर की कथित भूमिका से जुड़ी याचिका लेकर कांग्रेस हाई कोर्ट जाने को तैयार है। अमवारा उपचुनाव में कांग्रेस मामूली अंतर से भाजपा से हारी है। धांधली को लेकर शक के कारण भी हैं। एक तो ईसी और कलेक्टर ने मशीनों की मरम्मत नहीं कराई, उस पर केवल वीवीपैट पर्चियों की ही गिनती की गई। इसके अलावा, जब कांग्रेस उम्मीदवार गिनती में आगे चल रहा था और भाजपा उम्मीदवार पीछे था, तो अचानक अंतिम दौर में दोपहर के भोजन की अनुमति दे दी गई। जब गिनती के लिए केवल दो या तीन राउंड बचे थे तो यह लंच ब्रेक की घोषणा करना धांधली नहीं तो और क्या है? दरअसल, भाजपा अब बस जीत चाहती है। धनबल-बाहुबल के अलावा अब उसने `अफसर बल’ को भी आजमाना शुरू कर दिया है। यह चलन लोकतंत्र के लिए बेहद घातक है।
देवभूमि में पराजित
अयोध्या की हार को लेकर आज भी भाजपा पर कटाक्ष होते रहते हैं। अब तो देवभूमि उत्तराखंड में भी भाजपा को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है। वहां हुए उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त हुई है। सोशल मीडिया पर भाजपा की खूब खिंचाई हो रही है। वहां के लोगों का संदेश साफ है कि उत्तराखंड की जनता पैसे और धमकी देने वाले को नहीं जिताती। लोगों ने खुलकर लिखा है कि बद्रीनाथ से कांग्रेस के लखपत बुटोला और मंगलौर से काजी निजामुद्दीन की जीत गंगा-जमुनी तहजीब की जीत है। यहां के लोग सही विचारधारा वाले लोगों को विजयी बनाते हैं। वरना मंगलौर विधानसभा सीट पर आखिरी चार चरणों में उलटफेर की संभावनाओं के बीच कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन ने बाजी न मारी होती, जबकि प्रशासन उन्हें हराने पर तुला हुआ था। लेकिन चाक-चौबंद कार्यकर्ताओं की फौज ने ऐसा होने नहीं दिया। एक कांग्रेस नेता की यह टिप्पणी खूब वायरल है कि भाजपा के लिए यह हार एक सबक है। भगवान राम ने अयोध्या में हराया। बद्री बाबा ने बद्रीनाथ में करारी हार दिलाई। आने वाले समय में केदारनाथ से भी हार का संदेश आने वाला है।
उलटी गिनती
उफ्फ! चाटुकारिता की भी हद होती है। उस हद को पार करते हुए किसी को देखना हो तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को देख लीजिए। महाराष्ट्र सीएम ने कहा है कि पीएम मोदी के भीतर प्रभु राम हैं। यह कैसी चापलूसी है, जो एक साधारण मनुष्य को श्रीराम कहते हुए जबान नहीं लड़खड़ाती? वैसे पीएम मोदी भी तो खुद को बायलोजिकल नहीं मानते तो चमचे भी यही सब कहेंगे। सीएम महाशय की यह चापलूसी तब सामने आई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई में २९,४०० करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाली विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास किया। विधानसभा चुनाव की आहट के बीच अभी ऐसी कई लोकलुभावन घोषणाएं होंगी। बिहार की जनता २०१४ और २०१९ में की गई तमाम घोषणाओं का हिसाब आज भी मांग रही है, जिसका जवाब उन्हें नहीं मिल रहा। यह महाराष्ट्र है। यहां की जनता अपने वोटों के अधिकार के दम पर सीने पर चढ़कर हिसाब लेगी। खैर, मोदी में प्रभु राम देखने की हद तक चापलूसी करने वालों की उलटी गिनती महाराष्ट्र की जनता ने शुरू कर दी है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)