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झांकी : योगी की घेराबंदी

अजय भट्टाचार्य

लोकसभा चुनाव में हार के बाद लखनऊ में रविवार को भाजपा कोर कमेटी की बैठक की जो खबरें छनछन कर बाहर आ रही हैं, उनसे लगता है कि दिल्लीशाही ५ कालिदास मार्ग (मुख्यमंत्री) निवास में नए चेहरे की प्राणप्रतिष्ठा की तैयारी कर चुकी है, बस मौके और बहाने का इंतजार है। जाहिर तौर पर इस बैठक में उप्र में आगामी रणनीति को लेकर मंथन हुआ। कुछ दिनों बाद ही सूबे में १० सीटों पर उपचुनाव होना है। ऐसे में उपचुनाव की रणनीति को लेकर भी बैठक में चिंतन किया गया। इस बीच बैठक में हुए भाषणों को लेकर सियासी रणनीतिकार अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी के भाषण से ज्यादा उनके डिप्टी केशव मौर्या ने सुर्खियां बटोरी। केशव मौर्या ने सीधे-सीधे सरकार के मुखिया मतलब बाबाजी को ही यह कहते हुए निशाने पर लिया कि सरकार से बड़ा संगठन होता है। बंद सभागार की यह बात बाहर तक पहुंचाने के लिए उन्होंने किसी दूसरे का सहारा लेने के बजाय अपने भाषण की एक क्लिप सोशल मीडिया पर चिपका दी। जिसमें वे कहते हैं कि हर एक कार्यकर्ता हमारा गौरव है। संगठन सरकार से बड़ा था, है और रहेगा। मैं यहां पर देश के और राज्य के नेताओं के सामने कहता हूं कि संगठन से बड़ा कोई नहीं हो सकता। इस बैठक के बाद प्रदेश के आला नेताओं और केंद्रीय नेतृत्व की एक बैठक हुई, जिसमें प्रदेश में सांगठनिक स्तर पर बदलाव के साथ-साथ सत्ता और संगठन के बीच तालमेल पर भी मंथन किया गया। यह खुला सच है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा संगठन और सत्ता के बीच बढ़ी दूरियों का प्रभाव हाल में हुए लोकसभा चुनाव परिणामों पर दिखा। मौर्या और योगी के बीच रिश्ते सामान्य कभी नहीं रहे हैं। २०१७ के चुनाव में भाजपा ने एक रणनीति के तहत केशव मौर्या को चेहरा बनाया था। जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी वोटर्स को साधने के लिए मौर्या के सिर पर संगठन का ताज धर दिया था। ऐसे में जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बाबाजी की प्राण प्रतिष्ठा की गई, मौर्या के सपने बिखर गए। पिछले कई दिनों से मौर्या अपने दफ्तर भी नहीं जा रहे हैं। इस खबर में यह भी नत्थी है कि दूसरे डिप्टी सीएम बृजेश पाठक भी बाबाजी के खिलाफ गोलबंदी में लगे हैं।
बदली सरकार, जलवा बरकरार
सत्ता परिवर्तन के बाद भी राजस्थान में दो पूर्व पुलिस मुखियाओं का जलवा बरकरार है। एक पूर्व पुलिस प्रमुख सांसद बन गए हैं और दूसरे को राज्य सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त बनाया है। टोंक-सवाईमाधोपुर से सांसद बने हरीश चंद्र मीणा अशोक गहलोत सरकार में पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भाजपा ने हरीश चंद्र मीणा को दौसा से लोकसभा का टिकट दिया था। मोदी लहर में उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीत लिया। उसके बाद २०१८ में उन्होंने पाला बदलकर कांग्रेस का दामन थाम लिया और विधानसभा चुनाव में देवली-उनियारा से विधायक चुन लिए गए। उसके बाद से लगातार विधायक और सांसद बन रहे हैं। इसी तरह मोहन लाल लाठर अशोक गहलोत के मुख्यमंत्रित्व काल में राजस्थान पुलिस के मुखिया बने। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें राजनीति में एंट्री नहीं मिली लेकिन पिछले दिनों भाजपा की भजनलाल सरकार ने लाठर को मुख्य सूचना आयुक्त बनाकर तोहफा दिया। गहलोत की सरकार में ज्यादातर पूर्व आईएएस और पूर्व आईपीएस महत्वपूर्ण पदों पर काबिज थे। उस समय पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट खुद इस बात का विरोध करते थे। उनका तर्क था कि पूर्व अधिकारियों की जगह कार्यकर्ताओं को जगह मिलनी चाहिए। सचिन पायलट कार्यकर्ताओं की नाराजगी को देख रहे थे। आरोप लगा कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दरकिनार कर गहलोत सरकार पूर्व आईएएस और पूर्व आईपीएस पर मेहरबान है। अब लाठर को मुख्य सूचना आयुक्त बनाए जाने के बाद से भाजपा में भी खलबली है। हरीश मीणा मोदी लहर में बीजेपी के टिकट पर सांसद बने थे। लाठर को मुख्य सूचना आयुक्त की जिम्मेदारी देने से राज्य में सियासी हालात थोड़े `डगमगा’ गए हैं। इसलिए भाजपा कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के तवज्जों की बात खुद मुख्यमंत्री कह रहे हैं। आनेवाले दिनों में कई और नियुक्तियों की संभावना है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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