मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनातुम कहीं और मैं कहीं और

तुम कहीं और मैं कहीं और

किताबों में दुनिया छिपी है
किताबों में मोहब्बत छिपी है
किताबों में तुम कहीं गुम हो
किताबों में मैं कहीं गुम हूं
अपनी हर पहचान लापता है
न तेरा पता है न मेरा पता है
तुम मुझे ढूंढोगी कहां
मैं तुझे ढूंढूंगा कहां
मुझे हर बात पर गुरूर है
कि तुम हो चांद हो रोशनी हो और ख़्वाब हो
मुझे हर बात पर यकीं है
कि नींद तुम्हारी है
सपने मेरे हैं दिल तुम्हारा है
एहसास मेरे है आह्टें तुम्हारी है
धड़कने मेरी हैं मुझे हर बात पर यकीं है
मेरी मोहब्बत हो
मेरे होठों के सिलवट तक
लफ्जों के प्यास तक
इन्तजार के मोड़ तक
ख्यालों के राह से,
ख्वाबों के राह तक।
-मनोज कुमार
गोण्डा, उत्तर प्रदेश

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