मनमोहन सिंह
शनिवार को खाद्यान्न ले जाने वाली एक ट्रेन मणिपुर में पहुंची। इस पर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने खुशी जताते कहा, `पंजाब से खोंगसांग रेलवे स्टेशन पर चावल की पहली रेक के आगमन को देखकर खुशी हुई। रेक, जिसमें १५ वैगन शामिल थे, जिसमें ९५० टन माल था, मणिपुर के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर दर्शाता है।’ साथ ही बीरेन सिंह ने यह भी दावा किया है कि मणिपुर में संघर्ष विराम के आसार दिख रहे हैं, क्योंकि संघर्ष में फंसे दो समुदायों, मेतेई और कुकी के बीच बातचीत चल रही है।
तकरीबन पिछले १४ महीने से मणिपुर के हालात किसी से छुपे नहीं रहे हैं। हिंदुस्थान ही नहीं, बल्कि विदेश तक इस मसले पर बातचीत होती रही है, लेकिन सरकार है कि `सब ठीक है’ जैसे वाक्य से बाहर ही नहीं निकल रही। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का दावा भी कुछ इसी तरह से है। उनके दावे की पोल खोलने के लिए मीडिया रिपोर्ट्स जो वाकई इस मसले को लेकर गंभीर है, काफी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, कुकीस छात्र संगठन और स्वदेशी जनजातीय नेता मंच ने उनके इस दावे का खंडन किया है, उन्होंने बातचीत के लिए सरकार से किसी भी औपचारिक निमंत्रण से इनकार किया है।
पिछले हफ्ते बीरेन सिंह ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत चार लाख से अधिक लाभार्थियों को शामिल करते हुए कहा, `हम…राहत शिविरों में रहने वाले लोगों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। आज हम ६,००० परिवारों को २५,००० रुपए और लगभग ६०,००० लोगों को १,००० रुपए प्रदान कर रहे हैं। यह राज्यभर में राहत शिविरों में सभी लोगों को राहत प्रदान करेगा।’ वैसे उनके इन दावों में कितनी सच्चाई है यह जेसीआरई स्किल सॉल्यूशंस की रिपोर्ट बताती है। इम्फाल के निरंजन सिंह तीन राहत शिविरों के साथ मिलकर काम कर रहा है। सिंह कहते हैं, `शिविरों की अस्वच्छ स्थिति के कारण बड़े पैमाने पर बीमारियां हो रही हैं। हमने असम से राहत सामग्री इकट्ठा की और उन्हें घाटी के शिविरों में भेजा, जबकि नागालैंड से राहत सामग्री पहाड़ियों के शिविरों में भेजी गई।’ सीओटीयू रिलीफ के सचिव एन.एस गैंगटे के अनुसार, कांगपोकपी जिले में ५० कुकी शिविरों में १५,००० लोग, विशेषकर महिलाएं और बच्चे, अकल्पनीय शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। यह देख दुख होता है कि दवाओं की भी कमी है, उन्हें कब तक ये अत्याचार सहना पड़ेगा?’
गैंगटे के मुताबिक, `कुकी छात्र संगठन शिक्षा के मोर्चे पर हरसंभव प्रयास कर रहा है, जबकि गैर सरकारी संगठन, मानवाधिकार और ईसाई संगठन हमारी मदद कर रहे हैं।’ रातों-रात बेघर हो गए, सैकड़ों लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया है। हालात कुछ इस तरह हैं कि वे वापस लौटने से डर रहे हैं। विस्थापितों की दुर्दशा राजनेताओं के हाथों के मोहरों जैसी है। भले ही विपक्ष नेता राहुल गांधी मणिपुर में बार-बार दौरा कर चुके हैं। इसके बावजूद विस्थापितों की अमानवीय पीड़ा प्रधानमंत्री को मणिपुर आने के लिए प्रेरित करने में विफल रही है। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी का आना मणिपुर के लोगों के लिए उनके नजरिए से महत्वपूर्ण बनता है, लेकिन बीरेन सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री के आने या न आने का कोई सवाल ही नहीं है। अभी मणिपुर में क्या किया जा रहा है – सुरक्षा उपाय, पुनर्विकास कार्य, विकास और दोनों समुदायों (कुकी और मैतेई) के बीच शांति वार्ता-ये सब हैं प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हो रहा है….यहां कई दिनों से शांति है। एक लंबे अरसे के बाद प्रधानमंत्री ने मणिपुर के मामले में अपना बयान दिया। लेकिन उनके बयान और मणिपुर के मुख्यमंत्री सिंह के बयानों का असर मणिपुर की हिंसा पर होते नहीं दिखाई दे रहा है। मुख्यमंत्री लगातार दावा करते रहे कि वहां पर सब कुछ `ठीक’ है लेकिन सच्चाई तो यह है कि वहां सब कुछ ठीक सिर्फ `दिखावे’ के लिए ही है और इस बीच सशस्त्र उग्रवादी उस `ठीक’ है का फायदा उठाने से नहीं चूक रहे हैं।