डॉ. रमेश ठाकुर
रेलमार्ग क्यों बन रहे हैं यात्रियों के लिए कब्रगाह? बीते ३५ महीनों में १३१ रेल हादसों को देखकर प्रतीत होता है कि रेल महकमा लोगों की जान लेने पर पूरी तरह आमादा है। यात्रियों की कतई परवाह नहीं है उसे? हादसा होते ही शासन-प्रशासन द्वारा जांच-पड़ताल का हवाला देकर एकाध महीने में मामले को दबा दिया जाता है। हताहत होने वालों के परिजनों को मरहम-हमदर्दी के रूप में केंद्र या राज्य सरकारें मुआवजा देकर चुप करा देती हैं और अगले हादसे का इंतजार करने लगती हैं। इस कड़ी में ‘चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस’ हादसा हमारे सामने है। इस हादसे में भी पूर्ववर्ती जैसे नाकाफी कदम उठाए जाएंगे, शोर को शांत कराने की तमाम तरकीबें अपनाई जाएंगी। वरना, ऐसा तो है नहीं कि जैसे लाल बहादुर शास्त्री की तरह कोई नैतिकता के आधार पर जिम्मेदारी लेकर अपने पद से त्यागपत्र दे देगा। ऐसा तो सोचना भी नहीं चाहिए किसी को। निश्चित रूप से चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस रेल हादसे की जांच होगी, फिर चाहें कागजों में हो या धरातल पर। लेकिन परिणाम क्या निकलेगा, ये बात सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला ५वीं क्लास का बच्चा भी बता देगा। हादसे का कारण महकमे के किसी न किसी अधिकारी के सिर मढ़ा जाएगा। दो-चार सस्पेंड़ किए जाएंगे, कुछ महीनों के लिए, बाद में हिदायत देकर फिर से कमान दे दी जाएगी। जांच की फाइलें अधिकारियों की मेजों पर कुछ महीने घूमेंगी, फिर क्लोजर रिपोर्ट देकर, मामला हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।
रेल खामियों की लंबी फेहरिस्त है। बिंदुवार तरीके से देखें तो दिमाग चकरा जाता है। अव्वल तो यही है कि बारिश के दिनों में पटरियों पर रेल दौड़ाना सबसे बड़ा चोखिम होता है। पटरियों के नीचे पानी पिचपिचाने लगता है। पानी भर जाने से नीचे नमी आ जाती है तो तेज रफ्तार से दौड़ने वाली ट्रेन चलते वक्त लपलपाती भी हैं। बारिश में कई रेल ट्रैक तो पानी से बह भी जाती हैं। जहां चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसा हुआ उसके ढाई सौ किमी मीटर दूर पीलीभीत जिले में अभी कुछ माह पूर्व ही नया रेल ट्रैक बिछाया गया जो बारिश में बह चुका है। जबकि, उसके आगे अंग्रेजों के वक्त की बनी रेल पटरियां सुरक्षित हैं। इन जिंदा खामियों को देखकर भी रेल महकमा यात्रियों की जान से खुलेआम खेलता है। हादसा होंगे और कहां-कहां हो सकते हैं, इन सच्चाइयों से भी रेल विभाग वाकिफ होता है। ऐसे प्वाइंट को चिह्नित करके बाकायदा पहले रेल ट्रैक का निरीक्षण-परीक्षण करना चाहिए। स्थानीय हल्का डीएमआर को स्वंय जांच-पड़ताल करनी चाहिए। पर दुर्भाग्य वह बारिश के मौसम में अपने कमरों से बाहर निकलना तक मुनासिब नहीं समझते। ऐसी सभी जिम्मेदारियां रेल के चतुर्थ कर्मचारियों जैसे रेल बेलदार, पटरी चेकर और टेक्नीशियन पर छोड़ दी जाती हैं। ये कर्मचारी जब पटरियों से संबंधित खामियों की शिकायत उच्चाधिकारियों से करते हैं तो वह गौर नहीं फरमाते, उल्टा उन्हें ही डांट-डपट देते हैं। बारिश-मानसून में रेल पटरियों की आधुनिक तरीकों से जांच करने के बाद ही रेल संचालन की इजाजत देनी चाहिए। रेल मंत्रालय की दिसंबर-२०२० की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो रेल पटरियां पूरे हिंदुस्थान में जर्जर हालत में हैं, जो ८० किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चलनेवाली ट्रेनों के लायक नहीं हैं।
लेकिन हमारा रेल विभाग कमाल का है, उन्हीं ट्रैक पर बुलेट ट्रेन व हाई-स्पीड रेलगाड़ियां दौड़ाने की बात करता है। इस वक्त पूरे भारत में मूसलाधार बारिश का दौर है, जिसमें बड़े-बड़े ब्रिज, हाईवे, सड़कें तक धराशाई हुई हैं। बिहार में ब्रिजों के टूटने की चर्चांएं तो हर जगह हैं ही, उतराखंड़ में भी एक विशाल सिग्नेचरब्रिज ढह गया। ऐसे में यक्ष प्रश्न यही है कि भला रेल पटरियां वैâसे सुरक्षित रह पाएंगी। बिना जांच किए उन पर ट्रेनें दौड़ाना भी तो समझदारी नहीं? बड़े रेल हादसों में रेल मंत्री और टॉप अधिकारी पर आंच नहीं आती, वह बच निकलते हैं। जबकि, पहली जिम्मेदारी उन्हीं की होती है। क्योंकि हरी झंडी उन्हीं के द्वारा मिलती है।
बहरहाल, रेल हादसों की भारत में झड़ी लग चुकी है। कहीं से, कभी भी हादसे की कोई न कोई खबर सुनने को मिल जाती है। चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस भी यूपी के गोंड़ा में पलट गई, जिसमें तीन-चार यात्रियों की मौत की खबर है, कई लोगों के घायल होने की सूचनाएं हैं। सवाल उठता ऐसे रेल हादसों का तिलिस्म कभी टूटेगा भी या नहीं? पिछले तीन वर्षों में १३१ रेल हादसे हुए हैं। आंकड़ा ये भी कहता है कि जबसे अश्विनी वैष्णव ने रेल मंत्रालय का पदभार संभाला है, तभी से औसतन प्रत्येक महीने तीन हादसे हो रहे हैं। इसे संयोग कहें या रेल के भीतर की खामियां? जो भी कहें, भारतीय रेल यात्रियों की जान मुश्किल में जरूर हैं। कहीं ऐसा न हो कि रेल यात्री रेलों में चढ़ने से भी डरने लगे। पता नहीं उनका सफर कब बीच में खत्म हो जाए। पिछले तीन वर्षों में विभिन्न रेल हादसों में एक हजार से भी अधिक यात्रियों की मौत हुई है, जिनमें ६० करोड़ का मुआवजा बंटा और २३० करोड़ रूपए की सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ।
आम आदमी के जीवन में रेल का महत्व कितना बड़ा है ये बताने की जरूरत नहीं। रेल आम हिंदुस्थानियों की सुगम और सस्ती सवारी मानी जाती है। रेलमार्ग आर्थिक विस्तार और विकास को प्रोत्साहित करता है। पहुंच बढ़ाने और क्षेत्रीय एकीकरण को आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रेल परिवहन सभी के जीवन का मुख्य हिस्सा है। रेल से आम लोगों का विश्वास न टूटे, इसलिए रेल महकमे को और रेल सिस्टम को रिफॉर्म करने की दरकार है। रेल पटरियों और रेल संचालन में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। रेल महकमे में लाखों की रिक्तियां खाली हैं, उन्हें भरकर कर्मचारियों की कमी को भी पूरा किया जाए। रेल हादसे रोंगटे खड़े करते हैं। हाल ही में मात्र तीन बड़े हादसों में ३०० से ज्यादा यात्रियों ने अपनी जान गंवाई है।
(लेखक पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)