मुख्यपृष्ठस्तंभमोदीनॉमिक्स सिर्फ निचोड़ना जानती है! ... मिडिल क्लास मांगे यह टैक्स स्लैब!

मोदीनॉमिक्स सिर्फ निचोड़ना जानती है! … मिडिल क्लास मांगे यह टैक्स स्लैब!

एम. एम. सिंह
‘क्या मैं सभी को गरीब बना दूं?’ ये उद््गार हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के। अगर आपको याद हो तो आम चुनावों से पहले गंभीर और बढ़ती आय असमानता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था। दरअसल, हिंदुस्थान की मिडिल क्लास और गरीब जनता को यह उसी वक्त समझ जाना चाहिए था कि प्रधानमंत्री महोदय बेरोजगारी और महंगाई को लेकर कितने चिंतित हैं। जैसे-तैसे बैसाखियों के सहारे बनी सरकार ने अपने सातवें बजट में मिडिल क्लास को ऐसा तोहफा दिया है, जो न निगलते बन रहा है और न ही उगलते! इस बजट से अब यह भी साफ हो गया है कि सरकार को सिर्फ आमजनों को निचोड़ना आता है। वरना ऐसा क्यों होता कि पहले से ही टैक्स के बोझ से दबा हुआ आम आदमी की कांधे पर प्यार से पुचकारते हुए नया टैक्स स्लैब डाल दिया है, जबकि सच्चाई यह है कि आयकर (व्यक्तियों पर कर) से सरकारी राजस्व का हिस्सा १९³ है, जो कॉरपोरेट्स के योगदान (१७³) से अधिक है।
लंबे अरसे से फाइनेंस क्षेत्र से जुड़े दीपेंद्र राय का सवाल है, पिछले कुछ दशकों में वस्तुओं की कीमतें तीन गुना हो गई हैं, लेकिन कर स्लैब में बमुश्किल बदलाव हुआ है। प्रतिवर्ष ३ लाख कमाने वाले व्यक्तियों के लिए अपनी आय का ५³ कर देना कितना उचित है? उनका मानना है कि वर्तमान में १५ लाख और उससे अधिक की आय वाले लोगों ३०³ कर की दर है, जिसे ३० लाख से अधिक की आय वाले लोगों पर लागू किया जाना चाहिए।
हरियाणा के एक पब्लिकेशन हाउस से जुड़े जावेद खुर्शीद इस बात को कुछ इस तरह समझाते हुए सवाल करते हैं, ‘प्रतिवर्ष ३ लाख से ७ लाख कमाने वाले लोग आमतौर पर हाल ही में कॉलेज ग्रेजुएट्स होते हैं, जबकि प्रति वर्ष ७ लाख से १० लाख कमाने वाले लोग आमतौर पर मिडलएज वर्ग के व्यक्ति होते हैं जिनके सर पर उनके परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी होती है। यही वर्ग है, जिसकी गिनती अक्सर मिडिल क्लास में होती है। यह वर्ग पहले से ही महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करता है। उनके लिए अपनी आय का ५³ और १०³ प्रत्यक्ष करों में देना वैâसे उचित है?’
दरअसल, आम आदमी की जेब से टैक्स निकालना और कॉरपोरेट्स को टैक्स में सहूलियतें देना मोदीनॉमिक्स की नीति है। और इसके पीछे तर्क यह है कि इससे निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा और नौकरियां पैदा होंगी। लेकिन आंकड़े कहते हैं कि इस वैâल्कुलेशन का तर्क से कोई लेना-देना नहीं है। जानकारों का मानना है कि सरकार से टैक्स में राहत लेकर यह पूंजीपति इसका निवेश अपने उद्योगों को बढ़ाने के लिए वह अन्य कार्यों में करते जरूर है, लेकिन हालात इस तरह से बनाई जाती है कि नौकरियां जेनरेट हो नहीं पातीं और जो होती भी हैं, वे ऊंट के मुंह में जीरे के समान होती हैं! एक रिपोर्ट के मुताबिक, पांच साल पहले छोड़े गए करों से पता चलता है, जब कॉरपोरेट्स को कर में छूट दी गई थी वह सरकार के लिए प्रति वर्ष १.४५ लाख करोड़ रुपए के राजस्व घाटे की कीमत पर था।
सरकार के नए टैक्स स्लैब से मिडिल क्लास परेशान है। यह कुछ इस तरह है, जैसे किसी के एक हाथ में नौकरी से डिसमिस करने का लेटर और दूसरे हाथ में नई कार की चाबी हो! खैर ‘दोपहर के सामना’ ने कुछ अर्थशास्त्र के एक्सपर्ट्स और आम जनता से बातचीत की। उसके आधार पर कर राहत और नई कर व्यवस्था में संशोधित टैक्स कर संरचना किस प्रकार होनी चाहिए थी उसकी बानगी इस तरह है। देखिए बॉक्स।
बेशक यह मिडिल क्लास के लिए एक बड़े तोहफे से कम नहीं होता, लेकिन सरकार ने तो अपनी सोच ही बदलकर रखी है।

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