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संपादकीय : ३७० का छलावा! …कश्मीर में क्या बदला है?

कश्मीर से अनुच्छेद ३७० हटाए हुए पांच साल हो गए हैं। जब गृहमंत्री शाह ने संसद में अनुच्छेद ३७० को हटाने की घोषणा की, तो गृहमंत्री शाह ने ऐसा दिखावा किया कि जैसे मानो वे पाकिस्तान को भारत में लाकर ‘अखंड हिंदुस्थान’ का सपना साकार कर रहे हों। कश्मीर से धारा ३७० हटाते ही भाजपा ने देश में दिवाली मनाई। देश के फिर से आजाद होने की घोषणा कर दी। कहा गया कि मोदी और शाह थे इसलिए कश्मीर आजाद हुआ। कांग्रेस शासन काल में कश्मीर प्रांत गुलाम था। भारतीय नागरिकों को कश्मीर जाकर जमीनजुमला खरीदने की इजाजत नहीं थी। उद्योगपति वहां निवेश नहीं कर पाते थे। धारा ३७० हटने से अब कोई भी जाकर जमीनजुमला खरीद सकता है। जोर-शोर से कहा गया कि कश्मीरी युवाओं को नौकरियां मिलेंगी। ५ अगस्त की इस घटना को पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन कश्मीर की स्थिति में क्या बदलाव आया है? कितने उद्योग, कितनी नौकरियां कश्मीरी युवाओं को मिलीं? उत्तर है एक बड़ा सिफर। ३७० हटने से कश्मीरी पंडितों के जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ा है। पंडितों की जिंदगी आज भी जम्मू के शरणार्थी शिविरों में नरक यातना भोग रही है। मोदी-शाह ने बार-बार कहा कि धारा ३७० हटने से पंडितों की घर वापसी होगी, उन्हें उनकी जमीनें, सेब के बगीचे वापस मिलेंगे, हिंदुओं को उनकी प्रतिष्ठा और उनका मान-सम्मान वापस मिलेगा। इन पांच सालों में कुछ नहीं हुआ और कश्मीर को लेकर मोदी-शाह द्वारा किए गए सारे वादे खोखले निकले। हिंदू वोट पाने के लिए २०१४ और २०१९ में कश्मीर की सियासत की गई। उसे पुलवामा जवानों के नरसंहार का फायदा मिला। भाजपा ने सत्ता पाने के लिए कश्मीरी पंडितों के खून और आंसुओं की कीमत लगाई। धारा ३७० हटने के बाद भी कश्मीर में खून और आंसुओं का बहना बंद नहीं हुआ है। पांच साल में कश्मीर घाटी में कोई नया उद्योग नहीं आया। इस कारण युवाओं को नौकरी नहीं मिली। जम्मू की स्थिति अलग है और कश्मीर घाटी की वास्तविक स्थिति अलग है। पांच वर्षों में कश्मीर में सेना और सार्वजनिक स्थानों पर हजारों हमले हुए और दो सौ से अधिक सैनिक बलिदान हुए। ये तस्वीर तकलीफदेह है धक्कादायक है। २०२४ में जब मोदी तीसरी दफा प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तब भी कश्मीर में सैन्य ठिकानों पर आतंकी हमले जारी थे। ३७० हटने के बाद भी कश्मीर में नागरिक जीवन सुचारु नहीं हो पाया है। वहां की कानून व्यवस्था सेना के नियंत्रण में है। वहां सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी अफ्स्पा (एएफएसपीए) लागू है। पांच साल में केंद्र सरकार वहां विधानसभा चुनाव कराने की हिम्मत नहीं दिखा पाई है। अनुच्छेद ३७० हटने के बाद कश्मीर का स्वतंत्र दर्जा खत्म कर दिया गया और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया। राज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर का राज-काज चला रही है। जिसके चलते सर्वत्र भ्रष्टाचार एवं अराजकता का बोलबाला हो गया। राज्यपाल पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। राज्यपाल ने अपने बेटे की शादी में रात्रिभोज का आयोजन किया और राजभवन से उनके लाखों के बिल को मंजूरी दे दी। इससे सवाल उठता है कि जिस तरह की लूट चल रही है और क्या अनुच्छेद ३७० इसी मकसद से हटाया गया था। केंद्र से विकास के नाम पर कश्मीर में आने वाला सैकड़ों करोड़ का फंड कहां जा रहा है? विकास का क्या हुआ यह एक रहस्य है! पांच साल में एक भी नया उद्योग नहीं। कोई नौकरियां नहीं। कोई कानून व्यवस्था नहीं। कश्मीरी पंडितों की घर वापसी नहीं। विधानसभा का ताला खुला नहीं, तो धारा ३७० का किया क्या? जब कश्मीर एक विशिष्ट परिस्थिति में विशेष दर्जा वाला राज्य बना, तब यह पाकिस्तान के संघर्ष की सीमा पर था। कहा जाता है कि कश्मीर के लिए या कश्मीर की आजादी के लिए भाजपा के महागुरु श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बलिदान दिया था और भाजपा की पाठशाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने धारा ३७० हटाने के मुद्दे को हिंदू अस्मिता से जोड़कर राजनीतिक माहौल बना दिया। लेकिन श्यामाप्रसाद मुखर्जी का इतिहास कहता है कि जब देश में आजादी का आंदोलन चल रहा था और बंटवारे का तनाव बढ़ रहा था, तब भाजपा के महागुरु श्यामाप्रसाद मुखर्जी बंगाल में मुस्लिम लीग वैâबिनेट में शामिल हो गए थे और आजादी के लिए ‘चले जाओ’ आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों से बल प्रयोग करने को कह रहे थे। अत: क्या ऐसे विचारों वाले श्यामाप्रसाद कश्मीर की आजादी के लिए शहीद हुए, यह नए सिरे से सोचने का विषय है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्य अच्छे हैं, लेकिन यह भी मानना ही ​​होगा कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान नहीं है। आपातकाल के दौरान भी सरसंघचालक की भूमिका समन्वय और सरकार के मामले में सहयोग की रही। १९४७ के पाकिस्तान आक्रमण में कश्मीर की धरती पर शहीद होने वाले शहीदों में ब्रिगेडियर उस्मान, अब्दुल हमीद जैसे वीरों के नाम सबसे आगे हैं। धारा ३७० हो या न हो, पिछले ७० वर्षों से कश्मीर को लेकर सभी जातियों और धर्मों के जवान अपना सर्वोच्च बलिदान देते आ रहे हैं। धारा ३७० हटने के बावजूद संघर्ष और बलिदान जारी है। कश्मीर घाटी में कुछ भी नहीं बदला है। धारा ३७० का छलावा है। लेकिन हिंदू अब जाग चुका है!

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