अमिताभ श्रीवास्तव
सबको उम्मीद है। उम्मीद केवल जीत की नहीं, बल्कि उस रिकॉर्ड की भी है जिसे तोड़ने के लिए नीरज चोपड़ा ने भाला उठाया है। जी हां, ९० पार। ९० मीटर भाला फेंकना नीरज का सपना है और वो इससे बस कुछ ही दूरी पर हैं। कोई आश्चर्य नहीं होगा कि आज नीरज ९० मीटर को पार कर दें। दरअसल, यह सब इसलिए सोचा जा सकता है क्योंकि नीरज चोपड़ा ने क्वालिफिकेशन राउंड में ही कमाल दिखाया है और खुद कहा है कि फाइनल के लिए सर्वश्रेष्ठ बचाकर रखा है। इस लिहाज से देखा जाए तो उनका लक्ष्य केवल गोल्ड म्ेडल जीतना नहीं है, बल्कि ९० मीटर पार अपने भाले को पहुंचाना है। ८९.३७ मीटर फेंकने के बाद बचता क्या है? बस थोड़ी और ताकत से भाला ९० पार होना है। नीरज मानसिक तौर पर पूरी तरह से तैयार हैं। आज होगा उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन। उम्मीद यही है, बाकी खेल में सब कुछ संभव है।
अंपायरों ने छीनी जीत
टीम इंडिया बनाम अंपायर
जी हां, यही सच है और अंपायरों से भला कौन जीत सकता है, जब वे आपके खिलाफ मानसिकता वाले हों। फिर चाहे वो मुक्केबाजी हो या हॉकी। हॉकी में तो हद कर दी गर्इं हिंदुस्थान के खिलाफ गलत पैâसले देकर। ब्रिटेन के खिलाफ मैच में रेड कार्ड दिखाकर अमित रोहिदास को बाहर कर देना, जिसका खामियाजा जर्मनी के खिलाफ भी भुगतना पड़ा और सेमीफाइनल के इस मैच में तो जर्मनी की जीत के लिए अंपायरों ने हद पार कर दी। ये माना कि जर्मनी ने दो गोल हमारे खिलाड़ी जरमन सिंह की गलती से कर दिए मगर तीसरा गोल तो अंपायरों ने हम पर किया। यही नहीं बल्कि मैच के वक्त तीन-चार महत्वपूर्ण निर्णय अंपायरों ने जर्मनी के पक्ष में दिए, जो साफ तौर पर हॉकी न जाननेवाला भी बता सकता है कि गलत हुआ। दरअसल, कोई खिलाड़ी अंपायरों के खिलाफ नहीं जा सकता, कोई संगठन अंपायरों के विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकता अपने बैन के डर से तो यूरोपीयन हॉकी का दबदबा बनाए रखने के लिए हिंदुस्थान के खिलाफ लगातार गलत पैâसले देकर उसे हरवाने की मानसिकता रहती है। यह नाजायज फायदा उठाया जाता है। अन्यथा विश्व की ऐसी कोई टीम नहीं है जो टीम इंडिया को हरा सके। बस यही कारण है कि आज बेईमानी से उसे हराया जा रहा है।
सच बोलो, खुन्नस का शिकार बनो
यह सच बोलने की सजा है कि राजनीति शुरू कर दी जाती है। अपनी खुन्नस निकाली जाती है, देश को भ्रमित कर दिया जाता है और खिलाड़ियों की मानसिकता को दूषित कर दिया जाता है। बैडमिंटन के मेंटोर प्रकाश पादुकोण ने एक सच क्या बोल दिया उनके खिलाफ ही बैडमिंटन खिलाड़ी भड़क उठी। ऐसी खिलाड़ी भड़की जो पेरिस ओलिंपिक में अपने सारे डबल्स मैच हार चुकी थी। अश्विनी पोनप्पा। अश्विनी को अपनी पराजय का दुख नहीं है, बल्कि दुख है कि खिलाड़ियों को समझाने के लिए कोई वैâसे बोल सकता है? उन्हें चाहिए कि खिलाड़ी हारे या जीतें, उन्हें बस सिर पर ही बैठाया जाता रहे। अश्विनी जैसी खिलाड़ियों की वजह है कि आज हम पराजय के बाद कोई सीख लेने से वंचित रह जाते हैं। लक्ष्य सेन के हारने के बाद प्रकाश पादुकोण ने सच ही तो कहा था कि खिलाड़ियों को अपनी हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसमें क्या गलत था जो भड़क कर प्रकाश को जवाब दिया गया कि जीत की क्रेडिट लेने को तो आगे रहते हैं मगर हार में साथ नहीं देते। अश्विनी का बयान सरासर एक लीजेंड की प्रतिष्ठा को बदनाम करने जैसा है। सच को झुठलाने जैसा है।