महाराष्ट्र में मिस्टर लाचार शिंदे एंड कंपनी की नेतृत्व वाली असंवैधानिक मौजूदा सरकार आगामी विधानसभा चुनाव के बाद हमेशा के लिए भंग हो जाएगी, लेकिन इस ‘खोकेबाज’ सरकार ने राज्य के खजाने की जो भयानक दुर्दशा की है, उसे चिंताजनक कहा जाना ही उचित है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि राज्य के वित्त विभाग के पास छह साल पहले घोषित ऋण माफी योजना के तहत किसानों को ऋण माफी की राशि का भुगतान करने के लिए धन नहीं है। इसलिए २०१७ में तत्कालीन फडणवीस सरकार द्वारा घोषित छत्रपति शिवाजी महाराज शेतकरी सम्मान योजना के कई पात्र किसानों की ऋण माफी निधि के अभाव के चलते रुकी पड़ी है। एक तरफ जहां राज्य में किसानों की हालत खराब हो गई है। बैंकों का कर्ज, साहूकारों से उधार, बीज और खाद की आसमान छूती कीमतें, खेती की लागत में भारी वृद्धि और इन सबकी तुलना में किसी भी फसल या कृषि उपज से प्राप्त होनेवाली कीमत की कुल खर्च से किसी तरह की पटरी न बैठने से राज्य के तमाम किसान वर्ग दिन-ब-दिन अधिक से अधिक परेशानियों में डूबता जा रहा है। सभी फसलों की कीमतें यथावत रहने और उत्पादन लागत दोगुनी होने से किसानों की कमर टूट गई है। आर्थिक तंगी के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याओं में एक बार फिर से वृद्धि हुई है। राज्य में प्रतिदिन औसतन नौ किसान आत्महत्या करते हैं और सरकार मौत के मुंह में जा रहे अन्नदाताओं के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है। २०१७ में मुख्यमंत्री रहते हुए देवेंद्र फडणवीस ने योजना को छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम देकर ऋण माफी योजना शुरू की थी। घोषणा उन किसानों को डेढ़ लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने की थी, जिन्होंने १ अप्रैल, २००१ से फसल और मध्यम अवधि के ऋण लिए थे, लेकिन जून २०१६ तक बकाया थे। लेकिन पहले महाऑनलाइन पोर्टल पर गड़बड़ी और फिर महाआईटी में स्थानांतरण के बाद भी, लगभग १,३०,००० किसानों के ऋण खातों में अभी भी कुल १,६४४ करोड़ रुपए की ऋण माफी बाकी है। इसके अलावा लगातार २ साल तक फसल ऋण चुकाने वाले १ करोड़ ७२ लाख किसानों में से २ लाख ३३ हजार किसानों के भी ३४६ करोड़ रुपए अभी भी देने बाकी हैं। इससे पहले २०१७ में किसानों का डेटा उपलब्ध नहीं था, ऐसा चलताऊ कारण सरकार ने गिनाया था, लेकिन अब यह डेटा मिलने के बाद भी किसानों के खाते में ६ साल से बकाया कर्ज माफी की रकम जमा कराने में ढिलाई बरती जा रही है। किसानों का डेटा और बकाए की रकम का प्रस्ताव राज्य के वित्त विभाग के पास लंबित है। इसके बावजूद वित्त मंत्रालय इस प्रस्ताव पर पड़ी गर्द को झटकने को तैयार नहीं है। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की जनता द्वारा शिंदे और महायुति को करारा झटका देने के बाद लाचार सरकार में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच यह दिखाने की होड़ शुरू हो गई कि उन्हें जनता की कितनी परवाह है। उसने ‘लाडली बहन’, ‘लाड़ला भाई’ आदि जैसी लोकप्रिय योजनाओं की झड़ी शुरू कर दी। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव अब सामने हैं। उससे पहले यह सरकारी खजाने से प्रलोभन या रिश्वत देकर मतदाताओं को आकर्षित करने का एक तरीका है। ‘लाडली बहन’ योजना से सरकार पर हर साल पड़ेगा ४६ हजार करोड़ रुपए का बोझ, कहां से लाएंगे ये फंड? खबरें थीं कि वित्त विभाग की ओर से ऐसा सवाल पूछा गया था। लेकिन हम वह कर रहे हैं जो असंभव है, सरकार की यह गर्वोक्ति है। सरकार की नई लोकलुभावन घोषणाओं के लिए सरकारी खजाने में पैसा नहीं है। वित्त विभाग इन नई योजनाओं के लिए आवश्यक धनराशि के जुगत में व्यस्त होने के कारण ही सरकार ने छह साल पहले घोषित ऋण माफी योजना में शेष किसानों के लिए ऋण माफी का प्रस्ताव छोड़ दिया है, जो धूल खा रहा है। यह दिखाने की कोशिश में कि वे दानवीर कर्ण के अवतार आदि हैं। इन खोखेबाजों ने राज्य की अर्थव्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं। वर्ष २०२१-२२ में प्रति व्यक्ति आय में पांचवें स्थान पर रहनेवाला महाराष्ट्र अब छठे स्थान पर आ गया है। राज्य पर ८ लाख करोड़ का कर्ज है और खजाना ठन-ठन गोपाल है, इस सच्चाई को नजरअंदाज करते हुए ‘घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने’ की तर्ज पर खोकेबाज सरकार ‘अलाणा लाड़ला’, ‘फलाणा लाड़ला’ की घोषणा कर रही है। ऐसे में कर्ज माफी योजना के जिन किसानों की रकम पिछले ६ सालों से अटकी पड़ी है क्या वे किसान भी सरकार के लाड़ले नहीं हैं? महाराष्ट्र के किसानों को लाचार शिंदे सरकार से ये सवाल जरूर पूछना चाहिए!