संजय राऊत
विनेश फोगाट ने १०० ग्राम वजन कम होने के कारण ओलिंपिक में अपना कुश्ती का ‘पदक’ गवां दिया। विनेश जीती हुई कुश्ती हार गर्ईं। आपने क्या किया? इस घटना से हमारा देश सिर्फ स्तब्ध हुआ। विश्वगुरुओं के भारत ने वह ‘जोर’ नहीं लगाया, जो केन्या जैसे छोटे देश ने अपने खिलाड़ियों के साथ हुए अन्याय के खिलाफ लगाया। हम केवल स्तब्ध हो गए!
विनेश फोगाट ने ओलिंपिक में जीता हुआ पदक गवां दिया, जिस पर भारत में सिर्फ आक्रोश व्यक्त किया गया। भारत पूरी तरह से क्रिकेटमय देश बन गया है। क्रिकेट में जब भारत हारता है तो पूरे देश में सूतक लगने जैसा वातावरण छा जाता है। अहमदाबाद के मोदी स्टेडियम में जब भारत क्रिकेट विश्व कप हार गया तो कई घरों में चूल्हे नहीं जले, लेकिन जब पहलवान विनेश फोगट ने ओलिंपिक के फाइनल राउंड में पहुंचकर जीता हुआ पदक गवां दिया तो कितने लोगों को वास्तव में दुख हुआ? विनेश फोगाट ने ५० किलोग्राम वर्ग में कुश्ती लड़ी, लेकिन फाइनल में उनका वजन १०० ग्राम बढ़ गया, जिससे उन्हें प्रतियोगिता और ओलिंपिक से ही बाहर कर दिया गया और भारतीय ओलिंपिक संघ ने इसका जोरदार विरोध भी नहीं किया। पीएम मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध रोक सकते हैं! (ऐसी उनके अंधभक्तों की अंधश्रद्धा।) विश्वगुरु के रूप में, वे दुनिया में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सकते हैं। मोदी के लिए बताया जाता है कि सब कुछ संभव है, लेकिन पेरिस ओलिंपिक में एक भारतीय महिला पहलवान के साथ अन्याय हुआ। उस महिला के साथ वे न्याय नहीं दिला सके और विनेश फोगाट जीती हुई बाजी हार गईं। फोगाट ने अब कुश्ती को ही राम-राम कर दिया है, यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है!
नई दंगल
आमिर खान ने ‘दंगल’ फिल्म का निर्माण किया था। यह कुश्ती क्षेत्र की दो लड़कियों के संघर्ष की, उनके पिता की लड़ाई की, मान-अपमान की और अंत में उनकी जीत की कहानी है। यह फिल्म हरियाणा की फोगाट बहनों के जीवन पर ही आधारित थी। ये कथानक रोमांचक और धमाकेदार थी। कुश्ती के क्षेत्र में किस तरह की राजनीति चलती है, वह इस फिल्म के माध्यम से पर्दे पर देखने को मिली। भारतीय कुश्ती संघ में महिला पहलवानों को कैसी चुनौतियों से होकर गुजरना पड़ता है, ये विनेश फोगाट ने दुनिया के सामने लाया। प्रशिक्षु महिला पहलवानों के शोषण के खिलाफ विनेश फोगाट और उनके साथियों को दिल्ली के ‘जंतर-मंतर’ पर विरोध प्रदर्शन करना पड़ा। इस आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस बल का प्रयोग किया गया। भारत की इस महान महिला पहलवान को पुलिस ने कैसे घसीटते हुए बाहर निकाला, ये दुनिया ने देखा। फिर भी विनेश फोगाट ने प्रशिक्षण लिया और ओलिंपिक में जगह बनाई, लेकिन ‘हमारे खिलाफ साजिश रची जा रही है। देखते हैं ओलिंपिक में क्या होता है,’ ऐसा फोगाट ने पेरिस जाने से पहले कहा था। विनेश फोगाट ने स्वर्ण मेडल निश्चित किया था। वह गले में पड़ने से पहले ही उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और देश सिर्फ स्तब्ध हुआ। यदि किसी को अनुचित तरीके से प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया है तो उसके खिलाफ अपील करने की सहूलियत ओलिंपिक में है। पेरिस ओलिंपिक में ही ऐसा हुआ है। सिर्फ उस देश में दम होना चाहिए। केन्या जैसे छोटे और कमजोर देश ने जो किया, वो भारत के बड़बोले नेता और विश्वगुरु प्रधानमंत्री क्यों नहीं कर पाए? केन्या की खिलाड़ी Faith Kipyegon ने ५,००० मीटर दौड़ स्पर्धा में अच्छा प्रदर्शन किया। उसे विनेश फोगाट की तरह ही बाहर कर दिया गया। उसका रजत पदक छीन लिया गया। केन्याई सरकार और ओलिंपिक प्रशासन ने पूरी ताकत लगा दी। अपने खिलाड़ी पर लगा अपात्रता का फैसला निरस्त करवाया। उसे उसका रजत पदक दिलवाया। ऐसा सरकार में ‘दम’ हो, तभी हो पाता है। अब एक नई जानकारी सामने आई है। ओलिंपिक में गोल्ड मेडल छीन लेने से भारत देश और इस देश की सरकार सिर्फ स्तब्ध हुई, लेकिन निराशा के बावजूद विनेश अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए खड़ी हो गईं। विनेश व्यक्तिगत रूप से ऑर्बिट्रेशन में गईं। ऐसे में अपनी प्रतिष्ठा पर आंच न आए, इसलिए भारतीय ओलिंपिक संघ ने उनका समर्थन किया। पेरिस में कुछ स्वयंसेवी वकील, स्वयंसेवी संगठन, PRO BONO उसका मुकदमा लड़ेंगे। PRO BONO का अर्थ है नि:शुल्क सेवा। ये सब फोगाट ने खुद ही किया। तब तक हमारा ओलिंपिक संघ क्या कर रहा था? भारत का ओलिंपिक संघ अप्रभावी हो गया है। यदि संभव हो तो भारत को इसे खत्म ही कर देना चाहिए।
बाल काटे फिर भी
विनेश फोगाट का वजन सौ ग्राम बढ़ गया। अगर विनेश के सिर के बाल काटे जाते तो भी १०० ग्राम कम हो जाता। सौ ग्राम क्या अपात्र ठहराने का ‘आंकड़ा’ है? सेमीफाइनल के बाद विनेश फोगाट का वजन कैसे बढ़ गया? सेमीफाइनल में जीत के बाद जब उसका वजन बढ़ गया तो उसके कोच और अन्य चिकित्सा अधिकारी क्या कर रहे थे? क्या विनेश ने भारतीय कुश्ती संघ की ओछी राजनीति के कारण पेरिस ओलिंपिक की कुश्ती में अपना स्वर्ण पदक गंवाया? जब विनेश ने कुश्ती संघ में व्याप्त शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी, तब प्रधानमंत्री मोदी ने मौनव्रत धारण कर रखा था। वो मौनव्रत उन्होंने विनेश के ‘पदक’ गवांने के बाद तोड़ा। प्रधानमंत्री ने ‘देश की बेटी’ कहते हुए उन्हें धीरज दिया और देश आपके साथ है, ऐसा कहा। उससे क्या होगा? कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने लोकसभा में कहा, ‘विनेश के पदक खोने से देश को दुख हुआ है, लेकिन भाजपा को शायद खुशी के लड्डू फूटते हुए दिखाई दे रहे हैं।’ यही सच्चाई है। भारत की खुशियों पर ‘सौ’ ग्राम भारी पड़ गया। एक संदिग्ध सौ ग्राम ने भारत की खुशी छीन ली। विश्वगुरु और उनकी सत्ताधारी पार्टी रूस के साथ यूक्रेन के युद्ध को रोकने में सफल रही, लेकिन जिस फ्रांस से ‘राफेल’ खरीदा गया, उस फ्रांस में सौ ग्राम के कारण गंवाया हुआ पदक हासिल नहीं कर पाए।
पचता नहीं
विनेश फोगाट का स्वर्ण पदक मोदी और उनके लोगों के लिए पचाना मुश्किल रहा होगा। क्योंकि विनेश भाजपा की ‘प्यारी बेटी’ या ‘प्यारी बहन’ नहीं है। प्यारी बहनें सरकार को आरोपियों के कटघरे में खड़ा नहीं करतीं। विनेश ने वो गलती की थी। ‘जंतर-मंतर’ पर विनेश ने देश की अनगिनत प्यारी बहन-बेटियों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी। दिल्ली के ‘जंतर-मंतर’ पर कई रातें जागकर बिताईं। जब विनेश ने देखा कि न्याय नहीं मिल रहा है और भाजपा सरकार सुन नहीं रही है तो उन्होंने सारे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदक प्रधानमंत्री के दरवाजे पर रख दिए। तब विनेश को बदनाम करने का कोई मौका भाजपा ने नहीं छोड़ा था। विनेश का ओलिंपिक में पदक जीतना मतलब भाजपा सरकार को थप्पड़ जड़ने जैसा ही है। यह इतिहास में दर्ज किया जाएगा कि दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था और उस व्यवस्था के विश्वगुरु अपनी लाड़ली बेटी के साथ खड़े नहीं हुए। भारत की राजनीतिक दूषित व्यवस्था ने विनेश फोगाट को हराया, यह भी उस इतिहास में रेखांकित किया जाएगा। विनेश फोगाट देश की बेटी है। उस बेटी के लिए अब देश क्या करेगा? देश के खेल मंत्री संसद में कहते हैं, विनेश फोगाट के प्रशिक्षण पर सरकार ने ७७ लाख रुपए खर्च किए। ये पैसा भाजपा ने अपने चुनावी फंड के खाते से नहीं दिया था। यह जनता का पैसा है। फोगाट लड़ी, जीती और हार गईं। देश सिर्फ स्तब्ध हुआ। सत्ताधारियों ने चेहरे पर दु:ख दिखाया, लेकिन अंदर-ही-अंदर वे खुशी से झूम रहे थे। इस बेटी के लिए देश क्या करेगा? उसे भारतरत्न देंगे? अवश्य दें। विनेश को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त सदस्य के रूप में राज्यसभा भेजकर उसका सम्मान करें।
भारत के जो लोग अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक संघ के सदस्य हैं, उन्हें निषेध के तौर पर तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए।
सिर्फ स्तब्ध होकर क्या करोगे?