सैयद सलमान मुंबई
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के वर्गीकरण और उसमें क्रीमी लेयर लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। इस मुद्दे पर पहले चुप्पी साधने को लेकर विपक्ष के निशाने पर आई केंद्र सरकार की नींद आखिर टूटी है। अब सरकार ने एक अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को निरस्त करने का निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जब एससी और एसटी आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा को मंजूरी दी थी तब तो सरकार ने क्रीमी लेयर लागू करने पर विचार करने को कहा था। अब सरकार ने संविधान का हवाला देते हुए कदम पीछे खींच लिए हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे, मायावती, चंद्रशेखर और चिराग पासवान जैसे कुछ नेता सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करनेवालों में आगे थे। हालांकि, सच्चाई यही है कि जमीनी स्तर पर दलित बुद्धिजीवियों और विचारकों के दबाव में सरकार ने अध्यादेश लाने का मन बनाया है। अपने मन का कुछ भी कर लेनेवाली १० साल पुरानी सरकार अब मजबूत विपक्ष के सामने अक्सर घुटने टेक दे रही है।
मासूम मशवरे वाले नेता!
केंद्रीय राज्यमंत्री रामदास आठवले की तुकबंदियों से प्रधानमंत्री सहित पूरा सदन लहालोट होता रहता है। आम जनता सहित खुद आठवले भी समझ नहीं पाते कि यह उनकी तारीफ में ठहाके गूंज रहे हैं या मजाक उड़ाया जा रहा है, लेकिन जो भी हो बंदे ने केंद्र में राज्यमंत्री के पद पर कब्जा कर ही रखा है। बाकी उनके कार्यकर्ताओं को अघोषित छूट है कि वह जिस भी दायरे में फिट हो सकते हैं, वहां फिट रहें, बस रिपाई (आठवले) वाला विजिटिंग कार्ड और लेटर हेड सरकारी कार्यालयों में पहुंचते रहना चाहिए। एक बात की तारीफ करनी होगी कि वह अपने कार्यकर्ताओं द्वारा चिह्नित संबंधित अधिकारियों को हड़काते भी हैं। कम से कम आम जनता का काम तो हो ही जाता है। बस आठवले दूसरे दलों को मशवरे बहुत देते हैं और भाजपा का बचाव करते रहते हैं। मासूम से आठवले साहब को लगता है ईडी पर विपक्षी नेताओं को परेशान करने के आरोप लगाना गलत है। शायद यही तरीका भाजपा आलाकमान को भाता भी होगा। संभवत: आठवले को इस ताजे बयान के बाद विधानसभा चुनाव में एनडीए एकाध सीट देकर कृतार्थ कर दे।
यूपी उपचुनाव हुआ रोचक
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के बाद दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं। उपचुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल रणनीति बनाने में जुट गए हैं। भाजपा जहां अपने छोटे-मोटे सहयोगी दलों को कोई भाव नहीं दे रही है, वहीं लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित नतीजे देकर चौंकानेवाले इंडिया गठबंधन में भी खींचतान जारी है। कांग्रेस ने ५ सीटों पर अपना दावा पेश कर दिया है। कांग्रेस का तर्क है कि जिन ५ सीटों पर समाजवादी पार्टी के विधायक चुने गए हैं, उन पर सपा को चुनाव लड़ना चाहिए और कांग्रेस को भाजपा और उसके सहयोगियों के कब्जे वाली बाकी ५ सीटों पर चुनाव लड़ने देना चाहिए। उधर लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार कर भी मायावती के हौसले पस्त नहीं हुए हैं। उन्होंने आगामी उपचुनाव के लिए रणनीति बनाने पर मंथन करना शुरू कर दिया है। उन्होंने आरक्षण की पहले की स्थिति को बहाल रखने के लिए संविधान संशोधन की मांग रखकर गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है। कुल मिलाकर उपचुनाव तक की यह गहमागहमी मतदाताओं पर क्या असर करती है, यह निश्चित नहीं कहा जा सकता।
बिहार की तिकड़ी
बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर मुख्य केंद्र बन गए हैं। प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान तेजस्वी यादव को मुख्य लक्ष्य बनाकर चल रहा था, लेकिन वे अब नीतीश कुमार पर भी निशाना साध रहे हैं। उधर तेजस्वी ने हाल ही में यह दर्शाते हुए प्रशांत किशोर पर हमला किया कि उनकी बेरोजगारों को नौकरी देनेवाली अपनाई गई रणनीति से प्रशांत खुश नहीं हैं। नीतीश कुमार पहले जब तेजस्वी के साथ थे तब अगले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी को नेतृत्व सौंपने की घोषणा की थी, लेकिन उनकी राजनीतिक चालें बाद में बदल गईं और उन्होंने भाजपा की झोली में अपना सिर डाल दिया। प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान जाति और धर्म से परे युवाओं पर केंद्रित है, जबकि तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की राजनीति मुख्य रूप से जातीय समीकरणों पर आधारित है। इन तीन लोगों के बीच भाजपा का अपना कोई एजेंडा काम ही नहीं कर रहा। अब देखना यह है कि बदलते समीकरणों के बीच आगामी विधानसभा चुनाव तक भाजपा नीतीश को कितना महत्व देती है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)