योगेश कुमार सोनी
वायु प्रदूषण को लेकर इस समय देश की स्थिति बेहद चिंताजनक बनती जा रही है। यह मीठा जहर हम रोज ले रहे हैं और इस ओर किसी की भी कोई गंभीरता नजर नहीं आ रही। मौजूदा स्थिति के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 100 में से लगभग 12 लोगों की मौत यहां की खराब हवा के कारण होती है। एक रिपोर्ट में दिल्ली को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया था। पूरे वर्ष यहां की हवा खराब रहती है। सर्दी में समस्या और बढ़ जाती है। यह मामला किसी भी प्रकार से छोटा नहीं है। इस मामले में अदालत से लेकर संसद तक इस समस्या पर चिंता जताई गई थी लेकिन इसके बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है। इस क्षेत्र में किसी ने कोई काम नहीं किया। जैसे ही सर्दी बढ़ेगी सरकारें एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति शुरू कर देगी, लेकिन समय रहते इसका कोई समाधान नहीं निकालता। वाराणसी में भी वायु प्रदूषण से होने वाली मौत 10 प्रतिशत से अधिक है। इसके अलावा भी तमाम ऐसे इलाके हैं जहां वायु प्रदूषण मानव जीवन पर भारी पड़ रहा है। हमारे देश के स्वच्छ वायु मानदंड डब्ल्यूएचओ के 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के दिशा निर्देश से चार गुना अधिक है,जो बेहद परेशान करने वाला आंकड़ा है। इस वजह से वायु प्रदूषण के लिहाज से बेहतर माने जाने वाले शहरों में भी लोगों की जान जा रही है। स्थिति यह है कि मुंबई, कोलकाता बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों में हवा अपेक्षाकृत साफ रहती है, लेकिन इन शहरों में भी प्रदूषण से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार इस हिसाब से हवा में पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ के मानक से अधिक है। मौसम के बदलते स्वरूप की वजह से अब वह बीमारियां सामने आ रही हैं जिनका नाम कभी सुना भी नहीं था। साथ ही कम उम्र में मधुमेह, कैंसर व हार्ट अटैक जैसी बीमारियों ने हमें आईना दिखाना शुरू कर दिया लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी हम वैसे के वैसे ही हैं। सर्दियों के दिनों में कोर्ट भी दिल्ली को गैस चैंबर तक घोषित कर देता है। पिछले कुछ वर्षों से हम देखते आ रहे हैं कि दिवाली के बाद प्रदूषण बहुत परेशान करता है। आंखों में जलन होना, गले में खराश रहने के अलावा थोड़ी दूर का स्पष्ट दिखाई तक नहीं देता। बच्चों, बुर्जुगों व अस्थमा के मरीजों की तो मानों आफत आ जाती है। इस खतरनाक प्रदूषण की वजह से बच्चों की स्कूलों की छुट्टी पड़ने लगी। हमारी तंत्र प्रणाली को भलि-भांति पता है कि लोगों का जीवन प्रदूषण की वजह से खत्म होता जा रहा है लेकिन उनकी सक्रियता व गंभीरता का धरातल पर कोई असर न दिखना मानव जीवन को खत्म कर रहा है और इसके अलावा हम आनेवाली पीढ़ी को अपने हाथों से मारने जैसा काम कर रहे हैं। इस घटना की सबसे अद्भुत बात यह है कि इस मामले में सबकी सोच एक जैसी है, मतलब सुधरना कोई नहीं चाहता। अब प्रदूषण फैलने के दूसरे पहलू की बात करें तो केंद्र व राज्य सरकारों ने पराली न जलाने के लिए किसानों को लगातार जागरूक करती है, साथ में पराली को नष्ट करने के लिए मुआवजे के अंतर्गत मशीनें भी देती हैं जिसके लिए करोड़ों बजट भी पारित किया जाता है लेकिन किसान मशीन तक नहीं खरीदते। हरियाणा में इसकी रोक के लिए तमाम आईएएस व आईपीएस की ड्यूटी भी लगाई थी लेकिन आखिर कोई कब तक निगरानी रखेगा। जब हम ही सुधरने को तैयार नहीं हैं तो क्या फायदा?
दिल्ली-एनसीआर में अभी सर्दी नहीं पड़ी और अभी से ही हाल इतना बुरा है कि यहां सांस लेने इस कदर भारी तकलीफ हो रही है जैसे कि किसी बड़ी फैक्ट्री के अंदर दम घुटता है और अब सर्दी के अलावा बाकी अन्य दिनों या यूं कहें कि पूरे वर्ष ऐसी ही स्थिति रहने लगी। यदि आज यहां के किसी भी स्वस्थ व्यक्ति की जांच कराई जाए तो निश्चित तौर पर उसको फेफड़ों से संबंधित बीमारी निकलेगी। इसका ताजा उदाहरण प्रदूषण के दिनों में देखने को मिलता है। क्योंकि हॉस्पिटल में सांस से संबंधित मरीजों की संख्या ज्यादा होती है। डॉक्टरों के अनुसार प्रदूषण की मात्रा बढ़ने के कारण ऑक्सीजन कम हो जाता है, जिस वजह से अस्थमा के मरीजों की मौत तक हो जाती है। इसके अलावा दिवाली के बाद जो प्रदूषण हमारी सांस में जाता है उससे पूरे शरीर का सिस्टम बेहद प्रभावित हो जाता है। जिसमें लीवर में भी समस्या होने लगी व छोटे बच्चों के शरीर के विकास में भी प्रभाव पड़ने लगा। बीते कुछ वर्ष पूर्व केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई थी जिसमें ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स के अनुसार गंभीर वायु प्रदुषण के चलते दिल्ली स्वास्थ्य के हिसाब से 65वें स्थान पर आ चुकी है। इस रिपोर्ट में यह दर्शाया गया था कि अब यह शहर रहने योग्य नहीं है।
बहरहाल, स्वास्थ्य जैसे मामलों में लापरवाही करना या हल्के में लेना हमें ही नुकसान पहुंचाता है। यदि इस बात को समझ लें कि हर काम डर से नहीं यदि अपनी मर्जी से भी लेंगे जिसमें हमारा ही फायदा है तो उसको जरूर कर लेना चाहिए वरना अंजाम हमारे सामने है। यदि नहीं सुधरे तो आने वाले समय में हालात और भी बुरे होने वाले हैं। हम हाईटैक होने के चक्कर में अपने स्वास्थ्य की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहे, जिससे मानव जीवन पर लगातार संकट बना हुआ है। प्रदूषण की जंग जीतने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे चूंकि जितने भी प्रदूषण के कारण हैं उन पर सख्ती से कार्यवाही करने की जरूरत है। शासन-प्रशासन को एक बड़े एक्शन ऑफ प्लान की जरूरत है।महानगरों में बढ़ती जनसंख्या की वजह से वाहनों का लगातार बढ़ना जारी है जिसकी वजह से प्रदूषण तो बढ़ता ही है, साथ में अव्यवस्थाएं भी लगातार बढ़ रही है। पेड़ों का काटना लगातार जारी है। मानव को शहरीकरण की भूख ने इतना बर्बाद कर दिया कि उसको प्रकृति से कोई लेना-देना नहीं है। हरियाली के नाम पर सब खत्म होता जा रहा है। यदि दिल्ली के चारों छोर की बात करें तो,एक तरफ गुरुग्राम,दूसरी तरफ राज नगर,तीसरी ओर लोनी बॉर्डर तो चौथी तरफ नरेला आता है वहां पहले बहुत हरियाली होती थी लेकिन वहां लगातार इतनी इमारत बन चुकी हैं वहां पेड़ों का नामो-निशान खत्म होता जा रहा है। यह भी एक बडा चिंता का विषय है और इसके लिए हमें एक बहुत बडी रणनीति की जरूरत है।
वरिष्ठ पत्रकार