धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
जेजे अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा मेडिकल स्टोरों और लैबों से कमीशन लेने की शिकायत को मानवाधिकार आयोग ने गंभीरता से लिया है। इसी के साथ ही जेजे अस्पताल प्रशासन ने भी कमीशन लेनेवाले रेजिडेंट डॉक्टरों की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए समिति का गठन किया है, जो पांच दिनों में ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई का प्रारूप तैयार करके अस्पताल प्रशासन को सौंपेगी। ऐसे में आनेवाले दिनों में कमीशन लेनेवाले डॉक्टरों पर कार्रवाई का कोड़ा बरसेगा।
उल्लेखनीय है कि ४३ एकड़ में पैâले सर जेजे अस्पताल में हर दिन ३००० से अधिक मरीज आते हैं। साथ ही एक हजार से अधिक भर्ती मरीजों का इलाज किया जाता है। इस बीच मरीज हमेशा आरोप लगाते रहे हैं कि अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टरों और निजी लैब चालकों के साथ ही मेडिकल स्टोर मालिकों के बीच साठगांठ है। मरीजों को खून जांच और दवाइयां खरीदने के लिए बाहर भेजा जाता है, जबकि अस्पताल में ही सभी सुविधाएं हैं। इसके लिए रेजिडेंट डॉक्टर लैब चालकों और मेडिकल स्टोर मालिकों से प्रत्येक मरीज पर कमीशन लेते हैं। बता दें कि इसे रोकने के लिए कई तरह के प्रयास किए गए थे। यहां तक अस्पताल में घुसनेवाले निजी लैबों के कर्मचारियों को रोकने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी भी बनी थी। इतना ही नहीं करीब ६०० सीसीटीवी कैमरों से निगरानी भी रखी जा रही थी। लेकिन सभी कोशिशें बेकार साबित हुई हैं।
सुनवाई में हाजिर नहीं हुए सचिव
इसे लेकर मानवाधिकार आयोग से शिकायत की गई थी। इसके बाद इस संबंध में अयोग ने मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट के सचिव को समन जारी किया था। एक जुलाई को हुई सुनवाई में सचिव के प्यून ने हाजरी लगाई और उनके बाहर होने की जानकारी दी। इसलिए अगली सुनवाई ११ सितंबर को रखी गई है।