सामना संवाददाता / लखनऊ
‘दरअसल, ये ‘कृपाप्राप्त उप मुख्यमंत्री जी’ शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थियों के साथ नहीं हैं, वो तो ऐसा करके भाजपा के अंदर अपनी राजनीतिक गोटी खेल रहे हैं। वो इस मामले में अप्रत्यक्ष रूप से, जिनके ऊपर उंगली उठा रहे हैं, वो ‘माननीय’ भी अंदरूनी राजनीति के इस खेल को समझ रहे हैं।’
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने २०१९ में हुई ६९ हजार सहायक अध्यापक भर्ती के चयनित अभ्यर्थियों की सूची नए सिरे से जारी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने १ जून २०२० और ५ जनवरी २०२२ की चयन सूचियों को दरकिनार कर नियमों के तहत ३ महीने में नई चयन सूची बनाने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में पिछली सूची के आधार पर नौकरी कर रहे शिक्षकों की सेवा पर भी संकट खड़ा हो गया है। इस पूरे मुद्दे को लेकर पक्ष-विपक्ष भी आमने-सामने हैं। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने पैâसले को सही करार दिया है और कहा है कि सामाजिक न्याय की दिशा में यह स्वागत योग्य कदम है। उनके बयान पर अखिलेश यादव ने कटाक्ष किया है। अखिलेश ने मौर्य को ‘कृपापात्र मुख्यमंत्री’ बताते हुए कहा कि दर्द देनेवाले दवा देने का दावा न करें।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने केशव मौर्य को कृपापात्र उपमुख्यमंत्री बताते हुए कई व्यंग्य बाण छोड़े। अखिलेश ने कहा कि दर्द देनेवाले दवा देने का दावा न करें। ६९,००० शिक्षक भर्ती मामले में उत्तर प्रदेश के एक ‘कृपाप्राप्त उप मुख्यमंत्री जी’ का बयान भी साजिशाना है। पहले तो आरक्षण की हकमारी में खुद भी सरकार के साथ संलिप्त रहे और जब युवाओं ने उन्हीं के खिलाफ लड़कर लंबे संघर्ष के बाद इंसाफ पाया तो अपने को हम दर्द साबित करने के लिए आगे आकर खड़े हो गए।