कविता श्रीवास्तव
आज रक्षाबंधन है। भाई-बहन के रिश्ते की मजबूत डोर बांधने का दिन। बहन की रक्षा के लिए भरोसा कायम रखने की याद दिलाने का दिन। यह त्योहार हर वर्ष आता है, लेकिन इस बार यह त्योहार ऐसे मौके पर आया है, जब सारे देश में बहनों के साथ होने वाली दरिंदगी और क्रूरता को लेकर बढ़ते जनाक्रोश का वातावरण है। स्वयं प्रधानमंत्री को बहनों की सुरक्षा के लिए स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से आवाज उठाने की जरूरत पड़ती है। कोलकाता में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ हुई रेप और हत्या की वारदात से देशभर के डॉक्टरों में रोष है।
पश्चिम बंगाल ही नहीं उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड में भी बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने वालों ने महिला सुरक्षा के दावों की धज्जियां उड़ा रखी हैं। झारखंड में एक स्पेनिश पर्यटक के साथ हुए सामूहिक बलात्कार से व्यापक यौन हिंसा का मुद्दा सामने आया है और महिलाओं की सुरक्षा पर चिंता बढ़ी है। पिछले सप्ताह यूपी के लखीमपुर खीरी में १३ साल की एक दलित लड़की का गैंगरेप हुआ और उसकी लाश गन्ने के खेत में मिली है। यूपी में रेप और बढ़ते अपराध से सरकार कटघरे में है और मुख्यमंत्री योगी के रामराज्य का दावा खोखला सिद्ध होता है। इस साल राष्ट्रीय महिला आयोग को प्राप्त कुल १२,६०० शिकायतों में से आधे से अधिक ६,४७० उत्तर प्रदेश से थीं। दिल्ली से १,११३ शिकायतें मिलीं। इधर महाराष्ट्र से ७६२ शिकायतें मिलीं, जहां सरकार महिलाओं को `लाडकी बहिण’ योजना का झुनझुना थमा कर अपनी पीठ थपथपा रही है। महिलाओं पर राजनीति हर जगह हो रही है। कोलकाता कांड में दरिंदों को बचाने की साजिश की बातों ने जोर पकड़ा है। हर तरफ शोर है, लेकिन ऐसी वारदातें अभी भी कम नहीं हो रही हैं, तभी तो प्रियंका गांधी ने देश में रोजाना रेप की औसतन ८६ घटनाएं होने पर भारी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण देकर बचाने की कोशिशों पर कड़ी आपत्ति उठाई है। जानकार भी कहते हैं कि बलात्कार के मामलों में घटिया जांच और प्रारंभिक स्तर पर साक्ष्यों को नजरअंदाज करने से मामले हल्के हो जाते हैं। सत्ता व राजनीतिक संपर्क होने से आरोपी अक्सर बेखौफ बच निकल जाते हैं।
भारत में सदियों से समाजिक तौर पर महिलाओं को कमतर ही आंका गया है। उन्हें लैंगिक भेदभाव, उत्पीड़न, यौन शोषण, शिक्षा की कमी, दहेज समस्या, लैंगिक वेतन अंतर और बहुत कुछ सहना पड़ता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कई रूप हैं। दहेज हत्या, ऑनर किलिंग, कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, शील भंग, मानव तस्करी, जबरन वेश्यावृत्ति, घरेलू हिंसा, तेजाब फेंकने जैसी घटनाएं होती रहती हैं। हालांकि समाजिक बदलाव के साथ आज की महिलाएं राजनीति, समाजसेवा, सेना, पुलिस, आर्थिक, औद्योगिक, व्यावसायिक, वरिष्ठ पदस्थ सेवाओं और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में बड़ी तादाद में सक्रिय हैं। खेल, कला और मनोरंजन की दुनिया में भी महिलाएं अव्वल स्थानों पर हैं। परिवार और समाज में उन्हें पहले से बेहतर सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। फिर भी कुछ संकीर्ण सोच और कुछ आपराधिक प्रवृत्तियों के कारण महिलाओं के खिलाफ़ अपराधों को समाप्त करना आज भी बड़ी चुनौती है।