मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : कन्फ्यूज मोदी और हीरो राहुल!

राज की बात : कन्फ्यूज मोदी और हीरो राहुल!

द्विजेंद्र तिवारी
मुंबई
लोकसभा चुनाव के नतीजे ४ जून को आने के बाद देश का माहौल इतनी तेजी से बदलेगा, यह किसी ने सोचा भी नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रियता के पायदान पर इतनी तेजी से नीचे गिरेंगे, उन्होंने और उनकी भजन मंडली ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा।
एग्जिट पोल के नतीजे धराशायी होने के बाद वैसे तो देश की जनता किसी ओपिनियन पोल या सर्वे पर भरोसा करने के मूड में नहीं है। पर पिछले दिनों एक ओपिनियन पोल ने लोगों का ध्यान खींचा है। पोल में ४ जून को आम चुनाव के नतीजे आने के बाद इन तीन महीनों में देश के मूड के बारे में कुछ दिलचस्प आंकड़े सामने आए हैं। इस सर्वे की पृष्ठभूमि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सीटें कम होते हुए भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार का नेतृत्व करना जारी रखना है।भारत के अगले प्रधानमंत्री बनने के लिए सबसे उपयुक्त राजनीतिज्ञ के लिए नरेंद्र मोदी अब आधे से भी कम लोगों की पसंद हैं। राहुल गांधी को इस पद पर देखने की राय रखने वाले लोग बढ़ रहे हैं। पिछली बार जब सर्वेक्षण किया गया था, तब मोदी को ‘उत्कृष्ट’ मानने वालों की संख्या में ७.३ फीसदी की गिरावट आई थी। यह गिरावट केवल तीन महीने की है। समय के साथ यह आंकड़ा बढ़ता जाएगा। कई मोर्चों पर राहुल गांधी के आक्रामक रुख से मोदी जी और उनकी सरकार के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।
भाजपा सरकार द्वारा जांच एजेंसियों जैसे ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग का दुरुपयोग भी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभर रहा है। दुरुपयोग से संबंधित सवाल पर असहमत लोगों से काफी ज्यादा संख्या सहमत लोगों की है। यह विपक्ष की कामयाबी है कि जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का मुद्दा चुनाव से पहले उठाया गया। उसका असर चुनाव नतीजों पर रहा। चुनाव बाद भी लोग मान रहे हैं कि सरकार गलत कर रही है। एक प्रमुख मुद्दा यह भी उठता रहा है कि मोदी सरकार कुछ चुनिंदा और पसंदीदा उद्योगपतियों के हित में कम करती है। आधे से ज्यादा लोग मानते हैं कि मौजूदा आर्थिक नीतियां बड़े कारोबारियों के लिए हैं। इससे असहमत लोगों की संख्या काफी कम है। सर्वे के ये नतीजे केंद्र और मोदी सरकार की छवि के लिए बेहद घातक हैं। यह आंकड़ा और भी ज्यादा होगा, यदि आम जन से बात की जाए। इस तरह की नीति से देश का बहुत नुक़सान होता है। विदेशी निवेशक ऐसे माहौल में देश में पूंजी लगाने से कतराते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि कुछ स्थानीय उद्योगपतियों को तरजीह दिए जाने के कारण उनके व्यापार को सरकार की तरफ से मनोवांछित सहयोग नहीं मिलेगा।
सर्वे के मुताबिक, अब विपक्ष के नेता राहुल गांधी का कद बढ़ गया है। सर्वे में शामिल आधे लोगों ने उनके प्रदर्शन को या तो शानदार या अच्छा माना है। लगभग एक-चौथाई लोगों ने उनके प्रदर्शन को जबरदस्त और बेहतरीन बताया है। संसद के बजट सत्र में गांधी हमलावर मोड में दिखे और भाजपा समेत उसके शीर्ष नेता बैकफुट पर रहे। इस सर्वे के अनुसार, गांधी को हिंदू विरोधी कहना भाजपा को नुकसानदेह साबित हो रहा है। उनके लिए अपमानजनक शब्दावली का इस्तेमाल करने का अभियान उल्टा पड़ता दिख रहा है। अन्य विपक्षी नेताओं की तुलना में उनके लिए लोगों में खासी पसंदगी है और राष्ट्रीय स्तर पर वे सभी विपक्षी नेताओं के बीच सबसे बड़े नेता के रूप में उभर रहे हैं।
राहुल गांधी ने जाति जनगणना का जो मुद्दा उठाया है, उसे व्यापक समर्थन मिल रहा है। सर्वेक्षण में शामिल तीन-चौथाई लोगों ने इस मांग का समर्थन किया। यह इस बात को दर्शाता है कि राहुल गांधी ने देश के एक बड़े वर्ग के मूड को समझते हुए अपनी यह मांग आगे रखी है। सर्वेक्षण में शामिल तीन चौथाई लोग आंदोलनकारी किसानों की एक प्रमुख मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का समर्थन करते हैं। २०२१ में मोदी सरकार को अलोकप्रिय कृषि कानूनों पर पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा था। किसानों के मुद्दे पर विपक्ष लगातार आगे बढ़ रहा है और भाजपा को इससे निपटने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। सर्वेक्षण पर कितना यकीन करें, यह अपनी-अपनी राय हो सकती है, पर कुछ मुद्दों पर देश की रुझान का पता चलता है। तीन प्रमुख समस्याओं महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी पर सरकार की नाकामी उभर कर आती है। मतलब यह कि सामाजिक या धार्मिक मामलों से ज्यादा आर्थिक विषय हर किसी के विचारों में सबसे ऊपर हैं।
तो क्या यह माना जाए कि आर्थिक मोर्चे पर पिछले १० वर्षों में मोदी सरकार के कामकाज से देश की जनता बिलकुल खुश नहीं है? इस सीमित और लघु सर्वेक्षण में भी यह राय उभरकर आ रही है। मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बेरोज़गारी है। बढ़ती आबादी के साथ इस आबादी के कुशल संयोजन की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन और सरकार की होती है। लेकिन शासन में बैठे अफसरों और नेताओं की राय इस मामले में बहुत ही अगंभीर है। दुनिया के सारे अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि भारत में सबसे ज्यादा युवा शक्ति है, जिसके बेहतर इस्तेमाल की जरूरत है। पर इस विषय को लेकर कोई गंभीर नहीं है। दरअसल, मोदी जी उद्भ्रांत (कनफ्यूज) हो गए हैं। वे खुद को और अपनी सरकार को पूर्ववर्ती सरकारों, खासकर कांग्रेस सरकारों से अलग दिखाना चाहते हैं और कुछ नया करना चाहते हैं। पर उन्हें सही सलाह और मार्गदर्शन नहीं मिल रहा है। कुछ भी करने जाते हैं, कोई न कोई पेंच पैदा हो जाता है। नतीजा यह होता है कि उन्हें फैसले वापस लेने पड़ते हैं। नए नाम से ही सही, पेंशन स्कीम वापस लानी पड़ रही है। वक्फ बोर्ड पर कदम वापस लेने पड़े। नीतियों के मामले में सरकार दिशाहीन है। नोटबंदी की सलाह देने वाला मोदी जी का कुनबा उन्हें हर नीति पर गुमराह कर रहा है। उनकी भजन मंडली अभी तक लोकसभा चुनाव में हार के सदमे से बाहर नहीं आई है। इस सर्वेक्षण से एक छोटे से समूह के मूड का पता चलता है। यह साबित करता है कि देश का मतदाता सब जानता समझता है और वक्त आने पर सही पैâसला भी सुनाता है। मशहूर कव्वाल अजीज नाजां लिख गए हैं-
सैकड़ों ऐब सही एक हुनर रखते हैं
बेखबर लाख सही तेरी खबर रखते हैं।
(लेखक कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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