प्रेम की डगर

प्रेम जीवन की पतवार है
अंदाजों से प्रेम डगर पर न चलना।
प्रेम गुलाब की पंखुड़ियां बिछी राह है,
कंटीली गुलाब की झाड़ियां
दामन थामती और फाड़ती भी हैं।
जहां बड़ी-बड़ी लहरें नहीं उठती
वहीं गहराई अधिक होती है
धोखे, छलावे, बुलावे अधिक होते हैं।
प्रेम पतवार जीवन की उमंगों को
पीड़ा सागर में डुबो देती हैं।
प्रेम में सफलता, असफलता को
अपना प्रारब्ध मत समझो
कभी अपनी भूल को, उठे गलत कदम समझो।
कहीं थोड़ी सी हरी दूब देख पांव रखा था
धंसा दिया पीड़ा के दलदल में।
तिल्लसमी प्यार सच्चाई नहीं है
एक कोहरे की चादर है
जो सीमा से आगे देखने नहीं देती।
पौं फटती है कुंआरी आशाओं के साथ
आखेटक मांदों से बाहर आ निकलते हैं।
चेहरे की चमक, लुनाई, परिधान
पर्दा होते हैं असलियत छुपाने के।
श्रापित राजा नल भूल गए दमयंती को
आज युवक कामांध हो
दृष्टि हीन, मर्यादा हीन हो जाते हैं।
अस्मिता नारी की जाती है
अखबारों के हाशिए पर रोज मरती है।
दलदल में फसीं मछली है
जो न मरती है, न जी पाती है।
प्रेम का भूत चढ़े तो अपनो को साथ रहने दो
माता-पिता, बहन-भाई जो तुम्हारे अपने हैं,
जो तुम्हें अभिशप्त होने से पहले बचा लेंगे।
-बेला विरदी

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