मुख्यपृष्ठस्तंभवीकेंड वार्ता : `कास्टिंग काउच' और फिल्म इंडस्ट्री!

वीकेंड वार्ता : `कास्टिंग काउच’ और फिल्म इंडस्ट्री!

एम.एम. सिंह
इस बात की सच्चाई को स्वीकार करने में कि हॉलीवुड में गढ़े गए `कास्टिंग काउच’ शब्द को फिल्मों में भूमिका के बदले यौन संबंधों के लिए एक व्यंजन के रूप में स्वीकार किया गया है और लगभग हिंदुस्थानी फिल्म इंडस्ट्री का भी अब यह चलन बन गया है, मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में विशेष रूप से महिलाओं द्वारा सामना किए जानेवाले मसलों पर हेमा समिति की रिपोर्ट खुलासा करती है! रिपोर्ट के मुताबिक, यौन संबंधों को इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए `पास-की’ बनाना, और इसे सामान्य बनाना और इसे सहमति से यौन गतिविधि के साथ जोड़ना, इंडस्ट्री को स्वाभाविक रूप से शोषणकारी बनाता है।
केरल स्थित वीमेन इन सिनेमा कलेक्टिव द्वारा प्रस्तुत एक याचिका के आधार पर २०१७ में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था और दो साल बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसे पिछले सप्ताह जारी किया गया। इसमें फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ भेदभाव, शोषण और यौन उत्पीड़न की स्थिति के बारे में आश्चर्यजनक और परेशान करने वाले खुलासे शामिल हैं। इसके अलावा रिपोर्ट अन्य असमानताओं पर भी रोशनी डालती है, जिससे महिलाओं को तकलीफ पहुंचती है, जिसमें शूटिंग लोकेशन पर टॉयलेट, चेंजिंग रूम, सुरक्षित परिवहन और आवास जैसी आवश्यक सुविधाओं की कमी शामिल है, जो निजता के अधिकार का उल्लंघन है। रिपोर्ट में पारिश्रमिक में भेदभाव और बाध्यकारी संविदात्मक समझौतों की कमी को भी रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इसका असर पूरी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं पर पड़ता है चाहे वह अभिनेत्री हो या फिर तकनीशियन, मेकअप आर्टिस्ट, डांसर और सहायक के तौर पर जुड़ी हों।’ समिति की प्रमुख सिफारिशों में से एक सिनेमा में महिलाओं के सामने आनेवाले मुद्दों के समाधान के लिए एक कानून बनाना और एक न्यायाधिकरण का निर्माण करना शामिल है। इसमें आईसीसी की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा गया है कि आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) अप्रभावी हो सकती है, यदि शक्तिशाली व्यक्ति आईसीसी सदस्यों को पक्षपातपूर्ण तरीके से शिकायतों से निपटने के लिए धमका सकते हैं या मजबूर कर सकते हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना ​​है कि रिपोर्ट में हुए खुलासे सरकार को विशेष जांच के लिए आगे बढ़ने का आधार प्रदान करते हैं। हालांकि, विपक्षी दलों ने रिपोर्ट जारी करने में देरी के लिए सरकार की आलोचना की है और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एक महिला टीम के नेतृत्व में जांच की मांग की है। सरकार ने कहा है कि यदि समिति के समक्ष गवाही देनेवाला कोई भी व्यक्ति अपने कथित उत्पीड़कों के खिलाफ शिकायत लेकर आगे आता है तो वह निर्णायक रूप से अपनी उचित भूमिका निभाएगी। इस बीच, केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने सरकार को पूरी समिति की रिपोर्ट एक सीलबंद कवर में जमा करने का निर्देश दिया है और की जानेवाली कार्रवाई पर सरकार की स्थिति मांगी है। मामले की सुनवाई १० सितंबर को फिर से होगी।
संशोधित रिपोर्ट जारी होने को डब्ल्यूसीसी की आंशिक जीत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इससे उनके द्वारा उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा शुरू हो गई है। इससे उस इंडस्ट्री में सुधारात्मक उपाय भी किए जा सकते हैं। मलयालम फिल्म इंडस्ट्री जो अब अपने सिनेमा की गुणवत्ता के लिए राष्ट्रीय सुर्खियों में है, उसके पास एक अच्छा मौका है खुद में सुधार लाने के लिए।
इस रिपोर्ट के बाद इस निर्णय को एक अच्छे कदम के तौर पर देखा जा सकता है कि केरल सरकार ने उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित करने का पैâसला किया है। अहम बात यह है कि जांच के बाद कड़े पैâसले लिए जाएं, महिलाओं के उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिए कड़े कानून बनाने के साथ-साथ उनका पालन करने की भी सख्ती से कोशिश की जाए। उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि महिला उत्पीड़न का मामला सिर्फ मलयालम फिल्म उद्योग से ही नहीं जुड़ा है बल्कि समूची फिल्म इंडस्ट्री की महिलाएं इस तरह के उत्पीड़न का शिकार होती रहती हैं। कभी -कभार महिला कलाकार इंडस्ट्री में अपने उत्पीड़न की बात को बहादुरी के साथ सामने रखती हैं उसके बाद इस तरह की शिकायतों का उबाल सा आता है और फिर बात आई गई हो जाती है, `मी टू’ कैंपेन इसका एक जीता जागता उदाहरण है!

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