मुख्यपृष्ठस्तंभशिलालेख : घातक है अंधविश्वास

शिलालेख : घातक है अंधविश्वास

 हृदयनारायण दीक्षित
अंधविश्वास बढ़ रहा है। अंधविश्वास राष्ट्रजीवन के लिए घातक है। देश को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। आखिरकार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब क्या है? संसार प्रत्यक्ष है। विज्ञान कार्य कारण की व्याख्या है। भारतीय दर्शन में तर्क और प्रतितर्क का विशेष महत्व है। आधुनिक विज्ञान सब कुछ जानने की जिज्ञासा है। प्राचीन काल में ऋषि सृष्टि रहस्यों पर विचार करते थे। ऋग्वेद में जिज्ञासा है कि मरुत (वायु) किस शक्ति से वर्षा करते हैं और किस देश से आते हैं? सूर्य प्रत्यक्ष हैं। संपूर्ण जगत के लिए उपास्य हैं। भौतिक सत्य हैं। ऋषि की जिज्ञासा है कि ‘वह रात्रि में किस क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं।’ वैदिक समाज को सूर्य के दर्शन में आनंद मिलता था। सूर्य पर अनेक सूक्त हैं। आधुनिक विज्ञान ने अनेक सौरमंडल जान लिए हैं। ऋग्वेद में इसी से मिलती-जुलती जिज्ञासा है कि सूर्य हैं कितने? यहां सूर्य पर एक मजेदार प्रश्न है कि सूर्य आकाश से क्यों नहीं गिरता? उसका आधार क्या है? ऋग्वेद में ऐसे सैकड़ों प्रश्न हैं। क्या इन प्रश्नों को वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता? विज्ञान का जन्म और विकास ऐसा ही प्रश्न बेचैन जिज्ञासा से हुआ है।
विज्ञान भौतिक जगत के अणु, परमाणुओं व गोचर प्रपंचों का अध्ययन है। चरक संहिता प्राचीन ज्ञान का महान ग्रंथ है। चरक संहिता में आत्मा को द्रव्य बताया गया है। यही बात इसके पहले वैशेषिक दर्शन में है। प्राचीन विज्ञान की जड़ें प्राचीन संस्कृति में हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने बड़ी उन्नति की है। अथर्ववेद के एक ऋषि ने सफेद बालों को काला करने की दवा खोजी थी। इसे विज्ञान कहेंगे या अध्यात्म। कभी-कभी प्राचीनता के समर्थक भी अतिउत्साह में आधुनिक काल में हुई खोजों को प्राचीन बताते हैं। यह विषय विशेष शोध के लायक है। भारतीय काव्य परंपरा में आकाश मार्ग और विमान के उल्लेख हैं। विमान की बात कल्पना हो सकती है। विमान की कल्पना के लिए भी वैज्ञानिक चित्त चाहिए। प्राचीन काल में विमान थे या नहीं थे यह शोध का विषय है। इतिहास और पुरातत्व का है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए साक्ष्य चाहिए। प्राचीन आख्यान के एक मजेदार पात्र हैं नारद। वह बिना किसी वाहन के दुनिया के किसी भी कोने की यात्रा कर लेते हैं। नारद का उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत और रामायण में है। नारद यत्र-तत्र सर्वत्र भ्रमण करते हैं। वैदिक भारत में तर्कशास्त्र और दर्शन का विकास हो रहा था। आधुनिक काल में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करने का काम यहां के विद्वानों ने किया। प्राचीन भारत अंधविश्वासी नहीं था। ऋग्वेद में प्रकृति के भीतर एक सारभूत नियम व्यवस्था का उल्लेख है। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार ‘ईश्वर भी प्राकृतिक संविधान में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।’ प्राचीन विज्ञान में सृष्टि के गोचर प्रपंचों की गहन जिज्ञासा थी। तैत्तिरीय उपनिषद् (उत्तर वैदिक काल) में भृगु को पिता ने बताया ‘अन्न ही संपूर्णता है। अन्न से प्राण हैं।’ यहां प्रत्यक्ष वैज्ञानिक भौतिकवाद है। फिर कहा ‘प्राण ही सर्वस्व हैं। प्राण के कारण प्राणी हैं।’ यहां भी कोई अंधविश्वास नहीं। आगे बताया कि ‘मन ही सब कुछ है और फिर बताया कि विज्ञान ही सब कुछ है। विज्ञान से ही प्राणी जन्म लेते हैं। जीवित रहते हैं और विज्ञान में ही समा जाते हैं।’ यहां विज्ञान शिखर है। विज्ञान अर्थात प्रकृति के अकाट्य नियम। अंत में कहा कि लेकिन ‘आनंद ही सर्वस्व है। अन्न, मन, प्राण या विज्ञान सबका उद्देश्य आनंद ही है।’ प्रयोगसिद्धि विज्ञान की प्रमुख कसौटी है। व्यक्तिगत अनुभूति वैज्ञानिक नहीं होती। सार्वजनिक सिद्धि जरूरी है। भारी-भरकम उपकरण या प्रयोगशालाएं ही किसी ज्ञान को विज्ञान नहीं बनाते। आर्इंस्टीन ने लिखा है ‘जिसने भी उन औजारों और विधियों का व्यवहार सीख लिया है, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में वैज्ञानिक प्रतीत होते हैं, मैं उसे वैज्ञानिक नहीं मानूंगा। मैं उन व्यक्तियों की बात कर रहा हूं, जिनमें वैज्ञानिक मानसिकता-साइंटिफिक मेंटालिटी जीवंत है।’ यहां वैज्ञानिक मानसिकता पर ही जोर है। वैज्ञानिक मानसिकता क्या है? भारत अंधविश्वास मुक्त और जिज्ञासु था। धरती, आकाश और सौरमंडल को जानने व जांचने को बेचैन था। इसलिए प्राचीन ज्ञान-विज्ञान को कोरा मिथक कहना राष्ट्रजीवन का सीधा अपमान है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण में ज्ञान की कोई अवस्था अंतिम नहीं होती। ज्ञान निरंतर विकासमान प्रक्रिया है। न प्राचीन विज्ञान पूर्ण था और न ही आधुनिक विज्ञान ही पूर्ण है। गणित विज्ञान की आत्मा है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार ‘शून्य के अंक का आविष्कार संभवत: हिंदुओं ने किया।’ लिखा है कि १ से १० अंकों के प्रतीक अधिकतर भारत में उत्पन्न हुए। अरबों ने उनका प्रयोग किया। उन्हें हिंदू अरेबिक अंक कहा जाता है।’ संस्कृत में शति १० सूचक और १०० के लिए शतम् है। एस.एन. सेन ने ‘हिस्ट्री आफ साइंसेज इन इंडिया’ में लिखा है ‘शब्दांक और दाशमिक स्थानगत मूल व्यवस्था में व्यवहार एक अन्य अपूर्व भारतीय विकास है। गणित का विकास विश्लेषक प्रतिभा का उत्कृष्ट प्रमाण है। दशमलव पद्धति विश्व को भारत की देन है।’ नीढेम ने ‘साइंस एंड सिविलाइजेशन इन चाइना’ में लिखा, ‘शून्य का प्रयोग १२४७ ई. में चीन में मिलता है। धारणा है कि वह सीधे भारत से प्राप्त किया गया है।’ गणित और विज्ञान का जन्म भारत में हुआ। १ के साथ शून्य लगाकर बना १० महत्वपूर्ण अंक है। ऋग्वेद के अनुसार ‘१० दिशाएं हैं। इंद्रियां भी १० हैं। विराट पुरुष १० अंगुल में विश्व घेरता है।’ १०० अंक का भी उल्लेख है-१०० शरद् का जीवन चाहिए।’ शून्य वाली संख्या मजेदार ढंग से बढ़ती है ‘वरुण १०० औषधियां रखते हैं और हजार भी।’ पुरुष सहस्र शिरो वाला, सहस्र पैरों वाला है।’ मैक्डनल और कीथ ने वैदिक साहित्य से अनेक संख्याओं का उल्लेख किया है। उन्होंने समय माप के दाशमिक विभाजन का भी ब्योरा दिया है। बीज गणित का विकास यहां हुआ। हड़प्पा स्थापत्य प्राचीन रेखागणित का साक्ष्य है। जर्मन विद्वान डॉ. थामस के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के मापक यंत्र गणित ज्ञान की गवाही है। पृथ्वी की गतिशीलता और गुरुत्व अथर्ववेद में है। वेदों में हजारों वनस्पतियों का उल्लेख है। यहां धातु उद्योग भी है। वस्त्र उद्योग भी है। भारत को प्राचीन ज्ञान, विज्ञान पर गर्व है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमारा उत्तराधिकार है। भारत के वैज्ञानिकों ने उत्कृष्ट कार्य किए हैं। प्राचीन ज्ञान का स्वाभिमान और आधुनिक विज्ञान की ग्राह्यता में भारत का भविष्य उज्ज्वल है।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के
पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार हैं।)

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