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रोखठोक : सिंधुदुर्ग पर शिवराय की विडंबना … मराठी मन सुलगा क्यों नहीं?

संजय राऊत

सिंधुदुर्ग किला चार सौ साल से समुद्र में खड़ा है, लेकिन जंग लगी कीलों के कारण किले पर स्थापित छत्रपति शिवराय का पुतला ही ढह गया। महाराष्ट्र के लिए ये तस्वीर क्लेशदायक है। महाराष्ट्र आहत हुआ, लेकिन शिवराय के अपमान के खिलाफ सुलगकर खड़ा क्यों नहीं हुआ?

‘सिंधुदुर्ग तो विजयदुर्ग तो ती अंजनवेल,
दर्यावर्दी मर्दुमकीची ग्वाही सांगेल.’
राम गणेश गडकरी ने अपने ‘महाराष्ट्र गीत’ के दरियावर्दी जीवनाची मर्दुमकी (समुद्री जीवन के सघर्ष) गीत में सिंधुदुर्ग को ही वीरता का प्रतीक माना। उस सिंधुदुर्ग के ‘जंजीरे’ राजकोट पर स्थापित छत्रपति शिवराय का भव्य पुतला पूरी तरह से टूटकर ढह गया। छत्रपति के पुतले के उन खंडित अवशेषों को देखकर महाराष्ट्र का दिल टूट गया। जब औरंगजेब ने महाराष्ट्र पर चढ़ाई करते समय मंदिरों को तोड़ा, भगवान की मूर्तियां तोड़ीं तब उन टूटे हुए अवशेषों को देखकर महाराष्ट्र सुलग उठा था। शिवराय के पुतले के अवशेष देखकर महाराष्ट्र अस्वस्थ हो गया, लेकिन सुलगकर उठा क्यों नहीं? ये सवाल उठता है। पुतलों का अपमान होते हम सभी देखते हैं, लेकिन यहां प्रत्यक्ष शिवराय के पुतले का अपमान स्वयं महाराष्ट्र के शासकों द्वारा किया गया, इसके जैसा दुर्भाग्य और क्या होगा! महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार की लहर है। सभी कार्यों में पैसे खाए जा रहे हैं। भ्रष्टाचार के माध्यम से पैसा खाने के लिए मुख्यमंत्री सैकड़ों करोड़ रुपए की निधि अपने लोगों को देते हैं। ‘लाडले ठेकेदारों को काम दो और कमाओ’ ऐसी नई योजना ही मुख्यमंत्री ने शुरू की है। महाराष्ट्र के आराध्य देव छत्रपति शिवाजी महाराज भी उस योजना से बच नहीं पाए। सिंधुदुर्ग किले पर लगे पुतले को भ्रष्टाचार ने कमजोर किया, जिससे वो पुतला ही टूटकर ढह गया। सिंधुदुर्ग किले का आक्रोश महाराष्ट्र का कलेजा चीर रहा है।
विषय बड़ा है!
यह मामला सिर्फ शिवाजी महाराज का पुतला गिरने तक ही सीमित नहीं है। यहां भी शासकों के चहेते लोगों ने पैसा खाया, ये गंभीर विषय है। ४ दिसंबर २०२३ को प्रधानमंत्री मोदी ने सिंधुदुर्ग किले पर पुतले का अनावरण किया। लोकसभा की आचार संहिता लागू होने से पहले श्रीमान मोदी द्वारा पुतले का अनावरण हो, इसके लिए शिल्प और पुतले के नीचे का सौंदर्यीकरण जल्दबाजी में किया गया। शिवपुतला परिसर के सौंदर्यीकरण पर ही पांच करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए गए। १५ फीट ऊंचा चबूतरा और २८ फीट का पुतला, ऐसी भव्य तस्वीर तब देखने को मिली, लेकिन सारा काम और निर्माण इतना
निम्न्नस्तरीय था कि लोकसभा चुनाव से पहले बनवाया गया पुतला चुनाव नतीजे आते ही ढह गया और सरकार का कहना है कि तेज हवाओं के कारण पुतला गिरा। १९५७ में प्रतापगढ़ में स्थापित किया गया शिवराय का पुतला आज भी तेज समुद्री हवाओं और तूफानों के बीच खड़ा है। १९३३ में गिरगांव के समुद्र पर स्थापित लोकमान्य तिलक का पुतला भी समुद्र की लहरों को झेलते हुए खड़ा है, १९६१ में गेटवे ऑफ इंडिया पर समुद्र में स्थापित शिवराय का पुतला आज भी तूफान और लहरों के बीच खड़ा है, लेकिन मोदी-फडणवीस द्वारा बनवाया गया शिवराय का पुतला टूटकर ढह गया। इन्हें मुंबई के अरब सागर में शिवराय का स्मारक खड़ा करना था और उसका समुद्र में पूजन भी इसी तरह गाजे-बाजे के साथ मोदी के हाथों किया गया। उस अरब सागर के स्मारक की एक भी र्इंट अब तक रखी नहीं गई और अब सिंधुदुर्ग पर स्थापित महाराजा की मूर्ति टूटकर गिर गई। ४०० साल पहले बना सिंधुदुर्ग किले की एक भी दरार इतने सालों बाद भी नहीं टूटी, लेकिन उसी किले पर अब बनाई गई शिवराय की मूर्ति ढह गई। भ्रष्टाचार, लापरवाही और राजनीतिक सांठ-गांठ की मार छत्रपति पर पड़ी। राजकोट में शिवाजी का पुतला केवल राजनीतिक लाभ के लिए जल्दबाजी में बनाया गया था। उसके ठेकेदारों से ब़ड़े पैमाने पर धन लिया गया और सिंधुदुर्ग में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों के प्रचार में इस्तेमाल किया गया, ये अब स्पष्ट हो गया है। इसी पैसे से कुडाल, मालवण, कणकवली में वोट खरीदने में भाजपा के नेता और मंत्री आगे रहे। उस भ्रष्ट अभियान का नेतृत्व करने वाले सिंधुदुर्ग के पालकमंत्री को पहले इस्तीफा देना चाहिए। उन्हें दोबारा सिंधुदुर्ग किले पर कदम नहीं रखना चाहिए। उनके भ्रष्टाचार का फटका छत्रपति को ही लगा।
असामान्य किला
सिंधुदुर्ग किला असामान्य है। मराठी साम्राज्य को मिली हुई सिंधुदुर्ग की विरासत खुद श्री छत्रपति शिवाजी की है। शिवाजी महाराज ने न केवल इसे बनवाया, बल्कि किले के हर बुर्ज की आकृति भी उन्होंने स्वयं बनाई थी। २५ नवंबर, १६६४ को मुहूर्त देखकर खुद अपने हाथों उन्होंने किले की पहली ‘शिला’ रखी। ‘‘घरात जैसा उंदिर तैसा आमच्या राज्यास सिद्दी’’ (घर में जैसे मूसक वैरे हमारे राज्य में सिद्दी), ऐसा छत्रपति शिवराय हमेशा कहते थे। इस रणनीतिक राजा ने पश्चिमी तट की सुरक्षा के उद्देश्य से १३ समुद्री दुर्ग बनवाए थे। सिंधुदुर्ग उनमें से सबसे अभेद्य रहा है। अपनी सेना के साथ एक अभियान पर निकलते समय छत्रपति को मालवण के निकट यह चट्टान दिखाई दी। ‘‘चौरासी बंदरगाहों पर ऐसी जगह नहीं’’ ऐसा शिवराय ने कहा और आदेश दिया कि इस कुरटे द्वीप पर एक ‘‘बुलंद किला बनाया जाए।’’ शिवराय के पदस्पर्श से यह पूरा क्षेत्र पुनीत हो गया। मराठी राज्य के छत्रपति ने इस किले पर अपने हाथ-पैरों के निशान भी छोड़े थे, ऐसी लोगों की श्रद्धा है। एक मीनार के निकट दो गुंबदों पर शिवाजीराजा के हाथ के और पैर के एक-एक निशान अभी भी दिखाई देते हैं। चूने में उकेरे गए ये छाप महाराष्ट्र की श्रद्धा हैं। समुद्र की लहरें हर दिन छत्रपति के चरणों को धोती हैं और उन चरणों पर महाराष्ट्र माथा टेकता है, यह दृश्य ही अद्भुत लगता है।
जंग लगी कीलें!
सिंधुदुर्ग किला ४०० साल से खड़ा है, लेकिन जंग लगी कीलों के कारण किले पर लगा छत्रपति का पुतला उखड़ कर गिर गया, यह अच्छा संकेत नहीं है। राज्य में भ्रष्टाचार, राजनीतिक व्यभिचार कितना बढ़ गया है, उसका यह उदाहरण है। महाराष्ट्र को चारों तरफ से लूटा जा रहा है। स्वराज्य की रक्षा के लिए महाराज ने सूरत पर चढ़ाई की और सूरत को लूट लिया। महाराष्ट्र के ‘सूरत’ प्रेमी शासक छत्रपति शिवाजी के नाम पर लूट रहे हैं। उसी लूट से बनाए गए सिंधुदुर्ग के राजकोट में जिस चौतरे पर महाराज खड़े थे, वही चौतरा डगमगाया और महाराष्ट्र का वैभव, मान-सम्मान, शौर्य भी मानो ढह गया।
यह कैसी नौबत आ गई महाराष्ट्र पर?
शिवराय का इतना घोर अपमान होने पर भी महाराष्ट्र चुपचाप देखता रहा। मराठी मन में आग क्यों नहीं लगी? ऐसा अब कहने को जी चाहता है। सिंधुदुर्ग किले की इस घटना के बाद भाजपा का व्यवहार ऐसा नहीं था, जिस पर महाराष्ट्र गर्व करे। सिंधुदुर्ग के भाजपा के गुंडों ने भ्रष्ट ठेकेदारी का समर्थन किया और विरोधियों को किले पर जाने से रोका। पत्रकारों को धमकाया गया। महाराजा की पवित्र संरचना के सामने अभद्र भाषा का उपयोग किया गया और इन सभी कृत्यों का गृहमंत्री फडणवीस ने समर्थन किया। ये सब महाराष्ट्र ने खुली आंखों से देखा। ऐसे विकृत शासकों को जूते मारकर भगा देना चाहिए। इस दुर्घटना के निषेधार्थ सरकार के खिलाफ महाविकास आघाडी का ‘जूते मारो’ आंदोलन पार हुआ, लेकिन एक मलाल अब भी है कि शिवराय के अपमान के बाद महाराष्ट्र आक्रामक क्यों नहीं हुआ?

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