सैयद सलमान, मुंबई
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले ही महायुति गठबंधन में खटास सामने आने लगी है। सबसे ज्यादा अपमान का घूंट, सबसे ज्यादा तेवर वाले नेता अजीत पवार को पीना पड़ रहा है। लोकसभा चुनाव में पत्नी की हार और अन्य सीटों पर आशातीत सफलता न मिलने से वैसे ही उनका मनोबल टूटा हुआ है। फिलहाल, वह ‘जन सम्मान यात्रा’ के माध्यम से अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा प्राप्त करने में लगे हैं। शिंदे सेना वाले उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं करते। महायुति में अजीत पवार की एंट्री के साथ ही शिंदे गुट को भाजपा ने वैसे भी औकात में ला दिया था। उनमें भाजपा से भिड़ने की हिम्मत तो है नहीं इसलिए भड़ास अजीत पवार पर निकालते हैं। स्वास्थ्य मंत्री तानाजी सावंत ने तो गठबंधन पर असंतोष जताते हुए यहां तक कहा कि ‘भले ही हम वैâबिनेट में एक-दूसरे के बगल में बैठे हों, लेकिन बाहर आने के बाद मुझे उल्टी जैसा महसूस होता है।’ अजीत ने चुप्पी साध रखी है, लेकिन मंत्री महोदय उल्टियां करने के लिए सरकार में बने ही क्यों हुए हैं? उल्टियां कर अस्वस्थ रहने से बेहतर है सरकार से हट जाएं।
चिराग के उड़े होश
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान को यह गुमान है कि वह अपने दम पर ५ सीटें जीतकर और एनडीए के घटक दलों में १०० फीसदी स्ट्राइक रेट देकर बिहार के सूरमा बन गए हैं। मंत्री पद पर रहते हुए चिराग ने पीएम मोदी की कई नीतियों का विरोध किया। आरक्षण में क्रीमी लेयर, लैटरल एंट्री, जातीय जनगणना और वक्फ बोर्ड जैसे कई मुद्दों पर उन्होंने अपना रुख भाजपा से अलग रखा। सत्ता में रहकर मोदी का विरोध करते हुए वह दोनों हाथों में लड्डू रखना चाह रहे थे। ऐसे में मोटा भाई की एंट्री होती है और यह खबर उड़ती है कि चिराग के ३ सांसद कभी भी पलट सकते हैं। दो तो साले-बहनोई ही हैं इसलिए बाकी तीन सांसदों के नाम सामने आए। खबर का उड़ना था कि चिराग के होश भी उड़ गए। फौरन मोटा भाई के दरबार में गुलदस्ता लेकर पहुंच गए। अपने सभी सांसदों से एकजुटता वाला वीडियो जारी करवाया और फूट डालने की कोशिश का आरोप आरजेडी पर मढ़ दिया। चिराग भूल गए, सहारा देने वाले पेड़ को सुखाने में भाजपा को कोई संकोच नहीं होता।
भीख की जल्दी
भाजपा सरकार विकास और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम करने में विफल रही है। ऐसे में मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ अनावश्यक टिप्पणियां करके राजनीतिक लाभ हासिल करने की उनकी कोशिश होती है। इसमें सबसे आगे बढ़ने की होड़ में हेमंत बिस्वा सरमा हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस से भाजपा में आए हैं, सो उन पर यह कहावत फिट बैठती है कि ‘नए फकीर को भीख की जल्दी होती है।’ हाल ही में हेमंत सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, १९३५ को रद्द करने के लिए एक विधेयक को मंजूरी दी थी। इसकी काफी आलोचना भी हुई थी। अब हेमंत बिस्वा सरमा ने असम में जुमा की नमाज के लिए विधानसभा में ब्रेक खत्म करने का निर्णय लिया है। इस निर्णय ने असम की राजनीति में ध्रुवीकरण की स्थिति को और बढ़ा दिया है, जिससे धार्मिक संवेदनशीलता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। आश्चर्यजनक तौर पर एनडीए के घटक दल और नीतीश की पार्टी जेडीयू ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है। कहीं यह नीतीश मार्का सियासत की नई बिसात तो नहीं?
छलावे वाली छतरी
बरसात का मौसम खत्म होने को है और एक सत्ताधारी दल के नेताजी अब छतरी बांट रहे हैं। चूंकि नेताजी का जन्मदिन है तो उन्हें लगता है कि बरसात अभी जारी है। नेताजी के लिए यह छतरी बहुत महत्वपूर्ण है। यह उनकी पहचान का हिस्सा है। नेताजी को लगता है, अपनी बड़ी-सी तस्वीर और अपनी पार्टी के नेताओं की छोटी-छोटी तस्वीरों वाली छतरी उन्हें जनता से जोड़ती है। नेताजी के मुताबिक, यह उनकी लोकप्रियता का प्रतीक है। वैसे जब भी कोई नेता या समाजसेवी किसी गरीब व्यक्ति को छतरी देता है तो यह उसकी दयालुता और सेवाभाव का प्रदर्शन होता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। वे छतरी का इस्तेमाल अपने राजनीतिक लाभ के लिए कर रहे हैं। वे छतरी बांटकर वोट मांगेंगे और जनता को लुभाने की कोशिश करेंगे। यह छतरी रिश्वत है। यह उनकी राजनीतिक चालबाजी का हिस्सा है। अब जनता को चाहिए कि वह इन नेताओं के छलावे में न आए और उनके वास्तविक कार्यों पर ध्यान दे। उनसे जमकर महंगाई, बेरोजगारी, सड़क, शौचालय, पानी, सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सवाल करे।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)