मुख्यपृष्ठखेलक्लीन बोल्ड : हार गए बूढ़े बोपन्ना

क्लीन बोल्ड : हार गए बूढ़े बोपन्ना

अमिताभ श्रीवास्तव

खेल दुनिया में बूढ़े हो चुके टेनिस स्टार बोपन्ना की यूएस ओपन में सारी चुनौती खत्म हो गई। ४४ वर्षीय अनुभवी हिंदुस्थानी टेनिस स्टार रोहन बोपन्ना और उनकी इंडोनेशियाई जोड़ीदार एल्डिला सुत्जियादी को मिक्स्ड डबल्स सेमीफाइनल में डोनाल्ड यंग और टेलर टाउनसेंड की अमेरिकी जोड़ी ने ३-६, ४-६ से हरा दिया। आठवीं वरीयता प्राप्त बोपन्ना-सुत्जियादी ने एक घंटे ३३ मिनट तक चले क्वार्टर फाइनल में चौथी वरीयता प्राप्त मैथ्यू एबडेन और बारबोरा क्रेजिकोवा पर ७-६(४), २-६, १०-७ से जीत दर्ज कर सेमीफाइनल में प्रवेश किया था। मगर सेमीफाइनल में घुटने टेक देने पड़े। बोपन्ना पहले ही पुरुष युगल प्रतियोगिता से बाहर हो चुके थे, जब वह और उनके साथी एबडेन, जो दूसरी वरीयता प्राप्त थे, तीसरे दौर में मैक्सिमो गोंजालेज और एंड्रेस मोल्टेनी की १६वीं वरीयता प्राप्त अर्जेंटीना की जोड़ी से १-६, ५-७ से हार गए थे।
चांदी की छलांग
पेरिस पैरालिंपिक में हिंदुस्थान गजब ढा रहा है। लगातार पदकों की खनक से गूंज रहे हिंदुस्थान के नाम को बरकरार रखते हुए एक और चांदी की छलांग लगी है। बिहार के मुजफ्फरपुर से आनेवाले शरद कुमार ने यह छलांग लगाई है, यह छलांग केवल एक पैर से लगाई गई है। शरद कुमार वो शख्स हैं जो पढ़ाई में अव्वल थे, जिनका यूक्रेन में फंसने के चलते दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से आईएएस बनने का सपना भी टूट गया था। पेरिस में उन्होंने पुरुषों के हाई जंप टी ६३ इवेंट में १.८८ मीटर की छलांग लगाकर सिल्वर मेडल जीता है। मतलब टोक्यो के मेडल का रंग पेरिस में बदलने में वो कामयाब रहे हैं। शरद कुमार ने टोक्यो पैरालिंपिक में ब्रॉन्ज जीता था। बिहार के इस होनहार खिलाड़ी का जीवन बहुत उथल-पुथल वाला रहा है, मध्यम वर्गीय परिवार के शरद ने सारे संकटों को झेलते हुए आखिरकार वह मुकाम हासिल किया, जो आज तक कोई एथलीट नहीं कर पाया है। यह उनके जज्बे को दर्शाता है।
इतिहास लिखता हिंदुस्थान
पैरालिंपिक के आसमान पर इंद्रधनुष सा दमकता हिंदुस्थान नई इबारत लिखने में मशगूल है। जी हां, हमारे देश ने पेरिस पैरालिंपिक में अपनी सफलता की नई कहानी लिखी है। उसने अकेले एथलेटिक्स में ही इतने मेडल जीते हैं, जितने पहले कभी इस खेल में क्या, पैरालिंपिक खेलों के इतिहास में दूसरे इवेंट में भी नहीं जीते। पैरालिंपिक खेलों में हिंदुस्थान की भागीदारी का इतिहास ६४ साल पुराना है। हिंदुस्थान इसमें १९६० से हिस्सा लेता आ रहा है, लेकिन इस वर्ष २०२४ में जो हुआ है वो एक नया इतिहास है। जो पेरिस में हुआ वो पहले किसी पैरालिंपिक गेम्स में देखने को नहीं मिला। हमने यहां ६४ सालों का रिकॉर्ड तोड़ा है। ये रिकॉर्ड जीते मेडल की संख्या का तो है ही, लेकिन उससे भी बढ़कर एथलेटिक्स में मिली अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी का भी है। उसने ट्रैक एंड फील्ड के इवेंट में मास्टरी हासिल कर ली है। एथलेटिक्स में मेडल जीतने में दहाई के आंकड़े को छूने के साथ ही इंडिया ने पेरिस पैरालिंपिक में इतिहास का एक और पन्ना भी लिखा। भारत के लिए अब तक टोक्यो सबसे कामयाब पैरालिंपिक रहा था, जहां उसने १९ मेडल जीते थे। लेकिन पेरिस में पहले ६ दिनों में ही २० मेडल जीतकर उसने पैरालिंपिक खेलों के इतिहास में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। पहले ६ दिनों के खेल में हिंदुस्थान ने पेरिस पैरालिंपिक में ३ गोल्ड, ७ सिल्वर और १० ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)

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