अशोक तिवारी
कहते हैं पिता की परछार्इं पुत्र में जरूर आती है। अगर पिता समाजसेवी और कर्तव्य परायण हो तो उसके अधिकांश गुण उसके पुत्र में भी आते हैं। साकीनाका में रहनेवाले सय्यद सब्बन अली भी अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए पिछले कई बरसों से समाजसेवा कर रहे हैं। सय्यद सब्बन अली बताते हैं कि उनके पिता सय्यद नक्कन अली ६५ वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई आए थे। मुंबई आने के बाद साकीनाका के सत्य नगर में उन्होंने सोफा बनाने का कारखाना शुरू किया। कारखाना चल निकला और आर्थिक स्थिति मजबूत होते ही उन्होंने राजनीति में कदम रखा। सय्यद नक्कन अली विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़कर समाज सेवा करने लगे। सय्यद सब्बन अली ने मात्र दसवीं तक पढ़ाई की। उसके बाद हैदराबाद में एक कंपनी में ठेकेदारी करने लगे। ३ वर्षों तक ठेकेदारी करने के बाद उन्होंने इंटीरियर डिजाइनिंग का बिजनेस शुरू किया। कुछ वर्ष पूर्व उनके पिता का देहांत हो गया। पिता के देहांत के बाद सय्यद सब्बन अली ने समाजसेवा का बीड़ा उठाया। सय्यद सब्बन अली कई एनजीओ के माध्यम से साकीनाका और कुर्ला क्षेत्र में जनता की सेवा करने लगे। इस दौरान उन्होंने पत्रकारिता में प्रवेश किया और सब्बन हिंदुस्तानी टीवी चैनल के नाम से यूट्यूब चैनल चला रहे हैं। सय्यद सब्बन अली कुर्ला और साकीनाका क्षेत्र की विभिन्न जन समस्याओं को प्रशासन के समक्ष उठाने के साथ ही जनता की आवाज बनकर मजबूती से खड़े रहते हैं। सय्यद सब्बन अली के तीन पुत्र हैं, जिनमें से वह एक को वकील, एक को पुलिस और एक को डॉक्टर बनाना चाहते हैं। सय्यद सब्बन अली का मानना है कि जनता की सेवा करने के लिए इंसान के पास दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए। बाकी संसाधन अपने आप जुड़ जाते हैं। साकीनाका क्षेत्र में मजबूर और लाचार लोगों की मदद के लिए सय्यद सब्बन अली के दरवाजे २४ घंटे खुले रहते हैं। उनका सपना है कि देश में एक ऐसे समाज का निर्माण हो, जिसमें अमीर-गरीब और ऊंच-नीच का भेदभाव न रहे। इसीलिए कुछ वर्ष पहले सय्यद सब्बन अली ने अपना नाम बदलकर सब्बन हिंदुस्तानी रख लिया है। उनका मानना है कि हिंदुस्थान में रहनेवाले व्यक्ति का एक सरनेम होना चाहिए और वह हिंदुस्तानी ही होना चाहिए, तभी समाज में असली समाजवाद आएगा।