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शरीर के थक जाने पर भी नहीं आती नींद … बिगड़ चुका है बॉडी क्लॉक! …लंबे समय तक बनी है समस्या तो यह सेहत के लिए है खतरनाक

सामना संवाददाता / मुंबई
गहरी थकान के बाद भी अगर नींद नहीं आ रही है, तो इसका मतलब है कि शरीर का सर्केडियन रिद्म बिगड़ गया है। सर्केडियन रिद्म का मतलब शरीर की नेचुरल क्लॉक से है, जिसकी मदद से हमारा शरीर यह तय करता है कि उसे कब सोना है और जागना है। ये क्लॉक यह भी याद दिलाती है कि किस समय कौन सा काम करना है। यह सब दिन में ज्यादा सोने, किसी एंजायटी डिसऑर्डर, स्लीप डिसऑर्डर या अन्य पैâक्टर्स के कारण भी हो सकता है। इसके साथ ही कॉफी, मोबाइल और स्ट्रेस की वजह से भी हो सकता है। इसका कारण कोई भी हो, लेकिन यह स्थिति अगर लंबे समय तक बनी रहे तो यह सेहत के लिए खतरनाक है।
मेलाटोनिन की कमी से होती है समस्या
शरीर की मास्टर क्लॉक को सुप्रशिएस्मेटिक न्यूक्लियस कहा जाता है। यह मस्तिष्क में होता है, जो मेलाटोनिन प्रोडक्शन को नियंत्रित करता है। मेलाटोनिन वह हॉर्मोन है, जो नींद के लिए जिम्मेदार है। जब मेलाटोनिन रिलीज होता है, तभी हमें नींद आती है। जब दिन में सूरज की रोशनी होती है तो मेलाटोनिन का स्तर कम रहता है। दिन ढलने के बाद जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ता है, शरीर में मेलाटोनिन का उत्पादन बढ़ने लगता है। यह लगातार जारी रहता है और लगभग सुबह चार बजे के बाद इसका उत्पादन कम होने लगता है। इस हॉर्मोन से ही हमें नींद का एहसास होता है। जब हमारे शरीर में मेलाटोनिन का स्तर बढ़ने लग जाए तो उसके लगभग दो घंटे बाद हमारा शरीर सो जाना पसंद करता है। अगर कोई शख्स इसके बाद भी देर रात तक जाग रहा है तो इसका मतलब है कि उसकी बॉडी क्लॉक ठीक से काम नहीं कर रही है।
देर रात तक जागने से बिगड़ता है सर्केडियन रिद्म
अगर किसी शख्स के सोने और जागने का शेड्यूल सामान्य से अलग है, लेकिन वह स्वस्थ और सही महसूस कर रहा है तो कोई समस्या की बात नहीं है। अगर कोई बहुत थका होने के बाद भी सो नहीं पा रहा है तो चिंता की बात है। इसका मतलब है कि उसका सर्केडियन रिद्म बिगड़ा हुआ है। यह डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम का संकेत हो सकता है। ऐसा तब होता है, जब कोई सोने के सामान्य समय की तुलना में दो या अधिक घंटे देर से सोता है। इसके कारण सुबह समय पर उठने में समस्या होती है। यह समस्या आमतौर पर युवाओं को अधिक प्रभावित करती है। इसके साथ ही एंजायटी और डिप्रेशन से भी नींद खराब होती है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में साल २०१९ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, डिप्रेशन से जूझ रहे ९० फीसदी लोगों को अच्छी नींद न आने की समस्या होती है।

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