मोदी फिलहाल रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने में मसरूफ हैं और इधर चीन अरुणाचल प्रदेश के कपापू इलाके में घुस आया है। आठ दिन पहले चीनी सेना हमारे इलाके में घुस आई थी। वह भी साठ किलोमीटर के भीतर। हालांकि, ये तस्वीर भयानक है। इसके बावजूद हमारी ओर से चीन का साधारण विरोध तक नहीं किया गया। दो दिन पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने परंपरा के मुताबिक पाकिस्तान को दम जरूर दिया, लेकिन भीतर घुस आए चीन पर रक्षामंत्री ने बात नहीं की। चीन न केवल अरुणाचल सीमा पर लगातार अतिक्रमण कर रहा है, बल्कि उसका दावा है कि अरुणाचल चीन का है। वह दावा करने पर ही नहीं रुका, बल्कि उनकी लाल सेना अरुणाचल की सीमा में घुसकर भारत को चुनौती दे रही है। मोदी सरकार आने के बाद से चीन भारत की सीमाओं पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण कर रहा है। मोदी विश्व के मजबूत नेता या विश्वगुरु आदि हैं, लेकिन चीन यह मानने को तैयार नहीं है। मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद से चीनी सेना कभी अरुणाचल तो कभी लद्दाख की सीमा पर घुसपैठ करती रहती है। भले ही चीन ने लद्दाख के इलाके में हेलीपैड और गांव बना लिए हों, लेकिन सरकार में चीन की ओर आंखें तरेरने की हिम्मत नहीं है। मोदी दुनियाभर में घूमते हैं, दुनिया के नेताओं से मिलते हैं, लेकिन उनके पास भारत की कतरी हुई सीमाओं के बारे में चिंता करने का वक्त नहीं है। अगर चीन भारत में घुसकर सैकड़ों किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रहा है, तो यह मोदी के लिए शरम की बात है। चीन ने पड़ोसी देश नेपाल को निगल लिया है। चीन की सेना अभी भी मालदीव के समुद्र में तैनात है। चीन ने श्रीलंका में भारी निवेश करके उसे भी घुटनों पर ला दिया है। पाकिस्तान ने चीन को अपना बाप मान लिया है। इसका मतलब यह है कि हिंदुस्थान के लगभग सभी पड़ोसियों को ताबे में लेकर चीन ने हिंदुस्थान की सीमाओं पर अपनी चौकियां और पहरा लगा दिया है। एक भी पड़ोसी हमारा मित्र नहीं है और प्रधानमंत्री मोदी सात समंदर पार राष्ट्राध्यक्षों से गले मिल रहे हैं। यह विदेश नीति में ‘लोचा’ है जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक मसला है। प्रधानमंत्री मोदी बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन काम के मामले में पीछे रह जाते हैं। आश्चर्य की बात है कि जो प्रधानमंत्री मणिपुर की हिंसा और खून-खराबे को नहीं रोक सके, वह खुद को विश्व नेता मानते हैं। कोई भी पड़ोसी हमारा मित्र नहीं है और प्रधानमंत्री मोदी सात समंदर पार राष्ट्राध्यक्षों से मिल रहे हैं। यह विदेश नीति में ‘लोचा’ है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत खतरनाक है।’ प्रधानमंत्री मोदी बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन कार्रवाई में पीछे रह जाते हैं। जो प्रधानमंत्री मणिपुर की हिंसा और खून-खराबे को नहीं रोक सके, वह खुद को विश्व नेता मानते हैं, वाकई यह आश्चर्य की बात है। पंद्रह दिन पहले जब मोदी यूक्रेन के दौरे पर गए थे तो उनके भक्तों ने डंका बजाते हुए कहा था कि मोदी युद्ध के मैदान में चले गए हैं और पुतिन प्रशासन ने कहा था कि जब तक मोदी यूक्रेन में हैं तब तक रूस यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा, लेकिन पिछले दो साल में रूस ने यूक्रेन को बेचिराख कर चार लाख लोगों की हत्या कर दी है। मोदी इन जिंदगियों को नहीं बचा सके। मोदी मणिपुर के हजारों आदिवासियों की जान नहीं बचा सके। मोदी ‘पुलवामा’ टाल नहीं सके। इसलिए बिल्कुल नहीं लगता कि चीन के भारत में घुसने के मामले में मोदी कठोर रवैया अपनाएंगे। कोई भी देश अपनी इंच-इंच जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष करता है। दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हैं। वह विदेशी दुश्मनों को अपनी जमीन पर कदम नहीं रखने देते, लेकिन यहां लद्दाख-अरुणाचल में ‘इंचभर’ नहीं सैकड़ों किलोमीटर जमीन चीन निगल जाए तो भी मोदी और उनके लोग शांत हैं और मोदी भक्तों की फौज भी चुप है। मोदी एक असफल और नाकाबिल प्रधानमंत्री हैं। अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में मोदी का ज्ञान और समझ शून्य है। जो नेता अपने देश के पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध नहीं रखना चाहता, जो नेता वैश्विक राजनीति की कठपुतली है, उस पर अंधभक्त तालियां बजाते हैं। सवाल सिर्फ अरुणाचल प्रदेश में चीन की घुसपैठ का नहीं है, बल्कि देश के स्वाभिमान, उसकी राष्ट्रीय अस्मिता का है; लेकिन मोदी को इसकी चिंता नहीं है। मोदी सरकार को ‘राष्ट्रीय’ अस्मिता से कोई लेना-देना नहीं है। यह दो-पांच अमीर और लाडले उद्योगपति मित्रों के लिए चलाई जा रही सरकार है। इसलिए चीन की घुसपैठ, कश्मीरी पंडितों के सवालों का इसमें कोई स्थान नहीं है। भारत एक महान देश है। पिछले दस वर्षों ने इस महानता में कोई योगदान नहीं दिया है। मोदी के दस साल देश के लिए बर्बाद हुए साल हैं। इसलिए चीन आसानी से भारत में घुस रहा है और हम हाथ मलते बैठे हैं।