मुख्यपृष्ठस्तंभसम-सामयिक : राहुल गांधी का अमेरिकी दौरा और भाजपा की परेशानी

सम-सामयिक : राहुल गांधी का अमेरिकी दौरा और भाजपा की परेशानी

शाहिद ए चौधरी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा के अंतिम दिन वैâपिटल हिल में अमेरिकी थिंक-टैंक से वार्ता की, जिसमें अमेरिकी सांसद भी शामिल थे। लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद राहुल गांधी की यह पहली अमेरिका यात्रा थी, जहां भारतीय मूल के अमेरिकियों ने उनका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने कुछ ऐसी बातें कहीं, जिन पर गहन विचार-विमर्श व मंथन की आवश्यकता है।
हालांकि, हमेशा की तरह उनकी कुछ बातों की सत्तारूढ़ बीजेपी ने कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें भारत विरोधी बताया है और यह भी कहा है कि उनसे विदेशों में भारत की छवि खराब हुई है।
अमेरिका में राहुल गांधी ने अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया, हर जगह उन्होंने अपना दृष्टिकोण रखा। उनके विभिन्न वक्तव्यों का सार यह रहा कि बेरोजगारी, शिक्षा व टेक्नोलॉजी पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों भारत व पश्चिमी देश जॉब संकट का सामना कर रहे हैं, जिसका समाधान उत्पादन क्षमता बढ़ाने से ही निकल सकता है। राहुल गांधी के अनुसार, हालांकि अनेक देश बेरोजगारी से संघर्ष कर रहे हैं, जबकि अन्य जैसे चीन व वियतनाम में यह समस्या नहीं है, क्योंकि ग्लोबल प्रोडक्शन में ऐतिहासिक परिवर्तन आया है। प्रोडक्शन पश्चिम से हटकर पहले दक्षिण कोरिया व जापान की ओर गया और अब चीन की तरफ है, क्योंकि पश्चिम ने मैन्यूपैâक्चरिंग से अपने हाथ खींच लिए हैं। राहुल गांधी ने कहा कि भारत को अपने मैन्यूपैâक्चरिंग दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करते हुए उसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप करना होगा। अपनी भारत जोड़ो यात्रा का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि इससे उन्हें अपने राजनीतिक विचार नए सिरे से गठित करने का अवसर मिला और उन्होंने सियासत में मुहब्बत के ख्याल को शामिल किया। शिक्षा पर बोलते हुए राहुल गांधी ने स्किल्ड व्यक्तियों को पर्याप्त सम्मान न देने की आलोचना की और शिक्षा व वोकेशनल ट्रेनिंग में समन्वय लाने पर बल दिया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में उनका ख्याल था कि इसमें दोनों जॉब लेने व जॉब देने की क्षमता है इसलिए इसके प्रभाव का बहुत सोच-समझकर प्रबंधन करना चाहिए।
राहुल गांधी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान भारत में निरंतर बढ़ती बेरोजगारी व आरएसएस के बढ़ते प्रभाव के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया और महिलाओं पर संघ के तथाकथित पुरातनपंथी विचारों की आलोचना की। उन्होंने कहा, ‘आप भारत जाइए, फोनों को देखिए, फर्नीचर को देखिए, कपड़ों को देखिए … उनके पीछे ‘मेड इन चाइना’ लिखा होगा, यही तथ्य है।’ राहुल गांधी के अनुसार, अमेरिका, यूरोप व भारत ने प्रोडक्शन का विचार छोड़ दिया है, जिससे जॉब्स का सृजन होता है और उसे चीन के हवाले कर दिया है। टेक्सटाइल प्रोडक्शन में बांग्लादेश भी भारत से आगे निकल गया है। राहुल गांधी ने चेताया कि प्रोडक्शन को निरंतर अनदेखा करने से विशाल सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगी और ‘हमारी राजनीति के धुव्रीकरण का भी यही कारण है’। उनका कहना है कि श्रमबल में महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर भी बीजेपी और हममें वैचारिक मतभेद है। ‘बीजेपी व आरएसएस का मानना है कि महिलाएं एक विशेष भूमिका तक सीमित रहें। वह घर में रहें, खाना बनाएं, ज्यादा न बोलें और हमारा मानना है कि महिलाओं को अपने सपने साकार करने की अनुमति होनी चाहिए।’
बीजेपी ने राहुल गांधी की आरएसएस व प्रोडक्शन पर ‘भारत बनाम चीन’ टिप्पणी की कड़ी निंदा करते हुए उन्हें भारतीय लोकतंत्र पर ‘काला धब्बा’ बताते हुए कहा कि वह ‘विदेशी धरती पर भारत की छवि खराब करते हैं’। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं और देश के प्रति जवाबदेह हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने विदेशी दौरों पर अवसर मिलते ही कांग्रेस की आलोचना करते हैं, जिसमें अक्सर ऐतिहासिक तथ्यों का अभाव होता है। मसलन, जुलाई २०१४ में अपनी ऑस्ट्रिया यात्रा के दौरान मोदी ने एक बार फिर नेहरू व कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि २०१४ में नई दिल्ली में उनकी सरकार बनने से पहले भारत में निराशा, हताशा व नाउम्मीदी व्याप्त थी और इस स्थिति में उनकी पार्टी के सत्ता में आने के बाद परिवर्तन आया। यहां प्रधानमंत्री को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए थी कि ऑस्ट्रिया में जवाहर लाल नेहरू के लिए बहुत सम्मान व प्रेम १९५० के दशक से ही है, क्योंकि वे नेहरू ही थे, जिन्होंने ऑस्ट्रिया की प्रभुसत्ता पुन: स्थापित कराने में उसकी मदद की थी, उसे सोवियत संघ, ब्रिटेन, प्रâांस व अमेरिका के कब्जे से आजाद कराया था। जर्मनी ने १९३८ में ऑस्ट्रिया पर कब्जा कर लिया था। दूसरे विश्व युद्ध में जब जर्मनी की हार हुई तो सोवियत संघ आदि ने ऑस्ट्रिया पर कब्ज़ा कर लिया था। ऑस्ट्रिया को उन्हीं से मुक्त कराने में नेहरु की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
यह भी ठीक नहीं है कि नेहरू या कांग्रेस के शासन में भारत में हताशा, निराशा व नाउम्मीदी ही थी। भाखड़ा नंगल बांध, आईआईटी, हरित क्रांति आदि सब कांग्रेस सरकारों की ही देन हैं।
अब भाजपा को राहुल पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांक लेना चाहिए। दरअसल, विदेशों में जाकर एक राजनीतिक खेल खेलने की शुरुआत मोदी ने ही की। दूसरे देशों में जाकर नेहरू-गांधी परिवार पर भड़ास निकालने के चक्कर में यह कहना कि देश में ७० सालों में कोई प्रगति नहीं हुई, यह कहां की समझदारी है? क्या बीजेपी को मोदी की कोई जवाबदेही नहीं दिखती? बीजेपी ने ही दलगत राजनीति शुरू करने की प्रथा शुरू की। इसके पहले इतिहास में ऐसा कोई प्रधानमंत्री नहीं दिखता जो विदेश में जाकर अपने समकक्ष पद पर बैठे पूर्व चेहरे को देश के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश करता रहा हो। राहुल को कटघरे में खड़ा करने से पहले बीजेपी एक बार मोदी की जवाबदेही तय करने की हिम्मत तो करे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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