अनिल तिवारी
मुंबई
भारत सरकार २०३१ तक देश को ‘ऑल इलेक्ट्रिक बाजार’ में परिवर्तित करना चाहती है। अर्थात, सरकार का लक्ष्य है कि आगामी ६-७ वर्षों में भारतीय बाजार में बिकनेवाला हर वाहन ‘ग्रीन रजिस्ट्रेशन’ प्लेटवाला हो, परंतु क्या मौजूदा इको सिस्टम और सत्ता की वर्तमान मनोदशा से ऐसा संभव लगता है? आप चाहे जिस किसी ऑटो मोबाइल विशेषज्ञ से सवाल करेंगे, जवाब नकारात्मक ही मिलेगा। कारण देश का इस दिशा में अभी तक किसी लक्षित योजना पर अमल ही नहीं है। सो, २०३१ तक ऑल इलेक्ट्रिक बाजार का सपना तो दूर, ‘टू व्हीलर्स’ बाजार तक को इस दायरे में लाना संदेहास्पद है। खासकर ऐसे वक्त, जब ईवी टू व्हिलर्स की विश्वसनीयता को लेकर उपभोक्ताओं में पहले ही निराशा बढ़ रही हो।
भारत दुनिया का छठा सबसे अधिक दोपहिया वाहन इस्तेमाल करनेवाला देश है। यहां लगभग २५ से ३० फीसदी लोग रोजाना टू व्हीलर से चलते हैं। यहां ऑटोमोबाइल सेक्टर की सर्वाधिक बिक्री इसी सेगमेंट में है। २०२३-२४ के आंकड़ों को ही देखें तो तमाम कंपनियों ने उक्त वित्तीय वर्ष में १ करोड़ ९० लाख से अधिक दोपहिया वाहन बेचे हैं। नतीजे में जून २०२४ तक भारत में २७ करोड़ १० लाख से अधिक दोपहिया वाहन पंजीकृत हो चुके हैं। जो देश के कुल वाहनों का करीब ७५ फीसदी हिस्सा है। एक आंकड़े के अनुसार, देश में दो तिहाई से अधिक दोपहिया वाहन १०० सीसी या उससे कम इंजिन क्षमतावाले हैं, जो गरीब व मध्यम वर्ग के रोजमर्रा के कार्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण साबित होते हैं। यहां उपभोक्ता सस्ते र्इंधन और बेहतर माइलेज विकल्प की तलाश में रहता है। शहरों में औसतन २० तो ग्रामीण हिस्सों में औसतन ३० किमी के दायरे में काम के लिए उपयोग होने वाले अधिकांश वाहन इसी किफायती श्रेणी के होते हैं। जिन्हें टारगेट करके एक बहुत बड़े वर्ग को ईवी की ओर मोड़ा जा सकता था। बशर्ते सरकार की मंशा ईमानदारी से ऑल इलेक्ट्रिक बाजार का लक्ष्य पाने की होती तो। ऐसा होता तो सरकार की पहली शुरूआत इसी सेगमेंट के संपूर्ण ट्रांसफोरमेशन से होती। क्योंकि इस सेगमेंट में लगभग ९० प्रतिशत वाहन जैविक र्इंधन (पेट्रोल-डीजल) आधारित हैं। मतलब इस समय सड़कों पर दौड़ रहे दोपहिया वातावरण में र्इंधन प्रज्वलन से कितना कार्बन छोड़ रहे होंगे, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है और यह भी समझा जा सकता है कि इसका भार क्रूड ऑयल के आयात पर किस तरह पड़ रहा होगा। उस क्रूड ऑयल पर जिसका अत्यधिक इस्तेमाल न केवल देश के व्यापार घाटे व राजकोषीय खर्च को बढ़ाता है, बल्कि वो पर्यावरण को भी बुरी तरह से प्रदूषित करता है।
लिहाजा यह केवल सामाजिक प्रतिबद्धता नहीं रह जाती, बल्कि यह सरकार का दायित्व भी बन जाता है कि वह जितनी जल्दी हो सके, देश की सड़कों से जैविक ऊर्जा स्रोतों से चलने वाले वाहनों को फेज आउट करके स्वच्छ र्इंधन से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा दे। कम इंजिन क्षमतावाले जैविक र्इंधन (पेट्रोल-डीजल) चलित सभी दोपहिया को ईवी में तब्दील करने की योजना पर काम करें, जैविक र्इंधन आधारित सभी पर्यायी विकल्पों के निर्माण पर चरणबद्ध तरीके से अंकुश लाए, ईवी टू व्हिलर्स निर्माण के लिए ऑटो सेक्टर को बाध्य करे, उन्हें बेहतर टेव्नâोलॉजी सपोर्ट उपलब्ध कराए व सीमित कालखंड के लिए ही सही, सभी ईवी दो पहिया को संपूर्ण तौर पर जीएसटी मुक्त करे। तब कहीं जाकर ऑल इलेक्ट्रिक बाजार की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। बिना सरकारी इंसेंटिव, सब्सिडी, प्रमोशन, प्लानिंग और टेक्नोलॉजी सपोर्ट के कोई भी टारगेट हासिल नहीं किया जा सकता, इसे सरकार भी बखूबी समझती है। फिर भी यदि वो इस सत्य को नजरअंदाज करती है और ऑटोमोबाइल सेक्टर में पेट्रोल या अन्य जैविक र्इंधन आधारित दोपहिया वाहनों पर अंकुश नहीं लाती तो यह साफ हो जाता है कि वो ऑल इलेक्ट्रिक बाजार के टारगेट को लेकर या तो गंभीर ही नहीं है या फिर वो जैविक ईंधन पर वसूले जाने वाले मोटे वैट टैक्स का मोह त्याग नहीं पा रही।
इसलिए जब विशेषज्ञ कहते हैं कि केंद्र की वर्तमान सरकार, एक दशक से अधिक के कार्यकाल में ईवी क्षेत्र में उपलब्धि के नाम पर कोई विशेष टारगेट हासिल नहीं कर सकी है तो उसका सीधा सा कारण उनकी नजर में इसी सरकारी उदासीनता से होता है, जो दो पहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक से रिप्लेस करने या कन्वर्ट करने का इको सिस्टम डेवलप करने में असफल रही है। शहरी क्षेत्र से इस इको सिस्टम की शुरुआत करके धीरे-धीरे इसका विस्तार संपूर्ण ग्रामीण हिस्सों तक होता तो निश्चित ही इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते थे। यदि २०२१ तक देश के शत-प्रतिशत दोपहिया वाहनों को ऑल इलेक्ट्रिक बाजार मिल जाता और ईवी सेक्टर में लागत व करों का बोझ कम करके ऑटोमोबाइल सेक्टर को इस ओर आकर्षित किया जाता, उन्हें टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट में मदद दी जाती व नैतिक प्रतिबद्धता का बोध कराया जाता तो इस सेगमेंट में क्रांति देखी जा सकती थी।
इस आलेख को लिखते-लिखते एक सुखद समाचार यह मिला कि सरकार ने आखिरकार १०,९०० करोड़ की ई-ड्राइव योजना को मंजूरी दे ही दी। जिसके तहत बैटरी से चलने वाले टू व्हीलर, थ्री व्हीलर, ट्रक और दूसरे ई-वाहनों के लिए अब सब्सिडी दी जाएगी। यह योजना २०१५ में शुरू हुई फेम योजना की जगह लेगी। इस पर विस्तार से चर्चा अगले अंक में करेंगे, परंतु फिलहाल तो सब्सिडी के मामले में ही सही, ‘देर से आए दुरुस्त आए’ वाली कहावत केंद्र सरकार पर लागू हो सकती है। परंतु केवल सब्सिडी समस्या का हल नहीं है। इससे जुड़े अन्य पहलुओं पर भी गौर किया जाना जरूरी है।
कुल मिलाकर, जैविक र्इंधन पर निर्भरता और कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाने के उद्देश्य से ही सही, भारत सरकार के लिए ऑल इलेक्ट्रिक बाजार विकसित करने का रास्ता दो पहिया वाहनों के चेंज ओवर से ही शुरू होता है, यह तो अब सरकार ने भी मान ही लिया है। इस ट्रांसफॉर्मेशन के बगैर भारत को ऑल इलेक्ट्रिक बाजार बना पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव भी है। २०३६ तक भी यदि सरकार इस टारगेट को हासिल करना चाहती है तो उसे अभी से टू व्हिलर ट्रांसफॉर्मेशन में के अन्य जटिल पहलुओं को सुलझाने में जुट जाना चाहिए।