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संपादकीय: केजरीवाल की लड़ाई

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने छह महीने जेल में काटे और अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त जमानत पर रिहा कर दिया है। केजरीवाल को जमानत देते हुए जज ने सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर कड़ा प्रहार किया, लेकिन इन जांच एजेंसियों के हालात ऐसे बन गए हैं कि बेशर्मों को न तो डर है और न ही कोई चिंता। अदालत ने कड़ाई से कहा कि लंबे समय तक कारावास किसी की स्वतंत्रता को छीनने का एक प्रयास है। पिंजरे के तोते की छवि बदलें। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को हड़काते हुए निष्पक्षता से काम करने को कहा। यदि इसे गंभीरता से लिया जाए तो सीबीआई प्रमुख को नैतिक आधार पर पद छोड़ देना चाहिए। तथाकथित शराब घोटाले के सभी राजनीतिक आरोपी एक के बाद एक छूट गए हैं और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से बाहर आए हैं। तेलंगाना की के. कविता, संजय सिंह, मनीष सिसोदिया और अब मुख्यमंत्री केजरीवाल सभी में एक बात समान है कि सुप्रीम कोर्ट ने ईडी, सीबीआई जांच को आड़े हाथों लेते हुए दोनों केंद्रीय जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल उठाया है। इसका मतलब यह है कि भाजपा विरोधियों के खिलाफ की गई कार्रवाई राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई पिंजरे का तोता है, वो वही बोलता है जो उसका मालिक कहता है। हालांकि, यह चोट सीबीआई के गुजराती मालिकों तक पहुंच गई होगी, लेकिन वे ‘निर्लज्जम सदासुखी’ की नीति के तर्ज पर एजेंसियों का दुरुपयोग करना जारी रखते हैं। दिल्ली के शराब घोटाले में किस तरह की मनी लॉन्ड्रिंग हुई? यह पैसा किसके पास से किसके खाते में गया? इस संबंध में न तो ईडी और न ही सीबीआई कोई सबूत पेश कर सकी। सैकड़ों लोगों पर छापे मारे गए। उनमें से कुछ को गिरफ्तार कर लिया गया, उनसे जबरदस्ती मनमाफिक ‘स्टेटमेंटस’ लिए गए और एवज में उन्हें आजाद कर दिया गया। खैर, आजादी भी मुफ्त में नहीं की गई। शराब घोटाले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए चार-पांच शराब ठेकेदारों से भाजपा ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए सैकड़ों करोडों की वसूली की। यानी मनी लॉन्ड्रिंग इस मामले में जो हुई वह भाजपा के खातों से, लेकिन ईडी, सीबीआई ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष या उसके कोषाध्यक्ष को पूछताछ के लिए समन नहीं भेजा। इस मामले में कुछ आरोपियों को माफी का गवाह बनाया गया और उनसे केजरीवाल और अन्य के खिलाफ गवाही दिलवाई गई। यह सीधे तौर पर कानून का दुरुपयोग है। बिना किसी सबूत के गिरफ्तारियां की गर्इं और विरोधियों को जेल में डाल दिया गया। दोबारा आरोप पत्र दाखिल होने के बाद चार साल तक मुकदमों की सुनवाई नहीं होती, यह मानवाधिकार का भयानक उल्लंघन है। यदि मनी लॉन्ड्रिंग, पीएमएलए अधिनियम का वास्तविक तौर पर कार्यान्वित करने का निर्णय लिया जाए तो महाराष्ट्र विधानसभा के ५५ भाजपा समर्थक विधायक जेल जाएंगे। मंत्री और उनके सांसद भी अंदर जाएंगे, लेकिन ईडी, सीबीआई का तोता छाप कामकाज उन सभी अपराधियों को आजाद छोड़ता है और केवल भाजपा विरोधियों को भीतर डालता है। फिर, हमारी अदालतें प्रधानमंत्री के साथ इन अनैतिक कृत्यों का समर्थन करती हैं। केजरीवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। ये दोनों एजेंसियों के मालिक मोदी और शाह हैं। कांग्रेस शासन के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश लोढ़ा ने सीबीआई को फटकारते हुए उसका उल्लेख ‘पिंजरे का तोता’ के तौर पर किया था। मोदी, शाह ने संसद में अपने भाषणों में बार-बार इसका जिक्र किया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि मोदी-शाह के साए में वही अंधेरा है। मोदी-शाह ने तोते को पिंजरे से आजाद नहीं ही किया। इसके विपरीत तोते की गर्दन ही घोंट दिया। इसे ही तानाशाही कहते हैं। देशभर में इस तरह से लोकतंत्र और आजादी का गला घोंटा जा रहा है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी ईडी ने इसी तरह गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार कर मालिक का हुकुम बजाया। महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में यही हुआ। अदालत से न्याय तो मिल जाता है, लेकिन उसके लिए महीनों जेल में रहना पड़ता है। यह मानवाधिकार और स्वतंत्रता का उल्लंघन है। केजरीवाल जनता द्वारा नियुक्त मुख्यमंत्री हैं। ऐसे ही हेमंत सोरेन थे, लेकिन मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी का नया कदम मोदी-शाह के राज में ही पड़ा। केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में काम करने नहीं दिया जाता। नायब राज्यपाल की मनमानी लोकतंत्र के लिए घातक है। केजरीवाल को कड़ी शर्तों पर जमानत दी गई। केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकेंगे और किसी भी आधिकारिक फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकेंगे। हेमंत सोरेन के मामले में वो शर्तें नहीं लगाई गर्इं। बाहर आते ही सोरेन ने नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और राजकाज की कमान संभाली। केजरीवाल मुख्यमंत्री के रूप में जेल गए, लेकिन बाहर आए अधिकार शून्य मुख्यमंत्री के रूप में। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए उन्हें भी सोने के पिंजरे में बंद तोता बना दिया। इसलिए सवाल उठा कि अब केजरीवाल क्या करेंगे, लेकिन उन्होंने अब इस सवाल का जवाब दे दिया है। अब उन्होंने एलान किया है कि वह दो दिन में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। केंद्र सरकार ने हम पर चोर और बेईमान होने का आरोप लगाया है। इसलिए अब हम जनता की अदालत में आए हैं और जनता को तय करना है कि मैं ईमानदार हूं या नहीं। जब तक जनता अपना परिणाम नहीं देगी, तब तक हम मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता द्वारा चुने जाने पर हम दोबारा इस कुर्सी पर बैठेंगे। तब तक हम तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे, ऐसा केजरीवाल ने कहा। केजरीवाल को अपनी लड़ाई जारी रखनी चाहिए।

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