मुल्क में ये बग़ावत नहीं चाहिए
फ़ालतू की सियासत नहीं चाहिए
इश्क़ में खा चुके हम बड़ी चोट हैं
और अब ये ज़लालत नहीं चाहिए
फ़ैसले हों जहाँ झूठ के नाम पर
इस तरह की अदालत नहीं चाहिए
लोग बाँटें जहाँ धर्म के नाम पर
ऐसी कोई इबादत नहीं चाहिए
बाँध देती जो औरत को पर्दे में है
इस तरह की रिवायत नहीं चाहिए
तोड़ देती दिलों को जो
बातें अगर
ऐसी कड़वी हक़ीक़त नहीं चाहिए
जो बने इक तिजारत ‘कनक’को मग़र
ऐ सनम ये मुहब्बत नहीं चाहिए
डॉ कनक लता तिवारी