समीक्षक – डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया
मीरा जैन की लघुकथा संग्रह ‘मीरा जैन की सदाबहार लघुकथाएं’ जिसमें सौ लघुकथाएं हैं । मीरा जी, जिन्होंने लघुकथा विधा में महारत हासिल की है। मीरा जी को विधा के अनुरूप शब्द विन्यास को गढ़ना बखूबी आता है, क्योंकि प्रत्येक विधा के कुछ विशेष नियम और परिधि होती है। उन माप-दंड को देखते हुए मीरा जी की प्रत्येक लघुकथा उन मुद्दों पर खरी उतरती है।
साहित्य की लघुकथा विधा में मीरा जी के पास अनुभव की एक विस्तृत विरासत है। लेखक अपनी गूढ़ दृष्टि से लेखन को खास बनाने तथा नए आयामों को स्पर्श करते हुए पाठकों के समक्ष परोसने का प्रयास करता है। उन्हीं गूढ़ दृष्टि और नव आयामों का आकार है – ‘मीरा जैन की सदाबहार लघुकथाएँ’।
मीरा जी हेतु लघुकथा लेखन एक निर्झर की भाँति है जिसमें शब्दों का प्रवाह निरंतर गतिमान रहता है और उनका लेखन निर्झर से उत्पन्न ‘बर्बल’ ध्वनि की भाँति अपनी गति, अपने यौवन की तरह आगे बढ़ रहा है।
उपहार की हार, जादुई चिराग, गणित, मदर्स डे, शोषण और शक्ति, खादी का काम, कन्या भोज, चुनावी चक्कर, देशभक्त, सर्वोपरि, देश की पुकार, बहू-बेटी आदि लघुकथा नैतिकता और जीवन मूल्यों का परचम फहराते हुए ‘आभास’ पर समाप्त होता यह लघुकथा संग्रह जीवन के विभिन्न आयामों को संजोए दिखता है।
‘उपहार की हार’ में लेखिका ने संपूर्ण विश्व को उपहार बांटने वाले सेन्टा क्लॉज से ऐसा उपहार मांगा कि वह अपने मुख से नि:शब्द तथा अपने झोले और हाथों से किसी भिक्षु से कम प्रतीत नहीं हो रहा था। कथा की पात्र हिना की माँ उपहार में सेन्टा से मांगते हुए कहती है –
“मुझे बेटी की सुंदरता नहीं सुरक्षा चाहिए यदि दे सकते हो तो दे दो।”
आज केवल हिना की मां की ऐसी स्थिति नहीं वरन भारत की हर मां अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर भयभीत और ख़ौफ में है।
‘गणित’ लघुकथा में कुटिल एवं षड्यंत्रकारी नेताओं की धूर्तता कैसे ईमानदारी का दोहन और शोषण करती है, स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसी कुटिल बुद्धि के कारण ही समाज में गेहूँ-घुन दोनों बेवजह पिस रहे हैं। नेता अपने कार्यकर्ता से कहता है –
“अरे बुद्धु ! सीधा-सा गणित है अब तो सारी-की-सारी मलाई ही पार्टी के हिस्से में आ जाएगी क्योंकि वह ईमानदार जो ठहरा।”
वर्तमान परिस्थितियों देखते हुए आज ईमानदार होना भी किसी अभिशाप से कम नहीं है । समय और मौके के अनुसार व्यवहार करना आना समय की माँग बन गया है ।
‘देवी का द्वार’ कथा में लेखिका ने ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास को महत्व दिया है और भक्ति में दिखावा और आडंबर का विरोध करती प्रतीत होती है । कथा की पात्र सुरेखा मंदिर में देवी की मूर्ति के समक्ष खड़ी हो अपने भक्ति भाव और अपनी देवरानी की पूजा-अर्चना के फल पर प्रश्न करती है । तब उसका अंतर्मन देवी माँ के स्वर में कहता है –
“बेटी! तुमने पूजा अर्चना की तुलना तो कर ली । एक बार निष्पक्ष मन से दोनों की आकांक्षाओं की तुलना भी करके देखो।”
यहाँ कहना होगा कि ईश्वर अपने भक्तों की सच्ची सेवा चाहता है, न कि किसी तरह का ढोंग और साज-सज्जा ।
मेरे ख्याल से ‘स्थायी’ लघुकथा समाज और समाज के प्रत्येक माता-पिता के प्रति नकारात्मक सोच रखने और उनसे पल्ला छुड़ाने का संदेश दे रही है । वैसे भी मानव की मानसिकता भी यही है कि अनुचित और आसान चीजों को जल्दी आत्मसात कर उसका अनुकरण करना है । वर्तमान पीढ़ी एकल परिवार वाली है । आज काफी रिश्ते तो वैसे भी दम तोड़ चुके हैं । कथा में मनोज अर्जेंट में अपना तबादला चाहता है क्योंकि –
“सर! बात दरअसल यह है कि गाँव में रह रहे माता-पिता को जैसे ही ज्ञात हुआ कि अब मकान बन गया है और मैं स्थायी रूप से यहीं रहूँगा तो वे भी अपना सारा बोरिया बिस्तर लेकर स्थायी रूप से यहीं रहने को आ रहे हैं ।”
‘मीरा जैन की सदाबहार लघुकथाएँ’ की प्रस्तावना साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश शासन, भोपाल के निदेशक डॉ. विकास दवे द्वारा शब्दबद्ध की गई है । लघुकथा की भाषा सरल, सहज, प्रवाहमयी और मुहावरेदार है । जिसका पाठकगण रोचकतापूर्ण रसास्वादन ग्रहण करेंगे ।
लघुकथा में अनेक स्थान पर विराम चिह्न और शब्दगत त्रुटियाँ पाई गई हैं । प्रकाशक को पुस्तक के मुद्रण से पूर्व इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए था । इन त्रुटियों के चलते पाठकों के मन-मस्तिष्क पर प्रकाशक और लेखन के प्रति रुझान को फीका करने की संभावनाएँ है । मेरा सुझाव है कि प्रकाशक अगले संस्करण में इस ओर विशेष ध्यान दें ।
बेहतरीन लघुकथाओं हेतु मीरा जी को शुभकामनाएँ । आपकी कलम सदा गतिमान रहे ताकि पाठक आपके विचारों और भावों को आत्मसात कर समाज में क्रांति ला सके ।
पुस्तक : मीरा जैन की सदाबहार लघुकथाएँ (लघुकथा संग्रह)
लेखक : मीरा जैन
प्रकाशन वर्ष : 2024
मूल्य – 250/-