मुख्यपृष्ठस्तंभइस्लाम की बात : वक्फ संपत्तियों के जब्त होने का खतरा!

इस्लाम की बात : वक्फ संपत्तियों के जब्त होने का खतरा!

सैयद सलमान
मुंबई

इन दिनों मुस्लिम समाज के बीच वक्फ की जमीन का मुद्दा गरमाया हुआ है। वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और उनके अधिकारों को लेकर चल रही बहस में कई ऐसे पहलू शामिल हैं, जो मुस्लिम समुदाय के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। इस्लामी लिहाज से वक्फ का अर्थ ही है, ‘किसी मुसलमान द्वारा धार्मिक, शैक्षणिक या धर्मार्थ कार्य के लिए दिया गया दान।’ ये संपत्तियां मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों और अन्य धार्मिक स्थलों के लिए होती हैं। ऐसी कई महत्वपूर्ण जमीनें हैं, जिन्हें मुसलमानों ने वक्फ कर दिया है, ताकि वहां ऐसे संस्थान बनाए जा सकें जो मुसलमानों की शिक्षा और प्रगति का रास्ता खोल सकें। वक्फ संपत्तियों का सही प्रबंधन और संरक्षण मुस्लिम समाज के लिए जरूरी है, क्योंकि यही संपत्तियां उनकी धार्मिक पहचान और सामुदायिक एकता का हिस्सा मानी जाती हैं। हाल ही में मोदी सरकार ने वक्फ (संशोधन) विधेयक २०१४ पेश किया। सरकार के अनुसार, विधेयक का उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज में सुधार करना और संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है। हालांकि, कई मुस्लिम संगठनों ने विधेयक पर चिंता, आपत्ति और विरोध जताते हुए आरोप लगाया है कि इससे उनकी वक्फ संपत्तियों के जब्त होने का खतरा बढ़ गया है।
मुसलमानों का मानना है कि यह विधेयक एक सोची-समझी रणनीति के तहत पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को कमजोर करना और उन्हें चिढ़ाना है। इस विधेयक के जरिए भाजपा मुसलमानों को निशाना बनाकर राजनीतिक लाभ लेने की साजिश रच रही है। मुस्लिम नेताओं का मानना है कि कायदे से वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर सरकार का कोई हक नहीं है, क्योंकि यह संपत्ति मुसलमानों ने अपने समाज की भलाई के लिए दान की है। बैसाखी वाली मोदी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह वक्फ की जमीनों को हथिया कर उसे अपनी कुटिल चालों से उन्हीं लोगों के हवाले कर देगी, जिन्हें देश के कई बंदरगाह, एयरपोर्ट और अन्य सरकारी मिलकियत कौड़ियों के भाव दे दी गई है। विधेयक के तहत गैर-मुस्लिमों और मुस्लिम महिलाओं को भी केंद्रीय और राज्य वक्फ निकायों में शामिल किया जा सकेगा। अगर महिलाओं को भी वक्फ बोर्ड में शामिल किया जाता है तो यह स्वागत योग्य कदम होगा और महिलाओं की स्थिति में सुधार भी हो सकता है, लेकिन गैर-मुस्लिमों को शामिल करने पर सरकार कोई ठोस जवाब नहीं दे रही है।
नए संशोधन के अनुसार, वक्फ बोर्ड में अब दो गैर-मुस्लिम सदस्य होने चाहिए। कई मुस्लिम संगठन इससे असहमत हैं और मानते हैं कि वक्फ बोर्ड में केवल मुस्लिम प्रतिनिधित्व होना चाहिए। सरकार की इस कोशिश पर शक इसलिए भी जताया जा रहा है, क्योंकि उसने किसी मंदिर, आश्रम, मठ इत्यादि में किसी मुस्लिम को नहीं रखा है, न ऐसा प्रस्ताव कभी लाया गया, बल्कि पार्टी स्तर पर भाजपा ने लोकसभा और राज्यसभा को पूरी तरह मुस्लिम विहीन कर दिया है। इन दोनों सदनों में भाजपा का कोई मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं है। क्या यह मुस्लिम विरोधी भूमिका नहीं है? हां, अगर वर्तमान हालात में नफरत का बीज भाजपा ने न बोया होता, तो शायद मुसलमान इस तरह से विरोध नहीं करते। इसके विपरीत, वह समझदार, दानिश्वर और निष्पक्ष बुद्धिजीवी गैर-मुसलमानों का स्वागत करते। लेकिन भाजपा की कथनी और करनी का फर्क पिछले १० सालों से मुसलमान ही नहीं, पूरा देश देख रहा है इसलिए मुसलमानों की शंका जायज है।
वक्फ बिल के विरोध में कई दलीलें दी जा रही हैं। माना जा रहा है कि इससे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा। विपक्षी दलों का कहना है कि यह बिल संविधान के अनुच्छेद १४, १५ और २५ का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों की रक्षा करते हैं। वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधान को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है। यह विधेयक वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को खत्म करता है और इसमें अनावश्यक सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ावा देता है। हालांकि, भाजपा ने इस पर मुसलमानों की राय जानने के लिए एक सात सदस्यीय टीम गठित की है, जो इसके समर्थन और विरोध पर लोगों की राय जुटाएगी और विभिन्न मुद्दों पर उनकी चिंताओं को दूर करने का प्रयास करेगी। वक्फ विधेयक को लेकर चल रही बहस में लगभग ८४ लाख सुझाव प्राप्त हुए हैं। इसे संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच के लिए भेजा गया है। इस प्रक्रिया में विभिन्न मुस्लिम संगठनों की चिंताओं को सुना जा रहा है। वक्फ की जमीन का मुद्दा मुसलमानों की एकता और उनकी पहचान के लिहाज से भी और कानूनी और प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस मुद्दे पर चल रही बहस पर विभिन्न पक्ष अपनी चिंताओं को व्यक्त कर रहे हैं और उम्मीद की जा रही है कि एक संतुलित समाधान की तलाश जरूर पूरी होगी।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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