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संपादकीय : शिंदे सरकार का दिवालियापन!

ऐसा लगता है कि वित्तीय अनुशासन का पालन करने वाले राज्य के तौर पर महाराष्ट्र की पहचान मिटाने का बीड़ा राज्य की लाचार शिंदे सरकार ने उठाया है। केवल बीड़ा ही नहीं उठाया है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को रसातल में ले जाकर आर्थिक अनुशासन वाले राज्य की पहचान को मिटाने में भी शिंदे शासन दुर्भाग्य से सफल रहा। कर्ज लेकर त्यौहार मनाने की अवांछनीय मनोवृत्ति के कारण राज्य का वित्तीय अनुशासन पूरी तरह ध्वस्त हो गया और सरकार कंगाल हो गई। अब हालात इतने खराब हो गए हैं कि सरकार के पास विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए दमड़ी भी नहीं बची है। खजाने में ठन-ठन गोपाल के चलते राज्य के विभिन्न हिस्सों में चल रहे विकास कार्यों के ३६ हजार करोड़ के बिल लंबित हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि सरकार दिवालिया हो गई है। इस सरकार ने महाराष्ट्र के सिर पर कर्ज ८ लाख करोड़ तक पहुंचा दिया है। हालात ऐसे हैं कि सरकार की अधिकांश आय इन ऋणों का ब्याज चुकाने में चली जाती है इसलिए तिजोरी में कुछ शेष नहीं बचता है। बावजूद इसके, इस तथ्य को छिपाते हुए कि राज्य की आर्थिक स्थिति ध्वस्त हो गई है, शिंदे सरकार ऐन चुनाव के वक्त हर दिन नई फोकटछाप घोषणाओं की बारिश कर रही है। ‘घर में नहीं हैं दाने, अम्मा चली भुनाने’ कुछ इस तरह इस सरकार की दुर्गति हो गई है। सरकार और मंत्रालय की चौखट पर माथा रगड़ कर राज्य के पढ़े-लिखे बेरोजगार इंजीनियर और ठेकेदारों को विकास कार्यों के लिए कॉन्ट्रैक्ट मिले, लेकिन काम पूरा होने के बाद भी सरकार ने इनके हजारों करोड़ों के बिलों की थप्पियां लगा रखी हैं। खबर है कि बकाया बिलों से डरे इंजीनियर, ठेकेदार सरकार के खिलाफ ताल ठोकने की योजना बना रहे हैं। सरकार के खजाने में एक धेला भी नहीं बचा है। तो ठेकेदारों को इन कार्यों के बिल के पैसे वैâसे मिलेंगे? सरकार ढोल पीट कर शेखी बघार रही है कि राज्य के सभी हिस्सों में मूलभूत सुविधाओं के विकास कार्य किस तरह पूरे जोरों पर चल रहे हैं; लेकिन सरकार के पास इन कामों का खर्च देने के लिए फंड उपलब्ध नहीं है। विभागों के लिए स्वीकृत और उपलब्ध निधि या किसी भी वित्तीय मामले की परवाह किए बिना सरकार के सपोर्टरों को खुश करने के लिए होलसेल में काम जारी किए गए। उपरोक्त सभी विभागों में बड़े-बड़े टेंडर जारी कर पसंदीदा जन प्रतिनिधियों और जन प्रतिनिधियों का सपोर्ट बनाए रखने के लिए प्रसाद की तरह बांटा गया। हालांकि, अब जब काम पूरा हो चुका है तो सरकार ने फंड की कमी के कारण इन बिलों को अटका दिया है। इसलिए राज्य के ठेकेदार महासंघ ने सरकार के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी दी है। इस प्रकार के कार्य में सभी ठेकेदारों के प्रति सहानुभूति दिखाई जाए स्थिति ऐसी भी नहीं है। शिंदे की मौजूदा खोकेशाही के तहत विकास कार्यों के लिए बजट किस तरह फुलाया गया, यह अब छिपा नहीं है। ऐसा नहीं है कि इस सरकार ने सिर्फ इन विकास कार्यों के बिल ही रोके हैं। पिछले साल मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम के अमृत महोत्सव के मौके पर शिंदे सरकार ने छत्रपति संभाजी नगर में वैâबिनेट की विशेष बैठक कर मराठवाड़ा के लिए ४६ हजार करोड़ के विभिन्न कार्यों की घोषणा की थी, लेकिन सरकार इस ४६ हजार करोड़ में से पिछले साल ४६ पैसे भी खर्च नहीं कर सकी। इस अलीबाबा सरकार ने सरकारी तिजोरी की ऐसी दुर्दशा कर रखी है। चौतरफा लूट ही इसका कारण है। भले ही शिंदे मंडल, ८ लाख करोड़ के कर्ज और खजाने की खस्ता हालत के बावजूद ‘लाडली बहन’ और ‘लाडला भाई’ जैसी योजनाएं लागू कर ‘लाडली कुर्सी’ को बचाने की आखिरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिलेगी। आर्थिक अनुशासन के बाबत अक्ल के दिवालियापन के कारण ही शिंदे की सरकार दिवालिया हो गई है। खजाने में ठन-ठन गोपाल के कारण राज्य में विभिन्न विकास कार्यों के बिल लंबित हैं। जिस तरह से महाराष्ट्र की सत्ता लूट-खसोटकर कर हासिल की गई, उसी तरह राज्य के खजाने को लूटने-खसोटने का काम भी कई हाथों से चल रहा है। आसन्न विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन होगा ही; उस वक्त नई सरकार को पहला काम इस लूट-खसोट का ऑडिट करना होगा!

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