सामना संवाददाता / मुंबई
लोकतंत्र और जनशक्ति से घबराने वाली डरपोक सरकार राज्य में सत्तासीन है। पराजय स्पष्ट दिखाई दे रही है इसीलिए सीनेट, मुंबई समेत १५ महानगर पालिकाओं और विधानसभा चुनाव का सामना करने से घाती, अजीत पवार गुट और भाजपा बहुत ज्यादा घबरा रहे हैं। इस तरह का जोरदार हमला करते हुए शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता व सांसद संजय राऊत ने किया।
मीडिया से बातचीत में संजय राऊत ने कहा कि मुंबई यूनिवर्सिटी के दिशा दर्शक सीनेट के लिए शिक्षित, स्नातक, बुद्धिमान मतदाता हैं। उन्हें खरीदा और बेचा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि जहां मतदाताओं को खरीदा नहीं जा सकता, वहां घाती, अजीत पवार और फडणवीस चुनाव लड़ने से डरते हैं। यह कायर सरकार है, जो लोकतंत्र और जनशक्ति से डरती है। इसमें मुख्यमंत्री सबसे ज्यादा डरपोक हैं। संजय राऊत ने कहा कि पैसों की ताकत लोकतंत्र की ताकत नहीं है। यही कारण है कि सीनेट चुनाव को २४ घंटे पहले ही अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया गया, क्योंकि इस चुनाव में उन्हें हार स्पष्ट दिख रही थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने उन पर तमाचा जड़ दिया और चुनाव का रास्ता साफ कर दिया। इसके बावजूद यूनिवर्सिटी प्रशासन चुनाव टलवाने का प्रयास कर रहा है। इसका मतलब है कि यूनिवर्सिटी पर राजनीतिक दबाव है। हालांकि, संजय राऊत ने यह भी विश्वास जताया कि कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव होंगे और युवासेना सभी सीटों पर जीत हासिल करेगी।
१४ मनपाओं पर पैâसला लेने की जरूरत
संजय राऊत ने कहा कि सीनेट की तरह उन्होंने मुंबई और पुणे मनपा चुनावों से परहेज किया है। यह सरकार तीन साल में मुंबई समेत १४ महानगरपालिकाओं में चुनाव नहीं करा पाई है। मुंबई, पुणे जैसे शहरों में तीन साल से कोई नगरसेवक नहीं है, जिसका असर विकास पर पड़ रहा है। राष्ट्रपति पुणे आई थीं। पुणे में सड़कों के गड्ढों के कारण उन्हें परेशानी उठानी पड़ी। उन्होंने दिल्ली जाकर राष्ट्रपति भवन से सड़कों की खराब हालत को लेकर पुणे कमिश्नर को फटकार लगाई। अब समय आ गया है कि राष्ट्रपति कहें कि सड़कें ठीक करो। पुणे में एक ट्रक सड़क में धंस गया। हम चाहते थे कि राष्ट्रपति का काफिला कहीं न फंसे। उन्होंने यह भी राय व्यक्त की कि इन १४ महानगरपालिकाओं के चुनाव के संबंध में न्यायालय को सीनेट की तरह निर्णय लेने की आवश्यकता है।
तो उसी तरीके से तय होंगे चुनाव कार्यक्रम
अब चुनाव आयोग के निरीक्षक निरीक्षण के लिए राज्य में आएंगे। एक राष्ट्र एक चुनाव की घोषणा करनेवाले चार राज्यों के चुनाव एक साथ नहीं करा सकते। अब वह टीम राज्य में आएगी, पर्दे के पीछे सरकार को जिस तरीके से और जिस तारीख को मतदान कराना है, उसी तरीके से चुनाव कार्यक्रम तय किए जाएंगे। संजय राऊत ने यह भी साफ किया कि उन्हें नहीं लगता कि इसमें कुछ नया होगा।