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महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव भाजपा के लिए अग्नि परीक्षा

भायंदर। महाराष्ट्र विधानसभा का चुनावी बिगुल किसी भी दिन बज सकता है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने अभी से अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है। जनता के बीच जहां प्रत्याशियों को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं, वहीं राजनीतिक पार्टियां प्रत्याशियों के चयन को लेकर गंभीर मंथन कर रही हैं। अबकी बार का चुनाव बहुत ही टफ माना जा रहा है। कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार तथा शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के एक साथ आ जाने से बीजेपी के शीर्ष नेताओं के पसीने छूट रहे हैं। लोकसभा चुनाव में जिस तरह से इंडिया गठबंधन को सफलता मिली है, उसे देखते हुए एनडीए गठबंधन सहमा हुआ है। एनडीए का कोई भी नेता पूरे आत्मविश्वास के साथ फिर से अपनी सरकार के सत्ता में लौटने की बात नहीं कह पा रहा है। कहीं ना कहीं उनके मन में भी इंडिया गठबंधन की बढ़ती ताकत का एहसास है। ग्रामीण इलाकों में भाजपा का बुरा हाल है। बहुत कम नेता ऐसे हैं, जिनकी जीत का पक्का दावा किया जा सकता है। भाजपा की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा पार्टी प्रत्याशियों के चयन को लेकर है। पार्टी ने अगर पराजित प्रत्याशियों को मैदान में उतारने की भूल की अथवा टिकट देने में प्रत्याशियों के राजनीतिक दबदबा या पहुंच को ध्यान में रखा तो उसे पछताने के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। आज का मतदाता नए और युवा चेहरों को तरजीह दे रहा है। सुशिक्षित और चरित्रवान चेहरों को पसंद कर रहा है। साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रख रहा है कि प्रत्याशी की ग्राउंड रिपोर्ट क्या है? प्रत्याशी की पृष्ठभूमि क्या है और उससे क्षेत्र का क्या विकास हो सकता है। भाजपा को इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि अब हिंदुत्व और प्रधानमंत्री के जुमलों पर उनकी जीत पक्की नहीं है। इस बात को इस उदाहरण से समझा जा सकता है – समुद्र को घमंड था कि वह पूरी दुनिया को डुबो सकता है। इतने में तेल की एक बूंद आई और उसके ऊपर से तैर कर निकल गई। अब बेदाग और चरित्रवान प्रत्याशियों का दौर चल रहा है। मतदाता अपने बीच के ऐसे चेहरों की तलाश करता है, जो लगातार उनके सुख-दुख में खड़ा रहा। उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन की बढ़ती सफलता का राज शायद यही है।

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