जब मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ मुंबई में मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्रियों के साथ चायपान कर रहे थे, उस वक्त बदलापुर बलात्कार मामले के मुख्य आरोपी अक्षय शिंदे के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की खबर आई। पहले कहा गया कि शिंदे ने पुलिस से हथियार छीनकर आत्महत्या की, लेकिन तुरंत स्क्रिप्ट में बदलाव किया गया और शिंदे को पुलिस ने मार डाला। उसने पुलिस का हथियार छीना और पुलिस पर हमला कर दिया। इसलिए पुलिस ने आत्मरक्षा में शिंदे को मार डाला, ऐसी रहस्यमयी फिल्म पर्दे पर आई। रेप केस के आरोपियों को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए। मुकदमे, तारीख पर तारीख, फास्ट ट्रैक के नाटक के झंझट में पड़े बिना महिलाओं पर अत्याचार करनेवालों को झटपट न्याय मिलना ही चाहिए। बदलापुर में दो स्कूली छात्राओं के साथ जो हुआ उसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। बदलापुर की पुलिस पीड़ित लड़कियों की माताओं की शिकायत लेने को तैयार नहीं थी। जब लोग सड़कों पर उतर आए, रेलवे जाम कर दिया, मंत्रियों का रास्ता रोक दिया, तब कहीं ‘वर्षा’ के शिंदे ने बलात्कारी शिंदे के खिलाफ कार्रवाई की। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि आरोपी को उन्हें सौंप दिया जाए और वे उसे फांसी पर लटका देंगे। शिंदे सरकार ने अगले दिन ऐसे सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामले दर्ज किए। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी बेइज्जती की गई। प्रदर्शनकारियों के घरों में पुलिस घुसाई गई। अब पुलिस ने अक्षय शिंदे को न्यायिक हिरासत से निकालकर एनकाउंटर में उड़ा दिया है। यदि अक्षय शिंदे के साथ इस तरह से न्याय किया गया है, तो इसी तरह की मांग करनेवाले सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामले क्यों दर्ज किए गए? किसी को भी कानून हाथ में नहीं लेने दिया जाएगा, ऐसा शोर शिंदे-फडणवीस क्यों मचा रहे थे? इसलिए सरकार को तुरंत बदलापुर के सभी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ केस को वापस लेना चाहिए। क्या मिंधे-फडणवीस यह दिखावा करना चाहते हैं कि उन्होंने अक्षय शिंदे का ‘एनकाउंटर’ करके बदलापुर के पीड़ितों को ‘झटपट न्याय’ दिया है? यदि ऐसा है, तो तीन पुजारियों के क्रूर अत्याचार की शिकार ठाणे जिले की अक्षता म्हात्रे को भी ‘झटपट न्याय’ दिया जाना चाहिए, ऐसा शिंदे-फडणवीस को क्यों नहीं सूझा? खुद राज्य के गृहमंत्री के अपने ही जिले में पिछले छह महीने में २०० से ज्यादा बहनों के साथ अत्याचार की घटनाएं घट चुकी हैं। उन बहनों को भी ऐसे ही ‘न्याय’ की उम्मीद है। इसलिए बदलापुर मामले में एकाध ‘एनकाउंटर’ को न्याय मानना गुमराह करने जैसा होगा। मूलत: अक्षय का ‘एनकांटर’ वगैरह हमेशा की तरह संदिग्ध है। गृहमंत्री फडणवीस और उनके शिंदे को इस बलात्कार कांड के मास्टरमाइंड को बचाना है। जिस शिक्षण संस्थान में यह अधम कृत्य हुआ वहां के स्कूल संचालक आप्टे, कोतवाल आदि भारतीय जनता पार्टी से संबंधित हैं। अक्षय शिंदे ने उसके स्टेटमेंट में वास्तव में क्या कहा और उसका कितना हिस्सा पुलिसिया कागज पर आया, यह रहस्य है। फिर इस स्कूल के महत्वपूर्ण सीसीटीवी फुटेज गायब किए गए हैं और यह काम अक्षय शिंदे ने नहीं किया है। इसलिए शिंदे के पीछे के मास्टरमाइंड को इस सरकार ने सुरक्षित कर लिया। इसके अलावा जनता के दबाव के बाद संस्थान के ड्राइवरों और कर्मचारियों के खिलाफ ‘पोक्सो’ अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए गए, लेकिन फडणवीस-शिंदे की कृपा से उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। उन्हें गिरफ्तार किया जाता तो अक्षय शिंदे के स्टेटमेंट पर। अब उस अक्षय शिंदे को ही मारकर आप्टे, कोतवाल और आठवले को बचाया गया। ये हमारे राज्य के कानून की उड़ती धज्जियां हैं। जब यह धज्जियां उड़ रही थीं, तब मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की असंवैधानिक मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के साथ हास्य विनोद करते हुए एक तस्वीर प्रकाशित हुई है। महाराष्ट्र विधायक अयोग्यता का मामला इन्हीं मुख्य न्यायाधीश के समक्ष चल रहा है। शिवसेना और धनुष-बाण किसका है? इसका पैâसला भी चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ को सुनाना है। तीन साल से वे इस पर सोच रहे हैं और तारीखों में आगा-पीछा कर रहे हैं। जिनके खिलाफ यह मामला दायर किया गया है, वे प्रधानमंत्री मोदी, मोदक का प्रसाद लेने के लिए मुख्य न्यायाधीश के घर आते हैं और इस मामले के मुख्य आरोपी एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के साथ हमारे मुख्य न्यायाधीश हास्य विनोद करते दिखते हैं, तब आंखों पर पट्टी बांधे हुए न्यायदेवता की फिक्र होती है। महाराष्ट्र के मामले में जो करवाया जा रहा है वह भयानक है। राज्य में जिस तरह यौन पिपासु हैं, उसी तरह सत्ता पिपासु भी हैं। यौन पिपासु का एनकाउंटर हो जाता है, लेकिन असंवैधानिक सत्ता पिपासु खोकों पर खड़े होकर चीफ जस्टिस से हास्य विनोद करते हैं। कानून का कोई डर नहीं है और न्यायदेवता खोकेबाजों के पिट्ठू बन गए हैं। मौजूदा शासन के दौरान महाराष्ट्र का समग्र माहौल खराब हो गया है। जारांगे पाटील ने शिंदे-फडणवीस की कुर्सी के नीचे चिंगारी लगा दी है। लोग त्रस्त हैं। जनता को मुख्य मुद्दे से भटकाने के लिए बदलापुर के आरोपी को गोली मार दी गई, लेकिन गृह मंत्री द्वारा संरक्षित मास्टरमाइंड आप्टे, कोतवाल, आठवले आजाद रह गए!