अपना शहर अपना घर अपना कमरा अपनी जगह थी
अपनी बोली अपने लोग अपनी गली अपना मोहल्ला था
जो यह सब उड़ा ले गए वो सब लोग चोर थे
हम तो शांति निहाल थे शोर मचाने वाले तो कोई और थे
बैठे इंतज़ार करतें हैं
वो वक़्त कब आएगा वापसी का
इसमें कोई नहीं शक है ईश्वर की मेहरबानी का
इक कोशिश कर लो इक तस्वीर ले लो
अपने गांव की उन सदाओं की
जिनको फिर न ले सकें उन हवाओं की
छूट गए टूट गए जिनके गुलफ़ाम
सारा आलम है खाली-खाली
बस अब रह गयीं हैं कुछ यादें फ़रयादें
वो भी न बन जाये सवाली
क्यूं ऐसी हैं शंकायें कोई कहीं से आवाज़ दे
लौट आओ अपने जहाँ मे
फिर वही ज़िन्दगी अपने निवास मे
कितनी प्यारी वो सहर थी
हर काम करने की एक लहर थी
उड़ा के ले गई वो सब
एक गन्दी हवा की कहर थी
शाम होते ही आँगन मे बैठा करते थे
ठंडी हवा लिया करते थे
छूट गया वो बसेरा दूर हुआ वो सवेरा
अब रह गया है खाली कागज़
जो लिखना है लिख लो
अब रह गया है खाली कलम
जो रंग भरना है भर लो
अन्नपूर्णा कौल, नोएडा