कविता श्रीवास्तव
देश की राजधानी नई दिल्ली में प्रदेश की कमान संभालने के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक महिला विराजमान हुई है। वह आतिशी हैं। आतिश वैसे तो भगवान गणेश का एक नाम भी है। लेकिन आतिशी का अर्थ दैदीप्यमान प्रकाश और ऊर्जा भी है। साहसी आतिशी ने दिल्ली की राजनीतिक सत्ता संभालने के साथ ही मुख्यमंत्री की कुर्सी के बगल में अन्य कुर्सी पर बैठ कर एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया है, जिसमें कुर्सी के प्रति कोई मोह होने की आशंका ही नहीं है। उन्हें एक ड्यूटी निभानी है, वो निभा रही हैं। कुर्सी कौन सी है यह महत्वपूर्ण नहीं है। जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का निर्वहन सही ढंग से चलता रहे, यही लोकतंत्र का तकाजा है। उनसे पहले मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल ने साफ कहा है कि जब जनता उन्हें फिर से चुनेगी तो वे फिर से पद संभालेंगे। यह उनकी नई राजनीतिक चुनौती भी है। केजरीवाल ही वह शख्स हैं, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के सामने वाराणसी में लोकसभा चुनाव लड़ा था। कहते हैं कि यदि आप काशी नगरी यानी वाराणसी में हों तो विश्वेश्वर बाबा विश्वनाथ के बाद बनारस के काल भैरव के दर्शन अवश्य करना चाहिए। उन्हें काशी नगरी का कोतवाल कहा जाता है। पावन कार्यों में उनकी अनुमति लेने से कार्य निर्विघ्न संपन्न होता है। यही मान्यता है। उनका प्रभाव यह है कि उनके मंदिर के समीप जो पुलिस थाना है वहां कोतवाल की मुख्य कुर्सी पर स्वयं काल भैरव विराजमान हैं। प्रशासन द्वारा नियुक्त कोतवाल आज भी बगल में करीब की अन्य कुर्सी पर बैठते हैं। सभी पुलिसकर्मी पहले कोतवाली की मुख्य कुर्सी पर विराजमान भगवान काल भैरव को प्रणाम करके ही ड्यूटी साइन करते हैं, यही परंपरा है। दिल्ली में संवैधानिक तौर पर आतिशी ही मुख्यमंत्री हैं, पर आतिशी निष्ठावान शख्सियत हैं। उन्होंने पार्टी का आदेश मानकर पद की जिम्मेदारी संभाल ली है। लेकिन मुख्यमंत्री की जिस कुर्सी पर उनकी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल बैठते थे, उस पर वे नहीं बैठ रही हैं। आतिशी ने अपने लिए बगल में एक अलग से कुर्सी रखवा ली है। अपने सीनियर और अपने वरिष्ठ के प्रति सम्मान का उनका यह अपना तरीका है लेकिन कुछ लोगों को यह पसंद नहीं आ रहा है, इसलिए वे ऊल-जुलूल बक रहे हैं। उनसे पूछा जाना चाहिए कि जब अयोध्या से प्रभु श्रीराम वन जा रहे थे, तो खबर पाकर भरत मिलाप करने पहुंचे। भरत मिलाप के पश्चात क्या हुआ था? प्रभु श्री रामचंद्र भगवान ने भरत को अयोध्या की गद्दी संभालने का आदेश दिया। भरत ने उनसे उनकी खड़ाऊं मांग ली।
प्रभु करि कृपा पांवरी दीन्ही।
सादर भरत शीश धरि लीन्ही।।
उस खड़ाऊं को उन्होंने अपने सिर पर उठाकर अयोध्या लाया और राजगद्दी पर रख दिया। उन्होंने स्वयं के लिए अलग कुटिया बना ली।
ये कुछ पौराणिक उदाहरण उन लोगों के लिए आदर्श हैं, जिन्हें सत्ता और कुर्सी की कोई लालसा नहीं रहती है। राजनीति में कुछ मर्यादाएं, आदर्श और सिद्धांत भी होते हैं, जिन्हें वही लोग अपना सकते हैं जिनकी उसमें ईमानदार निष्ठा होगी और अपना कोई स्वार्थ नहीं होगा।