मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर: सेंट्रल विस्टा और बंदर हेंडलर्स

सटायर: सेंट्रल विस्टा और बंदर हेंडलर्स

– डाॅ. रवीन्द्र कुमार

इस इलाके में बंदरों का खूब उत्पात रहता है। ये बंदर लोग पीढ़ियों से इस इलाके में हैं। एक तरह से ये ही यहां के डोमिसाइल हैं। बाकी क्या नेता, क्या बाबू, सब आते-जाते रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि प्रथम राष्ट्रपति महोदय हनुमान-भक्त थे अतः वे अपनी पूजा-अर्चना के लिए राष्ट्रपति भवन प्रांगण में एक हनुमान मंदिर बनाना चाहते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने धर्म निरपेक्ष नीति की याद दिलाई और इस पॉइंट पर बात ठहरी कि आप बजाय हनुमान मंदिर के उनके सेनानी को फल-मिठाई खिलाएं। इसका भी उतना ही पुण्य मिलेगा। तदनुसार बंदर-बंदरिया के एक जोड़े का प्रबंध किया गया। जब तक राष्ट्रपति महोदय रहे तब तक बंदर दंपति का गुजारा ठीकठाक चलता रहा। उनकी सेवानिवृति उपरांत इनके खाने के लाले पड़ गए। इस बीच इनका कुनबा भी बढ़ गया था। अब वो पूरे दल-बल के साथ आस-पास के भवनों में आने-जाने लगे। किसी का लंच, किसी के केले। आखिर बाबू-नेताओं में भी तो इनके भक्त थे। जब उनको खाना नहीं मिलता तो वे क्रोधित हो फाइल फाड़ देते, नोट-शीट तार-तार कर देते। बाबू लोगों में इतना दम कहां कि इनका सामना कर सकते। बंदरों का खेल निर्बाध चलता रहा। बाबू लोग इनको देख कर ही भाग छूटते और सीधे अपने घर जा कर ही दम लेते। फैलते-फैलते अब उन्हाेंने आस-पास के सारे दफ्तर, सारे भवन अपने कब्जे में ले लिए और अपने चाचा-ताऊ, भाई-भतीजों में आबंटित कर दिए। अब आपको पता चला मनुष्यों में ये भाई-भतीजावाद कहां से आया है। खिड़कियों में जाली-जंगले लगाए जाने लगे। ये एंट्री-पास, ये सिक्युरिटी गार्ड आदमियों के लिए है, बंदरों के लिए नहीं। अब ताजा खबर है यूपीएससी को दो बंदर-हेंडलर्स चाहिए। आप पूछेंगे इतने सारे रिक्रूटमेंट करते हैं, उन्हीं में से दो को डेपुटेशन पर ले लें पर पता चला है कि उन्हें ये लेटरल एंट्री के जरिये लेने हैं। हुआ क्या है कि यूपीएससी के आसपास बहुत सारे बंदर उत्पात मचाते फिरते हैं। वे कमरों में घुस आते हैं। बेचारे अभ्यर्थी पहले ही ‘एक्जाम-एक्जाइटी’ से नर्वस होते हैं ऊपर से ये बंदर लोग भी उन्हें डराते हैं। सच है गरीब का कोई नहीं। देखो तो सही! बंदर भी गरीब को ही सता रहे हैं।

परीक्षा लेने वालों को ख्याल आया कहीं किसी दिन ये बंदर लोग परीक्षार्थी को छोड़ उन्हीं पर न टूट पड़ें। अभी तक तो वो फाइल ही तितर बितर करते हैं। नोट-शीट फाड़ देते हैं। एक तरह से उनका काम हल्का कर देते हैं। दूसरे, कहने को रहता है कोई फाइल नहीं दिखानी हो, फाइल पर बैठना हो तो कहने को रहता है “साब वो तो पिछले बंदर-अटैक में उनहोंने फाड़-फूड कर नष्ट कर दी”। अभी तक आग से फाइल, नोट-शीट आदि नष्ट की जाती थीं। अब बंदरों के चलते आपको आग लगाने की ज़रूरत ही नहीं रही।

वानर सेना प्रभु राम के टैम से ही सदैव हमारी मदद को तत्पर रही है। कहीं पुल बनाना हो। सीते मैय्या का पता लगाना हो, संदेश पहुंचाना हो। वानर-श्रेष्ठ आपकी सेवा में हाजिर हैं। इसी श्रंखला में हो सकता है अफसरों को ये शक पड़ गया हो कि कहीं परीक्षार्थी बंदरों की मदद से नकल तो नहीं कर रहे। अब बंदरों पर तो केस भी नहीं चला सकते यहां तक कि कोई एफआईआर भी नहीं लिखेगा, यहां आदमी की एफआईआर तो लिखी नहीं जाती तो बंदरों की कौन करेगा। लेकिन जरूरी था कि कम से कम लगे तो सही कि यूपीएससी एक्शन ले रही है। अतः शुरुआत में दो बंदर-हेंडलर्स की रिक्ति निकाली हैं। ये कोई बेरोजगार ग्रेजुएट, एमबीए या इंजीनियर नहीं कि हजारों में आवेदन आ जाएंगे। असल में ये लंगूर के लिए है। अब लंगूर अनुबंध पर तो आने से रहे। वे कपि-वीर हैं। जाहिर है इतने सारे लोग लेटरल एंट्री के जरिये लिए गए उनमें कोई नहीं मिला इसलिए अलग से ‘वांट’ निकाली है। बंदरों ने सचिवालय देख लिया। बड़े से बड़े अफसर देख लिए। यहां तक कि मंसूरी में ट्रेनिंग भी देखी है। क्लास रुम में जाकर भी देख लिया। इस सबके बाद ये तय पाया कि जहां से ये लोग भर्ती होते हैं वहीं जाकर नजदीक से देखा जाये। वाट्स राँग विद ब्यूरोक्रेसी ?

मैं सोच रहा हूँ कि उनकी क्वालिफ़िकेशन क्या रखी जाएगी। तजुरबा क्या मांगा जाएगा? इंडिया में ही मिल जाएँगे या विदेश से लेने पड़ेंगे ? उनका काम आसान नहीं। कारण कि उन्हें क्रूअलटी एक्ट 1960 का पालन भी करना है:

अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम।।

उधर बंदरों में अलग हलचल होगी कि हमें भगाने को हेंडलर्स आ रहे हैं। वो भी डार्विन को याद कर-कर के नयी-नयी युक्ति सोच रहे हैं। कितनी सरकार आईं गईं आफ्टर-ऑल हम सत्तर साल से जमे हैं।

हमें भगा सके ये आदमी में दम नहीं
आदमी हम से है, आदमी से हम नहीं

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