इश्क में पेश आना
रूठे तो मनाना
दामन में खुशियाँ भर देना
सपनों को सजाना
क्या गुनाह है?
तुमसे बातें न हो,
तो घबरा ऊँ
धड़कनों से चलूँ
साँसों में बहूँ
तुम हँसाओ, तो हँसू
तुम रुलाओ, तो रोऊँ
कभी चुप रहूँ;
कभी शोर करूँ
क्या गुनाह है?
उदास हो तो पास आऊँ
तुमसे दूर तो नहीं?
दुःख की जुबाँ खुलने से पहले,
आके सुकून भरूँ
जानूँ एहसासों को ,
छानूँ गम की धूपों को
सच कहाये, तो सच कहूँ
झूठ कहाये, तो झूठ कहूँ
हरेक बात मानूँ
क्या गुनाह है?
मनोज कुमार
गोण्डा उत्तर प्रदेश