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‘ईडी’ सरकार की नीयत पर सवाल : क्यों सालभर की दवाएं एडवांस में जा रही हैं खरीदीं?

आमतौर पर एक्सपायरी डेट का खतरा टालने के लिए ३ महीने पहले खरीद का है प्रावधान
तकनीकी अड़चन बताने वाले निदेशक के तबादले से खुली पोल
सामना संवाददाता / मुंबई
‘ईडी’ सरकार पर घोटाले के कई आरोप लग चुके हैं। इसके बावजूद वह घोटाले से बाज नहीं आ रही है। अब उसकी एक नई कारगुजारी सामने आई है, जिससे उसकी नीयत पर सवाल उठने लगे हैं। श्रमिक बीमा अस्पतालों के लिए सालभर की दवाएं एडवांस में खरीदने के लिए निर्देश दिया गया है। आमतौर पर एक्सपायरी डेट का खतरा टालने के लिए तीन महीने की दवाएं ही खरीदी जाती हैं। अब इस मामले में जब अस्पताल के निदेशक ने तकनीकी अड़चन बताई तो उनका तबादला कर दिया गया। इसके बाद इस मामले की पोल खुली है।
बताया जा रहा है कि इस मामले में टेंडर प्रक्रिया में नियमों को ताक पर रख दिया गया। सूत्रों के मुताबिक, एक साल के लिए दवा खरीदने का यह दबाव खुद राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बना रहे हैं। आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि स्वास्थ्य मंत्री ने अस्पतालों को अपनी पसंद के कुछ ठेकेदारों की ओर से कुछ दवाओं की एक सूची दी है। इसके अनुसार, मांग को नोट करने का निर्देश दिया है, जिसे लेकर अधिकारी भी असमंजस की स्थिति में हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य में २० राज्य कामगार बीमा अस्पताल हैं। इसका मुख्यालय लोअर परेल में है। इस अस्पताल में दवाओं और अन्य चिकित्सा आपूर्ति के स्टॉक की हर तीन महीने में जांच की जाती है। जरूरत के मुताबिक, तीन महीने का अतिरिक्त स्टॉक मंगाया जाता है। इसमें ३०० प्रकार की दवाइयां शामिल हैं। हर तीन माह में करीब १८ से २० करोड़ की दवा व सामग्री की जरूरत होती है। हालांकि, स्वास्थ्य मंत्री की ओर से अपने कुछ पसंदीदा आपूर्तिकर्ताओं से एक साल का स्टॉक लेने का दबाव बनाया जा रहा है। इसलिए चर्चा है कि इसमें जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है।

रु. १२५ करोड़ की दवा खरीदो!
 स्वास्थ्य मंत्री का अस्पताल पर दबाव
 भ्रष्टाचार की आ रही है बू

‘ईडी’ सरकार के स्वास्थ्य मंत्री अस्पतालों पर जबरन दवा खरीदने का दबाव बना रहे हैं। इसके तहत परेल के श्रमिक बीमा कामगार अस्पताल पर सालभर के लिए १२५ करोड़ रुपए की दवा खरीदने का दबाव दिया बनाया गया है। विधानसभा चुनाव करीब है और मंत्री के इस निर्देश में घोटाले की बू आ रही है।
ऑल फूड एंड ड्रग लाइसेंस होल्डर्स फाउंडेशन के अध्यक्ष अभय पांडेय के अनुसार, चुनाव से पहले स्वास्थ्य मंत्री ने अस्पतालों के प्रमुखों को बुलाया और उनसे कहा कि लगभग १२५ करोड़ रुपए की ७५ दवाएं सभी को मंगानी हैं। यह बैठक २४ सितंबर को मुख्यालय में बुलाई गई थी। इसमें उन्होंने पहले की नियमित टेंडर प्रक्रिया और वर्क ऑर्डर को तत्काल रद्द करने को कहा। साथ ही मौखिक रूप से तीन माह के बजाय एक साल के लिए दवाओं का स्टॉक मंगाने का निर्देश दिया है। ऐसे में अब इसे लेकर खुद अधिकारी भी असमंजस की स्थिति में हैं। अभय पांडेय ने कहा कि अब तक तीन महीने के लिए दवाओं का स्टॉक खरीदा जाता था। इसी के तहत सात अगस्त को जुलाई से दिसंबर २०२४ तक के स्टॉक की मांग के लिए २६ करोड़ रुपयों का विधिवत कार्यादेश जारी किया गया था। हालांकि, इस आदेश को रद्द कर एक वर्ष के दवा स्टॉक की अवैध खरीद के लिए कामगार बीमा अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. अलंकार खानविलकर पर दबाव था। उन्होंने जब इसका विरोध किया तब १८ सितंबर को तुरंत उनका तबादला कर दिया गया। इसके बाद यह प्रभार डॉ. शशिकांत कोलनुरकर को दे दिया गया। इसी के साथ ही १९ सितंबर को जारी सभी प्रशासनिक कार्य के आदेश रोक दिए गए। इतना ही नहीं, २३ सितंबर को पिछले सभी ऑर्डर रद्द कर दिए गए। २४ सितंबर को स्वास्थ्य मंत्री तानाजी सावंत ने लोअर परेल स्थित कमिश्नरेट में बैठक कर साल भर का स्टॉक मंगाने के निर्देश दिए थे। सूत्रों ने बताया कि मंत्री के निर्देशानुसार, कार्रवाई शुरू कर दी गई है। फिलहाल, अब तक ऐसी कोई घटना नहीं होने से अधिकारी भी असमंजस में हैं।

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