मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : जब हाजी मस्तान बनाता था साइकिलों के पंचर

मुंबई का माफियानामा : जब हाजी मस्तान बनाता था साइकिलों के पंचर

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
लोग कहते हैं कि वह मुंबई की गोदी में कुली था…
कुछ कहते हैं कि वह गोदी की क्रेन में कोयला झोंकता था…
किसी ने बताया कि मिर्जा मस्तान ने गोदी में ही तस्करी शुरू की…
…और एक दिन वह हाजी मस्तान बन गया।
उसके जीवन का एक ऐसा सच है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। पायधुनी जैन मंदिर के पास मस्तान की साइकिल की दुकान थी। वहां साइकिलें किराए पर दी जाती थीं। उन दिनों किराया २५ पैसे प्रति घंटा होता था। यह तकरीबन ५० साल पुरानी बात होगी। वहां साइकिलों के पंचर बनाए जाते थे। छोटी-मोटी मरम्मत भी हो जाती थी। यह सब मस्तान ही करता था।
उस वक्त मस्तान की उम्र १८ साल से कुछ कम रही होगी। उसकी जुबान इतनी मीठी थी, स्वभाव इतना उम्दा था, ईमान इतना पक्का था कि उसके पास जो एक बार आ जाता, पक्का ग्राहक बन जाता।
उसके पिता ने गांव से आकर यह दुकान खोली थी। उसे दुकान कहना भी ठीक न होगा। खुली जगह पर कुछ साइकिलें रखी होती थीं। वहां न तो छत न थी, न परकोटा था और न ही बाड़ थी।
उस दुकान के सबसे अधिक ग्राहक गोदी में काम करने वाले मजदूर थे। अमूमन गोदी मजदूरों के पास इतने पैसे नहीं होते थ या उनका इतना वेतन नहीं था कि वे मस्तान से हर दिन किराए पर साइकिलें ले पाते।
इस साइकिल की दुकान पर मस्तान और उसके पिता ही काम करते थे। वे जितना कमाते, एक हिस्सा घर भेजते। उनकी कमाई इतनी नहीं होती थी कि मुंबई और गांव के घरों का खर्च चलता। कुछ समय बाद ही साइकिल की दुकान को मस्तान के पिता ने एक स्थानीय मराठी बंदे को किराए पर दे दी। पिता मजदूरी करने लगे और पैसे बचा कर घर भेजने लगे।
छोटे से मस्तान पर भी काम का बोझ आ पड़ा। उसे गोदी के सुपरवाइजर हाजी साब ने भाप से चलने वाली क्रेनों की भट्टियों में पत्थर, कोयला झोंकने का काम गोदी में अफसरान से कह कर दिलाया। इन कोयला झोंकने वालों को अंग्रेजी में ‘कोली’ कहते हैं, वही ‘कोली’ शब्द लोगों के लिए भरम का बायस बना और उसे लोग ‘कुली’ कहने लगे। सच यही है कि मस्तान ने कभी गोदी में बतौर कुली काम नहीं किया।
हाजी मस्तान को जब कोई ‘कुली’ कहता है, उसके साथ वक्त बिता चुके लोग बड़ा बुरा मानते हैं। वे कहते हैं कि सच्चाई जाने बिना ही लोग बातें बनाते हैं। गुस्से में वे पूछते हैं कि लोग ऐसा क्यों करते हैं?
उनकी बातों से नाराजगी साफ झलकती है। वे कहते हैं:
– अब्बा सिर्फ एक स्मगलर था, डॉन नहीं। उनकूं डॉन क्यों बोलते लोग?
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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