मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : सम्मानित किया; प्रतिष्ठा के बारे में क्या?

संपादकीय : सम्मानित किया; प्रतिष्ठा के बारे में क्या?

मराठी भाषा को अंतत: अभिजात भाषा के रूप में अपना उचित दर्जा मिल गया जिसकी वह हकदार है। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को मराठी के साथ पांच भाषाओं – पाली, बंगाली, असमिया और प्राकृत को अभिजात भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दे दी। इस पैâसले की घोषणा होते ही राज्य में सत्ताधारी दलों ने श्रेय लने के लिए उठा-पठक शुरू कर दी। फडणवीस ने तो इसके लिए मोदी का आभार भी माना और अपनी पीठ थपथपाते हुए बताया कि इस पैâसले के लिए उन्होंने कितनी दौड़ भाग की। हालांकि, यह सच है कि मोदी सरकार ने यह पैâसला लिया है, लेकिन क्या वाकई ऐसी स्थिति है कि उन्हें इस तरह की शेखी बघारने की जरूरत है? यह ठीक है कि सरकार ने कई सालों की मांग मान ली है, अहम सवाल यह है कि अगर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नजदीक नहीं होते तो क्या मोदी सरकार यह पैâसला लेती? लोकसभा चुनाव में जिस तरह से मराठी मानुष ने भाजपा को लतियाया है उससे भाजपा मंडली हिल गई है। इसीलिए विधानसभा चुनाव से पहले मराठी मानुष को खुश करने की हर कोशिश की जा रही है। मराठी भाषा के अभिजात होने का एहसास जो इस वक्त मोदी सरकार को हुआ है वह पिछले १० वर्षों से कहां छिपा हुआ था? मराठी को अभिजात भाषा का दर्जा दिए जाने की मांग मराठी लोगों द्वारा कई वर्षों से विभिन्न स्तरों पर की जाती रही थी। उसके लिए लड़ाई लड़ी गर्इं, संघर्ष किया गया। पिछली सरकारों ने भी इसका फॉलोअप किया। उसके लिए आवश्यक अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेजीकरण महाविकास आघाड़ी सरकार द्वारा ही किया गया था। महाराष्ट्र और मराठी मानुष के न्यायसंगत अधिकारों के लिए लगातार लड़ने वाली शिवसेना ने तो मराठी को अभिजात भाषा का दर्जा दिलाने के लिए एक जन आंदोलन खड़ा किया। शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने लगातार प्रधानमंत्री मोदी के सामने इस पर जोर दिया था। फिर भी मोदी सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी। दरअसल, कुल मिलाकर तस्वीर यह थी कि मोदी सरकार यह स्वीकार नहीं करना चाहती थी कि मराठी भाषा अभिजात भाषा के दर्जे के सभी मानदंडों को पूरा करती है। महाराष्ट्र और मराठी मानुष को उसके अधिकार और गौरव में से कुछ भी नहीं देना है, केवल इस नीति के कारण मराठी को अभिजात भाषा का दर्जा देने की मराठी लोगों की मांग को अनदेखा किया जा रहा था। मोदी शासन के दस वर्षों में देश की एक भी भाषा को अभिजात भाषा नहीं बनाया गया है। चूंकि, लोकसभा चुनाव में मोदी-शाह की भाजपा ने बहुमत खो दिया। उस झटके से महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ था और फिर लोकसभा चुनाव के बाद राज्यों में तेजी से भाजपा विरोधी माहौल भी बन गया। इसलिए अचानक मोदी सरकार को ‘अभिजात भाषा का दर्जा’ की हिचकी लगी और मराठी समेत बंगाली और असमिया आदि पांच भाषाओं को सम्मानित किया गया। अगर लोकसभा चुनाव में झटका नहीं लगा होता तो क्षेत्रीय अस्मिता और गौरव का मुद्दा मोदी सरकार द्वारा दबाकर रखा गया होता। लेकिन चूंकि यह तय है कि लोकसभा चुनाव के जख्म महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी हरे होंगे, इसलिए मोदी सरकार को मराठी भाषा को सम्मानित करने की अक्ल आई। मोदी सरकार द्वारा महाराष्ट्र और मराठी लोगों पर किया गया ये उपकार बिल्कुल नहीं है। यह शिवसेना द्वारा किए गए अनुशीलन का नतीजा है। यह मराठी कलाइयों की ताकत की स्वीकारोक्ति है। अन्यथा केन्द्रीय शासकों ने पिछले १० सालों से महाराष्ट्र को उसके हक से वंचित रखने और जो है, उसे भी जबरन छीनने की नीति लागू कर रखी है। इस मंडली ने महाराष्ट्र और मराठी लोगों को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। मराठी भाषा के प्रति जगा उनका यह प्यार विधानसभा चुनाव के लिए, मराठी मतों के लिए लगी हिचकी है। यह ठीक है कि आपने मराठी को सम्मान दिया, लेकिन महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा का क्या, जो आपके शासनकाल में छीन ली गई? आप कितना भी, कुछ भी कर लें, विधानसभा चुनाव में मराठी जनता आपसे यही सवाल पूछेगी यानी पूछेगी ही!

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